भव्यत्व
From जैनकोष
जीव का वह स्वभाव जिससे सम्यक्त्व प्रकट होता है । दूसरे गुणस्थान से लेकर अंतिम गुणस्थान तक के तेरह गुणस्थानों में नियम से जीवों के भव्यपना ही रहता है । प्रथम गुणस्थान में भव्यपना तथा अभव्यपना दोनों होते हैं । हरिवंशपुराण 3.100, 104, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.64