वीरनंदि
From जैनकोष
- नंदिसंघ बलात्कारगण की गुर्वावली के अनुसार आप वसुनंदि के शिष्य तथा रत्ननंदि के गुरु थे। समय–विक्रम शक सं.531-561 (ई.609-639)-(देखें इतिहास - 7.2)।
- नंदि संघ देशीयगण के अनुसार आप पहले मेघचंद्र त्रैविद्य के शिष्य थे और पीछे विशेष अध्ययन के लिए अभयनंदि की शाखा में आ गए थे। इंद्रनंदि तथा नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती के सहधर्मा थे, परंतु ज्येष्ठ होने के कारण आपको नेमिचंद्र गुरु तुल्य मानते हैं। कृतियें–चंद्रप्रभ चरित्र (महाकाव्य), शिल्पसंहिता, आचारसार। समय–नेमिचंद के अनुसार ई.950-999। (देखें इतिहास - 7. 5); (तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा /3/53-55)।
- नंदिसंज्ञ देशीयगण की गुणनंदि शाखा के अनुसार आप दाम नंदि के शिष्य तथा श्रीधर के गुरु थे। समय वि. 1025-1055 (ई.968-998)। (देखें इतिहास - 7.5)।
- नंदिसंघ देशीयगण के अनुसार आप मेघचंद्र त्रैविद्य देव के शिष्य हैं। कृति–आचारसार तथा उसकी कन्नड़ टीका। समय–मेघचंद्र के समाधिकाल (शक 1037) के अनुसार ई.श.12 का मध्य। (तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा /3/271)।