गुणव्रत
From जैनकोष
- लक्षण
र.क.श्रा./६७ अनुबृंहणाद् गुणानामाख्यायन्ति गुणव्रतान्यार्या:।६७।=गुणों को बढ़ाने के कारण आचार्यगण इन व्रतों को गुणव्रत कहते हैं।
सा.ध./५/१ यद्गुणायोपकारायाणुव्रतानां व्रतानि तत् । गुणव्रतानि।=ये तीन व्रत अणुव्रतों के उपकार करने वाले हैं, इसलिए इन्हें गुणव्रत कहते हैं। - भेद
भ.आ./मू./२०८१ जं च दिसावेरमणं अणत्थदंडेहिं जं च वेरमणं। देसावगासियं पि य गुणव्वयाइं भवे ताइं।२०८१।=दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। (स.सि./७/२१/३५९/६); (वसु.श्रा./२१४-२१६)।
र.क.श्रा./६७ दिग्व्रतमनर्थदण्डव्रतं च भोगोपभोगपरिमाणं। अनुबृंहणाद् गुणानामाख्ययान्ति गुणव्रतान्यार्या:।=दिग्व्रत, अनर्थदण्डव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत ये तीनों गुणव्रत कहे गये हैं।महा.पु./१०/१६५ दिग्देशानर्थदण्डेभ्यो विरति: स्यादणुव्रतम् । भोगोपभोगसंख्यानमप्याहुस्तद्गुणव्रतम् ।१६५। =दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। कोई कोई आचार्य भोगोपभोग परिमाण व्रत को भी गुणव्रत कहते हैं। [देशव्रत को शिक्षाव्रतों में शामिल करते हैं]।१६५।