असमीक्ष्याधिकरण
From जैनकोष
अनर्थदंडव्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार—प्रयोजन का विचार न करके आवश्यकता से अधिक किसी कार्य में प्रवृत्ति करना-कराना । हरिवंशपुराण 58. 179
अनर्थदंडव्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार—प्रयोजन का विचार न करके आवश्यकता से अधिक किसी कार्य में प्रवृत्ति करना-कराना । हरिवंशपुराण 58. 179