द्वितीयोपशम
From जैनकोष
लब्धिसार/ भाषा/2/42/1
उपशमश्रेणी चढ़ता क्षयोपशम सम्यक्त्वतैं जो उपशम सम्यक्त्व (होता है) ताका नाम द्वितीयोपशम सम्यक्त्व है। (और भी देखें सम्यग्दर्शन - IV.2.4.2)।
गोम्मटसार जीवकांड/696,731/1132,1325 विदियुवसमसम्मत्तं अविरदसम्मादि संतमोहोत्ति।696। विदियुवसमसम्मत्तं सेढोदोदिण्णि अविरदादिसु।731। 1. द्वितीयोपशम सम्यक्त्व 4 थे से 11वें गुणस्थान तक होता है।696। (विशेष देखें उपशम - 2/4)। 2. श्रेणी से उतरते हुए अविरतादि गुणस्थान होते हैं।
द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का विधान―देखें उपशम - 2; इस संबंधी विषय― देखें सम्यग्दर्शन - IV.3।