मरुदेव
From जैनकोष
(1) वसुदेव तथा रानी सोमश्री का कनिष्ठ पुत्र और नारद का अनुज । हरिवंशपुराण 48.57
(2) बारहवें कुलकर । ये ग्यारहवें कुलकर चंद्राभ के पुत्र थे । इनके समय स्त्री-पुरुष अपनी संतान से हे ‘‘माँ’’ हे ‘‘पिता’’ ऐसे मनोहर शब्द सुनने लगे । इनके शरीर की ऊँचाई पाँच सौ पचहत्तर धनुष और इनकी आयु नयुतांग प्रमाण वर्ष थी । ये तेजस्वी और प्रभावान् थे । इनके समय में प्रजा अपनी संतान के साथ बहुत दिनों तक जीवित रहने लगी थी । इन्होंने जलमय दुर्गम स्थानों में गमन करने के लिए छोटी बड़ी नाव चलाने का उपदेश दिया था । दुर्गम स्थानों पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनवाई थी । इन्हीं के समय में अनेक छोटे-छोटे पहाड़, उपसमुद्र तथा छोटी-छोटी नदियाँ उत्पन्न हुई थी । मेघ भी वर्षा करने लगे थे । इनका अपर नाम मरुदेव था । महापुराण 3.139-145, पद्मपुराण - 3.87, हरिवंशपुराण 7.164-165, पांडवपुराण 2. 106