अणुव्रती
From जैनकोष
कल रूप से पाँच पापों से विरत, शील-संपन्न और जिनशासन के प्रति श्रद्धा से युक्त मानव । ऐसा जीव मरकर देव होता है । हरिवंशपुराण - 18.46 पद्मपुराण 26.99 देखें - अणुव्रत
कल रूप से पाँच पापों से विरत, शील-संपन्न और जिनशासन के प्रति श्रद्धा से युक्त मानव । ऐसा जीव मरकर देव होता है । हरिवंशपुराण - 18.46 पद्मपुराण 26.99 देखें - अणुव्रत