भूत
From जैनकोष
- प्राणी सामान्य
सर्वार्थसिद्धि/6/12/330/11 तासु तासु गतिषु कर्मोदयवशाद् भवंतीति भूतानि प्राणिन इत्यर्थः। = जो कर्मोदय के कारण विविध गतियों में होते हैं, वे भूत कहलाते हैं। भूत यह प्राणी का पर्यायवाची शब्द है। ( राजवार्तिक/6/12/1/522/12 ) ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/801/180/1 )।
धवला/13/5,5,50/286/2 अभूत इति भूतम्। = श्रुत अतीत काल में था इसलिए इसकी भूत संज्ञा है। - व्यंतर देव विशेष
तिलोयपण्णत्ति/6/46 भूदा इमे सरूवा पडिरूवा भूदउत्तमा होंति। पडिभूदमहाभूदा पडिछण्णकासभूदत्ति।46। = स्वरूप, प्रतिरूप, भूतोत्तम, प्रतिभूत, महाभूत, प्रतिच्छन्न और आकाशभूत, इस प्रकार ये सात भेद भूतों के हैं। ( त्रिलोकसार/269 )।
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