मनोवाहिनी
From जैनकोष
सुग्रीव की तेरह पुत्रियों में आठवीं पुत्री । यह राम के गुणों को सुनकर अनुरागपूर्वक स्वयंवरण की इच्छा से राम के पास आयी थी । राम ने इसे स्वीकार नहीं किया था । पद्मपुराण - 47.139 मनोवेग― (1) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के स्वर्णाभ नगर का विद्याधर राजा । मनोवेगा इसको रानी थी । इसने रूपिणी विद्या से दूसरा रूप बनाकर अशोक वन में स्थित चंदना का अपहरण किया । इसकी पत्नी ने इसकी माया जानकर रूपिणी विद्या-देवता को बायें पद-प्रहार से जैसे ही ठुकराया कि विद्या अट्टहास करती हुई इसके पास से चली गयी थी । इसकी पत्नी ने आलोकिनी विद्या से इसकी इन चेष्टाओं को जानकर इसे बहुत डाँटा था । पत्नी से भयभीत होकर इसे पर्णलध्वी विद्या से चंदना को भूतरमण वन में ऐरावती नदी के तट पर छोड़ देना पड़ा था । हरिवंशपुराण के अनुसार इसका नाम चित्तवेग और इसकी रानी का नाम अंगारवती था । इन दोनों के एक पुत्र और एक पुत्री हुई थी । पुत्र का नाम मानसवेग और पुत्री का नाम वेगवती था । यह पुत्र को राज्य देकर दीक्षित हो गया और तपस्या करने लगा था । पाँचवें पूर्वभव में यह सौधर्म स्वर्ग से चयकर शिवंकर नगर के राजा विद्याधर पवनवेग और रानी सुवेगा का पुत्र मनोवेग हुआ था । चौथे पूर्वभव में मगध देश की वत्सा नगरी के ब्राह्मण अग्निमित्र का पुत्र शिवभूति हुआ । तीसरे पूर्वभव में बंग देश के कांतपुर नगर में राजा सुवर्णवर्मा का पुत्र महाबल हुआ । दूसरे पूर्वभव में भरतक्षेत्र के अवंति देश की उज्जयिनी नगरी के सेठ धनदेव का नागदत्त पुत्र हुआ और प्रथम पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 75. 36-44, 70-72, 81, 95-96, 162-165, हरिवंशपुराण 24.69-71
(2) शूकर वन में कीलित एक विद्याधर । प्रद्युम्न ने इसके बैरी वसंत विद्याधर से इसकी मित्रता कराके इसे मुक्त करा दिया था । इसने भी प्रद्युम्न को हार और इंद्र-जाल ये दो वस्तुएँ दी थीं । हरिवंशपुराण 47.39-40
(3) भरतेश का एक अस्त्र । महापुराण 37.166
(4) राक्षस वंश के संस्थापक राजा राक्षस का पिता । पद्मपुराण -5. 378
(5) विजयार्ध पर्वत पर रत्नपुर नगर के राजा रत्नरथ और उसकी रानी चंद्रनना का दूसरा पुत्र । यह हरिवेग का अनुज और वायुवेग का अग्रज तथा मनोरमा का भाई था । पद्मपुराण - 93.1-57