मोक्ष
From जैनकोष
शुद्ध रत्नत्रय की साधना से अष्ट कर्मों की आत्यन्तिकी निवृत्ति द्रव्यमोक्ष है और रागादि भावों की निवृत्ति भावमोक्ष है । मनुष्य गति से ही जीव को मोक्ष होना सम्भव है । आयु के अन्त में उसका शरीर काफूरवत् उड़ जाता है और वह स्वाभाविक ऊर्ध्व गति के कारण लोकशिखर पर जा विराजते हैं, जहाँ वह अनन्तकाल तक अनन्त अतीन्द्रिय सुख का उपभोग करते हुए अपने चरम शरीर के आकार रूप से स्थित रहते हैं और पुनः शरीर धारण करके जन्म-मरण के चक्कर में कभी नहीं पड़ते । ज्ञान ही उनका शरीर होता है । जैन दर्शनकार उसके प्रदेशों की सर्व व्यापकता स्वीकार नहीं करते हैं, न ही उसे निर्गुण व शून्य मानते हैं । उसके स्वभावभूत अनन्त ज्ञान आदि आठ प्रसिद्ध गुण हैं । जितने जीव मुक्त हाते हैं उतने ही निगोद राशि से निकलकर व्यवहार राशि में आ जाते हैं, इससे लोक जीवों से रिक्त नहीं होता ।
- भेद व लक्षण
- अजीव, जीव व उभय बन्ध के लक्षण ।−दे. बन्ध/१/५ ।
- अजीव, जीव व उभय बन्ध के लक्षण ।−दे. बन्ध/१/५ ।
- मोक्ष व मुक्त जीव निर्देश
- सिद्ध भगवान् के अनेकों नाम ।−दे. परमात्मा ।
- अर्हन्त व सिद्ध में कथंचित् भेदाभेद ।
- वास्तव में भावमोक्ष ही मोक्ष है ।
- मुक्तजीव निश्चय से स्व में रहते हैं, सिद्धालय में रहना व्यवहार है ।
- अपुनरागमन सम्बन्धी शंका-समाधान ।
- जितने जीव मोक्ष जाते हैं उतने ही निगोद से निकलते हैं ।
- जीव मुक्त हो गया है, इसके चिह्न ।
- सिद्धों में कथंचित् विग्रहगति ।−दे. विग्रह गति ।
- सिद्ध भगवान् के अनेकों नाम ।−दे. परमात्मा ।
- सिद्धों की प्रतिमा सम्बन्धी विचार ।−दे. चैत्य चैत्यालय/ १ ।
- सिद्धों के गुण व भाव आदि
- आठ गुणों के लक्षण आदि ।−दे. वह वह नाम ।
- सिद्धों में गुणस्थान, मार्गणास्थान आदि २० प्ररूपणाएँ ।−दे. सत् ।
- सर्वज्ञत्व की सिद्धि ।−दे. केवलज्ञान/५ ।
- उपरोक्त गुणों के अवरोधक कर्मों का निर्देश ।
- सूक्ष्मत्व व अगुरुलघुत्व गुणों के अवरोधक कर्मों की स्वीकृति में हेतु ।
- सिद्धों में कुछ गुणों व भावों का अभाव ।
- इन्द्रिय व संयम के अभाव सम्बन्धी शंका ।
- मोक्ष प्राप्ति योग्य द्रव्य क्षेत्र आदि
- सिद्धों में अपेक्षाकृत कथंचित् भेद- निर्देश
- मुक्तियोग्य क्षेत्र- निर्देश ।
- मुक्तियोग्य काल- निर्देश ।
- अनेक भवों की साधना से मोक्ष होता है एक भव में नहीं ।−दे. संयम/२/१० ।
- [[मोक्ष प्राप्ति योग्य द्रव्य क्षेत्र आदि#4.4 | मुक्तियोग्य गति निर्देश ।
- निगोद से निकलकर सीधी मुक्तिप्राप्ति सम्बन्धी ।–दे. जन्म/५ ।
- सचेल मुक्ति निषेध ।−दे. अचेलकत्व।
- स्त्री व नपुंसक मुक्ति निषेध ।−दे. वेद/७ ।
- मुक्तियोग्य तीर्थ निर्देश ।
- मुक्तियोग्य चारित्र निर्देश ।
- मुक्तियोग्य प्रत्येक व बोधित बुद्ध निर्देश ।
- मुक्तियोग्य ज्ञान निर्देश ।
- मोक्षमार्ग में अवधि व मनःपर्यय ज्ञान का कोई स्थान नहीं ।−दे. अवधिज्ञान/२/६ ।
- मोक्षमार्ग में मति व श्रुतज्ञान प्रधान हैं।–दे. श्रुतज्ञान/१/२।
- मुक्तियोग्य संहनन निर्देश ।−दे. संहनन ।
- सिद्धों में अपेक्षाकृत कथंचित् भेद- निर्देश
- गति, क्षेत्र, लिंग आदि की अपेक्षा सिद्धों में अल्पबहुत्व ।−दे. अल्पबहुत्व/३ /१ ।
- मुक्तजीवों का मृत शरीर आकार ऊर्ध्वगमन व अवस्थान
- उनके मृत शरीर सम्बन्धी दो धाराएँ ।
- संसार के चरम समय में मुक्त होकर ऊपर को जाते हैं ।
- ऊर्ध्व ही गमन क्यों इधर- उधर क्यों नहीं ।
- मुक्त जीव सर्वलोक में नहीं व्याप जाता ।
- सिद्धलोक से ऊपर क्यों नहीं जाते ।−दे. धर्माधर्म/२ ।
- उनके मृत शरीर सम्बन्धी दो धाराएँ ।
- मुक्तजीव पुरुषाकार छायावत् होते हैं ।
- मुक्तजीवों का आकार चरमदेह से किंचिदून है ।
- सिद्धलोक में मुक्तात्माओं का अवस्थान ।
- मोक्ष के अस्तित्व सम्बन्धी शंकाएँ
- सिद्धों में जीवत्व सम्बन्धी ।−दे. जीव/२, ४ ।
- मोक्षसुख सद्भावात्मक है ।−दे. सुख/२ ।
- शुद्ध निश्चय नय से न बन्ध है न मोक्ष ।−दे. नय/V/१/५ ।
- सिद्धों में उत्पाद व्यय ध्रौव्य ।−दे. उत्पाद/३ ।
- मोक्ष में पुरुषार्थ का सद्भाव ।−दे. पुरुषार्थ/१ ।
- सिद्धों में जीवत्व सम्बन्धी ।−दे. जीव/२, ४ ।