वज्रनाभि
From जैनकोष
- म. पु./सर्ग/श्लो. नं. - पुण्डरीकिणी के राजा वज्रसेन का पुत्र था। (११/८९)। चक्ररत्न प्राप्त किया। (११/३८-५५)। अपने पिता वज्रसेन तीर्थंकर के समीप दीक्षा धारण कर। (११/६१-६२)। तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। (११/७९-८०)। प्रायोपगमन संन्यासपूर्वक। (११/९४)। श्रीप्रभ नामक पर्वत पर उपशान्तमोह गुणस्थान में शरीर को त्याग सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुए। (११/११०-१११)। यह भगवान् ऋषभदेव का पूर्व का तीसरा भव है। −दे. ऋषभदेव।
- म. पु./७९/श्लो. नं. - पद्म नामक देश के अश्वपुर नगर के राजा वज्रवीर्य का पुत्र था।२९-३२। संयम धारण किया।३४-३५। पूर्वभव के वैरी कमठ के जीव कुरंग भील के उपसर्ग।३८-३९। को जीतकर सुभद्र नामक मध्यम ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए ।४०। यह भगवान् पार्श्वनाथ का पूर्व का चौथा भव है।−दे. पार्श्वनाथ।