वज्र नाराच
From जैनकोष
धवला 6/1,9-1,36/73/8 संहननमस्थिसंचय:, ऋषभो वेष्टनम्, वज्रवदभेद्यत्वाद्वज्रऋषभ:। वज्रवन्नाराच: वज्रनाराच:, तौ द्वावपि यस्मिन् वज्रशरीरसंहनने तद्वज्रऋषभवज्रनाराचशरीरसंहननम् । जस्स कम्मस्स उदएण वज्जहड्डाइं वज्जवेट्ठेण वेट्ठियाइं वज्जणाराएण खीलियाइं च होंति तं वज्जरिसहवरणारायणसरीर संघडणमिदि उत्तं होदि। एसो चेव हड्डबंधो वज्जरिसहवज्जिओ जस्स कम्मस्स उदएण होदि तं कम्मं वज्जणारायणसरीरसंघडणमिदि भण्णदे। जस्स कम्मस्स उदएण वज्जविसेसणरहिदणारायणखीलियाओ हड्डसंधिओ हवंति तं णारायणसरीरसंघडणं णाम। जस्स कम्मस्स उदएण हड्डसंधीओ णाराएण अद्धविद्धाओ हवंति तं अद्धणारायणसरीरसंघडणं णाम। जस्स कम्मस्स उदएण अवज्जहड्डाइं खीलियाइं हवंति तं खीलियसरीरसंघडणं णाम। जस्स कम्मस्स् उदएण अण्णोण्णमसंपत्ताइं सरिसिवहड्डाइं व छिरावद्धाइं हड्डाइं हवंति तं असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणं णाम। = हड्डियों के संचय को संहनन कहते हैं। वेष्टन को ऋषभ कहते हैं। वज्र के समान अभेद होने से 'वज्रऋषभ' कहलाता है। वज्र के समान जो नाराच है वह वज्रनाराच कहलाता है। ये दोनों अर्थात् वज्रऋषभ और वज्रनाराच, जिस वज्र संहनन में होते हैं, वह वज्रऋषभ वज्रनाराच शरीर संहनन है। जिस कर्म के उदय से वज्रमय हड्डियाँ वज्रमय वेष्टन से वेष्टित और वज्रमय नाराच से कीलित होती हैं, वह वज्रऋषभनाराच शरीर संहनन है। ऐसा अर्थ कहा गया है। यह उपर्युक्त अस्थिबंध ही जिस कर्म के उदय से वज्र ऋषभ से रहित होता है, वह कर्म वज्रनाराच शरीर संहनन इस नाम से कहा जाता है। ....।
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