स्नेहातिचार
From जैनकोष
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 612/812/6
उपयुक्तोऽपि सम्यगतिचारं न वेत्ति सोऽनाभोगकृत व्याक्षिप्तचेतसा वा कृतः। .....। शरीरे, उपकरणे, वसतौ, कुले, ग्रामे, नगरे, देशे, बंधुषु, पार्श्वस्तेषु वा ममेदभावः स्नेहस्तेन प्रवर्तित आचारः। .....। एवं मया स्वशुद्धिरनुष्ठितेति निवेदनम्
1......। 22. स्नेहातिचार - शरीर, उपकरण, वसति, कुल, गाँव, नगर, श, बंधु और पार्श्वस्थ मुनि इनमें `ये मेरे हैं' ऐसा भाव उत्पन्न होना इसको स्नेह कहते हैं। इससे उत्पन्न हुए दोषों को स्नेहातिचार कहते हैं। 23. ..... ऐसा कथन जानना।
अधिक जानकारी के लिये देखें अतिचार - 3।