ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 165 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
णिद्धा वा लुक्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमा वा । (165)
समदो दुराधिगा जदि बज्झन्ति हि आदिपरिहीणा ॥177॥
अर्थ:
[अणुपरिणामा:] परमाणु-परिणाम, [स्निग्धा: वा रूक्षा: वा] स्निग्ध हों या रूक्ष हों [समा: विषमा: वा] सम अंश वाले हों या विषम अंश वाले हों [यदि समत: द्वधिका:] यदि समान से दो अधिक अंश वाले हों तो [बध्यन्ते हि] बँधते हैं, [आदि परिहीना:] जघन्यांश वाले नहीं बंधते ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथात्र कीदृशात्स्निग्धरूक्षत्वात्पिण्डत्वमित्यावेदयति -
समतो द्वय्यधिकगुणाद्धि स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्ध इत्युत्सर्ग:, स्निग्धरूक्षद्बय्यधिकगुणत्वस्य हि परिणामकत्वेन बन्धसाधनत्वात् । न खल्वेकगुणात् स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्ध इत्यपवाद:, एकगुणस्निग्धरूक्षत्वस्य हि परिणम्यपरिणामकत्वाभावेन बन्धस्यासाधनत्वात् ॥१६५॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
समान से दो गुण (अंश) अधिक स्निग्धत्व या रूक्षत्व हो तो बंध होता है यह उत्सर्ग (सामान्य नियम) है क्योंकि स्निग्धत्व या रूक्षत्व की द्विगुणाधिकता का होना वह परिणामक (परिणमन कराने वाला) होने से बंध का कारण है ।
यदि एक गुण स्निग्धत्व या रूक्षत्व हो तो बंध नहीं होता यह अपवाद है; क्योंकि एक गुण स्निग्धत्व या रूक्षत्व के परिणम्य-परिणामकता का अभाव होने से बंध के कारणपने का अभाव है ॥१६५॥