ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 164 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
एगुत्तरमेगादी अणुस्स णिद्धत्तणं च लुक्खत्तं । (164)
परिणामादो भणिदं जाव अणंतत्तमणुभवदि ॥176॥
अर्थ:
[अणो:] परमाणु के [परिणामात्] परिणमन के कारण [एकादि] एक से (एक अविभाग प्रतिच्छेद से) लेकर [एकोत्तरं] एक-एक बढ़ते हुए [यावत्] जब तक [अनन्तत्वम् अनुभवति] अनन्तपने को (अनन्त अविभागी प्रतिच्छेदत्व को) प्राप्त हो तब तक [स्निग्धत्वं वा रूक्षत्वं] स्निग्धत्व अथवा रूक्षत्व होता है ऐसा [भणितम्] (जिनेन्द्रदेव ने) कहा है ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ कीदृशं तत्स्निग्ध -रूक्षत्वं परमाणोरित्यावेदयति -
परमाणोर्हि तावदस्ति परिणाम: तस्य वस्तुस्वभावत्वेनानतिक्रमात् । तत्तस्तु परिणामा-दुपात्तकादाचित्कवैचित्र्यं चित्रगुणयोगित्वात्परमाणोरेकाद्येकोत्तरानन्तावसानाविभागपरिच्छे-दव्यापि स्निग्धत्वं वा रूक्षत्वं वा भवति ॥१६४॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
प्रथम तो परमाणु के परिणाम होता है क्योंकि वह (परिणाम) वस्तु का स्वभाव होने से उल्लंघन नहीं किया जा सकता । और उस परिणाम के कारण जो कादाचित्क विचित्रता धारण करता है ऐसा, एक से लेकर एक-एक बढ़ते हुए अनन्त अविभाग प्रतिच्छेदों तक व्याप्त होने वाला स्निग्धत्व अथवा रूक्षत्व परमाणु के होता है, क्योंकि परमाणु अनेक प्रकार के गुणों वाला है।