ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 173 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
मुत्तो रूवादिगुणो बज्झदि फासेहिं अण्णमण्णेहिं । (173)
तव्विवरीदो अप्पा बज्झदि किध पोग्गलं कम्मं ॥185॥
अर्थ:
[मूर्त:] मूर्त (पुद्गल) तो [रूपादिगुण:] रूपादिगुणयुक्त होने से [अन्योन्यै: स्पर्शै:] परस्पर (बंधयोग्य) स्पर्शों से [बध्यते] बँधते हैं; (परन्तु) [तद्विपरीतः आत्मा] उससे विपरीत (अमूर्त) आत्मा [पौद्गलिकं कर्मं] पौद्गलिक कर्म को [कथं] कैसे [बध्नाति] बाँधता है?
तात्पर्य-वृत्ति:
अथामूर्त-शुद्धात्मनो व्याख्याने कृते सत्यमूर्तजीवस्य मूर्तपुद्गलकर्मणा सह कथं बन्धो भवतीति पूर्वपक्षं करोति --
मुत्तो रूवादिगुणो मूर्तो रूपरसगन्धस्पर्शत्वात् पुद्गलद्रव्यगुणः बज्झदि अन्योन्यसंश्लेषेणबध्यते बन्धमनुभवति, तत्र दोषो नास्ति । कैः कृत्वा । फासेहिं अण्णमण्णेहिं स्निग्धरूक्षगुणलक्षण-स्पर्शसंयोगैः । किंविशिष्टैः । अन्योन्यैः परस्परनिमित्तैः । तव्विवरीदो अप्पा बज्झदि किध पोग्गलं कम्मं तद्विपरीतात्मा बध्नाति कथं पौद्गलं कर्मेति । अयं परमात्मा निर्विकारपरमचैतन्य-चमत्कारपरिणतत्वेन बन्धकारणभूतस्निग्धरूक्षगुणस्थानीयरागद्वेषादिविभावपरिणामरहितत्वादमूर्तत्वाच्च पौद्गलं कर्म कथं बध्नाति, न कथमपीति पूर्वपक्षः ॥१७३॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
मूर्त रूप, रस, गन्ध, स्पर्श होने से पुद्गल द्रव्य के गुण [बज्झदि] परस्पर संश्लेष-रूप से बंधते हैं -- बन्ध का अनुभव करते हैं, वहाँ दोष नहीं है । वे किनसे बंधते हैं ? [फासेहिं अण्णमण्णेहिं] वे स्निग्ध-रुक्ष गुण लक्षण स्पर्श के संयोग से बंधते हैं । किन विशेषताओं वाले स्पर्शों से वे बंधते हैं ? परस्पर में निमित्त-रूप स्पर्शों से वे बँधते हैं ।
[तव्विवरीदो अप्पा बज्झदि किध पोग्गलं कम्मं] परन्तु उससे विपरीत आत्मा, पुद्गल-कर्म को कैसे बाँधता है ? यह परमात्मा विकार-रहित परम-चैतन्य-चमत्कार परिणति-वाला होने से बन्ध के कारणभूत स्निग्ध-रूक्ष गुण के स्थानीय राग-द्वेष आदि विभाव परिणाम से रहित होने के कारण और अमूर्त होने के कारण पुद्गल-कर्म को कैसे बाँधता है ? किसी भी प्रकार से नही बाँध सकता है - ऐसा पूर्वपक्ष है ॥१८५॥