३. ओघ व आदेश प्ररूपणा
From जैनकोष
१. पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचन योगी, काय योगी सा. औदारिक काययोगी इस प्रकार १२ योग वाले-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१०५-१२१)
१०५ उपशमक ८-१० स्तोक परस्पर तुल्य संचय
१०६ - ११ ऊपर तुल्य प्रवेश दोनों अपेक्षा
१०७ क्षपक ८-१० दुगुणे प्रवेश दोनों अपेक्षा
१०८ - १२ ऊपर तुल्य प्रवेश दोनों अपेक्षा
१०९ संयोग केवली १३ ऊपर तुल्य प्रवेश अपेक्षा
११० - १३ सं.गुणे संचय अपेक्षा
१११ अनुपशमक ७ सं.गुणे -
११२ अक्षपक सामान्य ६ दुगुने -
११३ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
११४ - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
११५ - ३ सं.गुणे मनुष्य गतिवत्
११६ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
११७ - १ असं.गुणे अनन्त गुणे मन-वचन योगकी अपेक्षा काय व औ. काययोग की अपेक्षा ११८ सम्यक्त्व ४-७ मूलोघवत् -
११९ - ८-१० मूलोघवत् -
१२० चारित्र उप. स्तोक -
१२१ - क्षप. सं.गुणे -
२. औदारिक मिश्र योग-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१२२-१२७)
१२२ सयोग केवली १३ स्तोक -
१२३ असंयत सामान्य ४ सं.गुणे -
१२४ असंयत सामान्य २ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
१२५ असंयत सामान्य १ अनन्त गुणे -
१२६ सम्यक्त्व क्षा. स्तोक दुर्लभता
१२७ - वे. सं.गुणे -
३. वैक्रियिक काय योग-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१२८)
१२८ सर्व भंग १-४ देवगति सा.वत् -
४. वैक्रियक मिश्र योग-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१२९-१३४)
१२९ सामान्य २ स्तोक -
१३० - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१३१ - १ असं.गुणे गुणकार=अंगु/असं.\जप्र
१३२ सम्यक्त्व उप. स्तोक उपशम श्रेणीमें मृत्यु बहुत कम होती है
१३३ - क्षा. सं.गुणे -
१३४ - वे. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
५. आहारक मिश्र काय योग-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१३५-१३६)
१३५ सम्यक्त्व क्षा. स्तोक उपशम सम्यक्त्वमें आहारक योग नहीं होता
१३६ - वे. सं.गुणे -
६. कार्मण काय योग-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१३७-१४३)
१३७ - १३ स्तोक -
१३८ - २ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
१३९ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१४० - १ अनन्त गुणे -
१४१ सम्यक्त्व उप. स्तोक वैक्रियक मिश्रवत् असं. क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंका मरण नहीं होता। क्योंकि यदि देवोंसे मरण करे तो मनुष्योंमे असं.क्षा सम्य. का प्रसंग आ जायेगा। परन्तु तिर्य. व मनुष्योंमें असं. क्षा. सम्य. होते नहीं। नरकसे मरकर देवोंमें जाते नहीं ।
१४२ - क्षा सं.गुणे -
१४३ - वे. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
९. देव मार्गणा-
१. सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/७/२,११/सूत्र१३०-१३३)
१३० पुरुष - स्तोक -
१३१ स्त्री - सं.गुणे -
१३२ अपगत - अनन्त गुणे -
१३३ नपुंसक - अनन्त गुणे -
२. विशेषकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सूत्र १३४-१४४)
१३४ नपुंसंक संज्ञी गर्भज - स्तोक -
१३५ पुरुष संज्ञी गर्भज - सं.गुणे -
१३६ स्त्री संज्ञी गर्भज - सं.गुणे -
१३७ नपुंसक संज्ञी सम्पू.प. - सं.गुणे -
१३८ नपुंसक संज्ञी सम्पू. अप. - असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१३९ स्त्री संज्ञी गर्भज भोग - अंस.गुणे -
१३९ पुरुष संज्ञी गर्भज भोग - ऊपर तुल्य -
१४० नपुंसक असंज्ञी गर्भज - सं.गुणे -
१४१ पुरुष असंज्ञी गर्भज - सं.गुणे -
१४२ स्त्री असंज्ञी गर्भज - सं.गुणे -
१४३ नपुंसक असंज्ञी सम्मू.प. - सं.गुणे -
१४४ नपुंसक असंज्ञी सम्मू अप. - असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३. तीनों वेदोंकी पृथक् पृथक् ओघ व आदेश प्ररूपणा-
१. स्त्री वेद-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१-८/सूत्र१४४-१६१)
१४४ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य केवल १० जीव
१४५ क्षपक ८-९ दुगुने केवल २० जीव
१४६ अक्षपक व अनुशमक ७ सं.गुणे मूलोघवत्
१४७ - ६ दुगुने -
१४८ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. तिर्यंच भी सम्मिलित सुलभता
१४९ - २ असं.गुणे -
१५० - ३ सं.गुणे अन्य स्थानोंसे आय
१५१ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. अन्य स्थानोंसे आय
१५२ - १ असं.गुणे गुणकार=घनांगुल\असं./ज.प्र.
१५३ गुणस्थान ४-५में क्षा स्तोक अल्प आय
१५४ सम्यक्त्व उप. सं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
१५५ - वे. सं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१५६ गुणस्थान ६-७ में क्षा. स्तोक -
१५७ सम्यक्त्व उप. सं.गुणे -
१५८ - वे. सं.गुणे -
१५९ उपशमकोंमें सम्य. क्षा.उप. स्तोक सं.गुणे -
१६० चारित्र उप. स्तोक -
१६१ - क्षप. दुगुने -
२. पुरुष वेद-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१६२-१७४)
१६२ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य कुल ५४ जीव
१६३ क्षपक ८-९ दुगुणे परस्पर तुल्य कुल १०८ जीव
१६४ अक्षपक व अनुशमक ७ सं.गुणे मूल ओघवत्
१६५ - ६ दुगुने मूल ओघवत्
१६६ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. (तीर्यंच भी)
१६७ - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१६८ - ३ सं.गुणे -
१६९ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१७० - १ असं.गुणे गुणकार=अंगु/असं.\ज.प्र.
१७१ गुणस्थान ४-७ में उप. स्तोक ओघवत्
१७१ सम्यक्त्व क्षा. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
१७१ - वे. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१७२ उपशमकोंमें सम्य. क्षा.उप. स्तोक सं.गुणे -
१७३ चारित्र उप. स्तोक -
१७४ चारित्र क्षप. सं.गुणे -
३. नपुंसक वेद-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१७५-१९०)
१७५ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य ५ जीव
१७६ क्षपक ८-९ दुगुणे परस्पर तुल्य कुल १० जीव
१७७ अक्षपक व अनुशमक ७ सं.गुणे मूलोघवत्
१७८ - ६ दुगुने -
१७९ - ५ असं.गुणे गणकार=पल्य/असं. तिर्यंच भी सम्मिलित
१८० - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१८१ - ३ सं.गुणे गुणकार=सं.समय
१८२ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१८३ - १ अनन्त गुणे सर्व जीव राशि का अनन्त प्रथम वर्गमूल गुणकार है।
१८४ असंयतोंमें सम्य. उप. स्तोक -
१८४ - क्षा. आ./असं.गुणे प्रथम पृथ्वी नरकमें भी
१८४ - वे. आ./असं.गुणे सुलभ
१८४ संयतासंयतोंमें सम्यक्त्व क्षा. स्तोक पर्याप्त मनुष्य ही होते हैं तिर्यंच नहीं १८४ - उप. प./असं.गुणे -
१८४ - वे. आ./असं.गुणे पृथक् पृथक् परस्पर १;२
१८५ गुणस्थान ६-७ में सम्यक्त्व क्षा. स्तोक अप्रशस्त वेदमें क्षायिक की दुर्लभता १८६ - उप. सं.गुणे -
१८७ - वे. सं.गुणे -
१८८ उपशमकोंमें सम्य. क्षा. स्तोक -
१८८ - उप. सं.गुणे -
१८९ चारित्र उप. स्तोक -
१९० - क्षा सं.गुणे -
४. अपगत वेद-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१९१-१९६)
१९१ उपशमक ९-१० स्तोक पृथक् पृथक् तुल्य (कुल ५४ जीव)
१९२ - ११ ऊपर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा संचय भी प्रवेशाधीन है
१९३ क्षपक ९-१० दुगुने संचय कुल १०८ जीव
१९४ - १२ ऊपर तुल्य संचय कुल १०८ जीव
१९५ अयोगी १४ ऊपर तुल्य संचय कुल १०८ जीव
१९५ सयोगी १३ ऊपर तुल्य प्रवेशकी अपेक्षा
१९६ - - सं.गुणे संचयकी अपेक्षा
१०. कषाय मार्गणा-
१. कषाय चतुष्ककी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,२१/सू.१४५-१४९)
१४५ अकषायी - स्तोक -
१४६ मान कषायी - अनन्त गुणे -
१४७ क्रोध कषायी - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.\असं.
१४८ माया कषायी - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.\असं.
१४९ लोभ कषायी - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.\असं.
२. कषाय चतुष्ककी अपेक्षा ओघ व आदेश प्ररूपणा-
चारों कषाय-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.१९७-२११)
१९७ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा संचय भी प्रवेशाधीन है
१९८ क्षपक ८-९ सं.गुणे -
१९९ उपशमक १० विशेषाधिक -
२०० क्षपक १० सं.गुणे -
२०१ अक्षपक व अनुपशमक ७ सं.गुणे गु.=क्रोध, मान, माया, लो. २ ३ ४ ७
२०२ - ६ दुगुने ४ ६ ८ १४
२०३ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
२०४ - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
२०५ - ३ सं.गुणे गुणकार=सं.समय
२०६ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
२०७ - १ अनन्त गुणे -
२०८ उपरोक्त में सम्यक्त्व उप. स्तोक मूलोघवत्
- - क्षा. असं./सं.गुणे मूलोघवत्
- - वे. असं./सं.गुणे मूलोघवत्
२०९ उपशमकोंमें उप. स्तोक मूलोघवत्
- सम्यक्त्व क्षा. सं.गुणे मूलोघवत्
२१० चारित्र उप. स्तोक -
२११ - क्षप. सं.गुणे -
अकषायी-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू. २१२-२१५)
२१२ अकषायी ११ स्तोक कुल ५४ जीव (प्रदेश व संचय)
२१३ अकषायी १२ दुगुने कुल १०८ जीव
२१४ अकषायी १४ ऊपर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा
- अकषायी १३ ऊपर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा
२१५ अकषायी - सं.गुणे संचय की अपेक्षा
११. ज्ञान मार्गणा-
१. सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू. १५०-१५५)
१५० मनःपर्यय ज्ञानी - स्तोक संख्यात मात्र
१५१ अवधि ज्ञानी - असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
१५२ मतिश्रुत ज्ञानी - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/असं. परस्पर तुल्य
१५३ विभंग ज्ञानी - असं.गुणे गुणकार=ज.प्र./असं.
१५४ केवलज्ञानी - अनन्तुगणे -
१५५ मतिश्रतु अज्ञानी - अनन्तगुणे -
२. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
१. अज्ञान-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२१६-२१७)
२१६ मतिक्षुत अज्ञान २ स्तोक गुणकार=पल्य/असं.
२१७ - १ अनन्तगुणे गुणकार=सर्व जीव/असं.
२१६ विभंग ज्ञान २ सर्वतः स्तोक पल्य/असं.
२१७ - १ असं.गुणे गुणकार=अंगु./असं.\ज.प्र.
२. मतिश्रुत अवधिज्ञान-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२१८-२२९)
२१८ उपशमक ८-१० स्तोक प्रवेश अपेक्षा/तुल्य
२१९ उपशमक ११ ऊपर तुल्य संचय भी प्रवेशाधीन
२२० क्षपक ८-१० दुगुणे संचय भी प्रवेशाधीन
२२१ क्षपक १२ ऊपर तुल्य संचय भी प्रवेशाधीन
२२२ अक्षपक व अनुपशमक ७ सं.गुणे मूलोघवत्
२२३ अक्षपक व अनुपशमक ६ दुगुने -
२२४ अक्षपक व अनुपशमक ५ प./असं.गुणे तिर्यंच भी देव भी
२२५ अक्षपक व अनुपशमक ४ आ./असं./गु. -
२२६ उपरोक्तमें सम्यक्त्व उप. स्तोक मूलोघवत्
२२६ - क्षा. असं.व सं.गु मूलोघवत्
२२६ - वे. असं.व सं.गु मूलोघवत्
२२७ उपशमकोंमें सम्य. उप. स्तोक मूलोघवत्
२२७ - क्षा. सं.गुणे मूलोघवत्
२२८ चारित्र उप. स्तोक मूलोघवत्
२२९ - क्षप. सं.गुणे मूलोघवत्
३. मनःपर्यय ज्ञान-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२३०-२४१)
२३० उपशमक ८-१० स्तोक तुल्य प्रवेश व संचय
२३१ - ११ ऊपर तुल्य तुल्य प्रवेश व संचय
२३२ क्षपक ८-१० दुगुणे तुल्य प्रवेश व संचय
२३३ - १२ ऊपर तुल्य तुल्य प्रवेश व संचय
२३४ अक्षपक व अनुपशमक ७ सं.गुणे -
२३५ - ६ दुगुणे -
२३६ उपरोक्त में सम्य. उप. स्तोक -
२३७ - क्षा. स.गुणे क्षायिक सम्यक्त्वके साथ अधिक मनःपर्ययज्ञानी होते हैं।
२३८ - वे. सं.गुणे -
२३९ उपशमकोंमें सम्य. उप. स्तोक मूलोघवत्
- - क्षा. सं.गुणे मूलोघवत
२४० चारित्र उप. स्तोक मूलोघवत्
२४१ - क्षप. सं.गुणे मूलोघवत्
४. केवलज्ञान-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२४२-२४३)
२४२ अयोगी १४ स्तोक प्रवेश व संचय
२४२ सयोगी १३ ऊपर तुल्य प्रवेशापेक्षया
२४३ सयोगी १३ सं.गुणे संचयापेक्षया
२. संयम मार्गणा-
१. सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू.१५६-१५९)
१५६ संयत सामान्य - स्तोक संख्यात मात्र
१५७ संयतासंयत - असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
१५८ न संयत न असंयत (सिद्ध) - अनन्तगुणे -
१५९ असंयत - अनन्तगुणे -
२. विशेषकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू.१६०-१६७)
१६० सूक्ष्म साम्पराय - स्तोक -
१६१ परिहार विशुद्धि - सं.गुणे -
१६२ यथाख्यात - सं.गुणे -
१६३ सामायिक - सं.गुणे -
१६३ छेदोपस्थापना - ऊपर तुल्य -
१६४ संयत सामान्य - विशेषाधिक उपरोक्त सर्वका योग
१६५ संयतासंयत - असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
१६६ न संयत न असंयत (सिद्ध) - अनन्तगुणे -
१६७ असंयते - अनन्त गुणे -
३. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
१. संयम सामान्य-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२४४-२५७)
२४४ उपशमक ८-१० स्तोक प्रवेश व संचय दोनों कुल ५४ जीव
२४५ - १ उपर तुल्य -
२४६ क्षपक ८-१० दुगुने प्रवेश व संचय दोनों कुल १०८ जीव
२४७ - १२ ऊपर तुल्य -
२४८ अयोगी १४ ऊपर तुल्य कुल १०८ जीव
२४८ सयोगी १३ ऊपर तुल्य प्रवेशापेक्षया
२४९ सयोगी १३ सं.गुणे संचयापेक्षया
२५० अक्षपक व अनुपशमक ७ सं.गुणे -
२५१ - ६ दुगुने -
२५२ उपरोक्त में सम्यक्त्व उप. स्तोक -
२५३ - क्षा. सं.गुणे -
२५४ - वे. सं.गुणे -
२५५ उपशमकोंमें सम्यक्त्व उप. स्तोक -
२५५ - क्षा. सं.गुणे -
२५६ चारित्र उप. स्तोक -
२५७ - क्षप. सं.गुणे -
२. सामायिक छेदोपस्थापना संयम-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२५८-२६७)
२५८ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य/प्रवेशकी अपेक्षा कुल ५४ जीव संचय भी प्रवेशाधीन
२५९ क्षपक ८-९ दुगुने -
२६० अक्षपक व अनुपशमक ७ सं.गुणे -
२६१ अक्षपक व अनुपशमक ६ दुगुने -
२६२ उपरोक्तमें सम्यक्त्व उप. स्तोक -
२६३ - क्षा. सं.गुणे -
२६४ - वे. सं.गुणे -
२६५ उपशमकोंमें सम्य. उप. स्तोक -
२६५ - क्षा. सं.गुणे -
२६६ चारित्र उप. स्तोक -
२६७ - क्षप. सं.गुणे
३. परिहार विशुद्धि संयम-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२६८-२७१)
२६८ अक्षपक व अनुपशमक ७ स्तोक -
२६९ - ६ दुगुने -
- उपरोक्त में सम्यक्त्व उप. - अभाव
२७० - क्षा. स्तोक -
२७१ - वे. सं.गुणे -
४. सूक्ष्म साम्पराय संयम-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१०८/सू.२७२-२७३)
२७२ उपशमक १० स्तोक -
२७३ क्षपक १० दुगुने -
५. यथाख्यात संयम-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२७४)
२७४ ११ स्तोक प्रवेश व संचय
- १२ दुगुने प्रवेश व संचय
- १४ ऊपर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा
- १३ ऊपर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा
- - सं.गुणे संचय की अपेक्षा
६. संजदासजद-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२७५-२७८)
२७५ सामान्य ५ - अल्पबहुत्व नहीं है
२७६ सम्यक्त्व क्षा. स्तोक तिर्यंचों में अभाव
२७७ - उप. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
२७८ - वे. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
७. असंयत-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२७९-२८५)
२७९ सामान्य २ स्तोक -
२८० - ३ सं.गुणे -
२८१ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
२८२ - १ अनन्तगुणे गुणकार=सिद्धXअनन्त
२८३ सम्यक्त्व उप. स्तोक -
२८४ - क्षा. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
२८५ - वे. असं.गुणे -
१३. दर्शन मार्गणा-
१. सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू.१७५-१७८)
१७५ अवधि - स्तोक पल्य/असं.
१७६ चक्षु - असं.गुणा गुणकार=ज.प्र/असं.
१७७ केवल - अनन्तगुणा सिद्धों की अपेक्षा
१७८ अचक्षु - अनन्तगुणा -
२. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२८६-२८९)
२८६ अचक्षु २-१२ मूलोघवत् -
२८७ चक्षु १ ४थेसे असं.गुणे गुणकार=ज.प्र./असं.
२८६ - २-१२ मूलोघवत् -
२८८ अवधि ४-१२ अवधि ज्ञानवत् -
२८९ केवल १३-१४ केवलज्ञानवत् -
१४. लेश्या मार्गणा-
१. सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू. १७९-१८५) (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या ५५५/९८५/२)
१७९ शुक्ल - स्तोक पल्य/असं.
१८० पद्म - असं.गुणे गुणकार=ज.प्र./असं.
१८१ तेज - सं.गुणे -
१८२ अलेश्या - अनन्तगुणे -
१८३ कापोत - अनन्तगुणे -
१८४ नील - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.\असं.
१८५ कृष्ण - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.\असं.
२. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
१. कृष्ण नील कापोत-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.२९०-२९९)
२९० सामान्य २ स्तोक -
२९१ - ३ सं.गुणे गुणकार=स.समय
२९२ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
२९३ - १ अनन्तगुणे -
२९४ कृष्णनील में सम्य. क्षा. स्तोक -
२९५ - उप. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
२९६ - वे. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
२९७ कापोत में सम्य. उप. स्तोक अल्प संचय काल
२९८ - क्षा. असं.गुणे प्रथम नरक की अपेक्षा गुणकार=आ./असं.
२९९ - वे. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
२. तेज, छद्म. लेश्या-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.३००-३०७)
३०० सामान्य ७ स्तोक संख्यात प्रमाण मनुष्य
३०१ - ६ दुगुणे -
३०२ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/अंसं.
३०३ - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३०४ - ३ सं.गुणे -
३०५ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३०६ - १ असं.गुणे गुणकार=ज.प्र./असं.
३०७ - ४-७ मूलोघवत् -
३. शुक्ल लेश्या-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.३०८-३२७)
३०८ उपशमक ८-१० स्तोक प्रवेशापेक्षया/परस्पर तुल्य संचय भी प्रवेशाधीन
३०९ - १४ ऊपर तुल्य -
३१० क्षपक ८-१० दुगुणे प्रवेशाधीन १०८ जीव
३११ - १२ ऊपर तुल्य प्रवेशाधीन
३१२ - १३ ऊपर तुल्य प्रवेशापेक्षया
३१३ - - सं.गुणे संचयापेक्षया
३१४ अक्षपक व अनुपशमक ७ सं.गुणे गुणकार=सं.समय
३१५ - ६ दुगुने -
३१६ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
३१७ - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३१८ - ३ सं.गुणे -
३१९ - १ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३२० - ४ सं.गुणे -
३२१ गुणस्थान ४में सम्य. उप. स्तोक -
३२२ - क्षा. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३२३ - वे. सं.गुणे अनुदिशादिमें वेदक कम होते हैं
३२४ गुणस्थान ५में सम्य. - मूलोघवत -
३२५ उपशमकों में उप. स्तोक मूलोघवत् - सम्यक्त्व क्षा. दुगुने मूलोघवत्
३२६ चारित्र उप. स्तोक -
३२७ - क्षा सं.गुणे -
१५. भव्य मार्गणा-
१. सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू.१८६-१८८)
१८६ अभव्य - स्तोक जघन्य युक्तानन्त मात्र
१८७ न भव्य न अभव्य - अनन्तगुणे -
१८८ भव्य - अनन्तगुणे -
२. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.३२८-३२९)
३२८ भव्य १-१४ मूलोघवत् -
३२९ अभव्य १ नहीं है -
१६. सम्यक्त्व मार्गणा-
१. सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू.१८९-१९२)
१८९ सम्यग्मिथ्या. - स्तोक -
१९० सम्यग्दृष्टि - असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१९१ सिद्ध - अनन्तगुणे -
१९२ मिथ्यादृष्टि सासादन - अनन्तगुणे सम्यग्दष्टिमें अन्तर्भाव
अन्य प्रकार-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू.१९३-२००)
१९३ सासादन - स्तोक -
१९४ स्तोक - सं.गुणे गुणकार=सं.समय
१९५ सम्यग्मिथ्यात्व उप. असंगुणे गुणकार=आ./असं.
१९६ - क्षा. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१९७ - वे. असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
१९८ - सा. विशेषाधिक सबका योग
१९९ सिद्ध - अनन्तगुणे -
२०० मिथ्यादृष्टि - अनन्तगुणे -
२. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.३३०-३५४)
३३० सम्यक्त्व सा. ४-१२ अवधिज्ञा.वत् -
- - १३-१४ मूलोघवत् -
३३१ उपशमकोमें क्षायिक ८-१० स्तोक परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों
३३२ - १ ऊपर तुल्य प्रवेश व संचय दोनों
३३३ क्षपकोंमें क्षायिक ८-१० सं.गुणे -
३३४ - १२ ऊपर तुल्य -
३३५ - १४ ऊपर तुल्य प्रवेशापेक्षया
- - १३ ऊपर तुल्य प्रवेशापेक्षया
३३६ - - सं.गुणे संचयापेक्षया
३३७ अक्षपक व अनुपशमकोंमें क्षायिक ७ असं.गुणे -
३३८ - ६ दुगुने -
३३९ - ५ सं.गुणे मनुष्यके अतिरिक्त अन्य जातियोंमें अभाव
३४० ४ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
३४२ वेदक सम्यक्त्व ७ स्तोक -
३४३ - ६ दुगुने -
३४४ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
- - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३४७ उपशम सम्यक्त्व ८-१० स्तोक परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों अपेक्षा
३४८ - ११ ऊपर तुल्य परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों अपेक्षा
३४९ - ७ सं.गुणा -
३५० - ६ दुगुने -
३५१ - ४५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं
३५२ - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३५४ सासादन २ नहीं है -
३५४ मिथ्यादर्शन १ नहीं है -
१७. संज्ञी मार्गणा-
१. सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११.सू.२०१-२०३)
२०१ संज्ञी - स्तोक ज.प्र./असं.मात्र
२०२ न संज्ञी न असंज्ञी सिद्ध अनन्तुगणे -
२०३ असंज्ञी - अनन्तुगणे -
२. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.३५५-३५७)
३५५ संज्ञी २१४ मूलोघवत् -
३५६ संज्ञी १ असंयतसे ज.प्र./असं.गुणे
३५७ असंज्ञी १ नहीं है -
१८. आहारक मार्गणा-
१. सामान्य प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११ सू.२०३-२०५)
२०३ अनाहारक अबन्धक - - -
- - १४ स्तोक -
२०४ अनाहारक बन्धक - अनन्तगुणे विग्रह गतिमें
२०५ आहारक - असं.गुणे गुणकार=अन्तर्मुहूर्त
२. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.३५८-३७४)
३५८ उपशमक ८-१० स्तोक परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों (५४ जीव)
३५९ - ११ ऊपर तुल्य -
३६० क्षपक ८-१० दुगुने प्रवेश व संचय। १०८ जीव
३६१ - १२ ऊपर तुल्य -
३६२ - १३ ऊपर तुल्य प्रवेशापेक्षया
३६३ - - सं.गुणे संचयापेक्ष्या
३६४ अक्षपक अनुपशमक ७ सं.गुणे सं. मनुष्यमात्र
३६५ - ६ दुगुने -
३६६ - ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.तिर्यंचोंकी अपेक्षा
३६७ - २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
३६८ - ३ सं.गुणे -
३६९ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं
३७० - १ अनन्तगुणे -
३७१ उपरोक्तमें सम्यक्त्व उप. - मूलोघवत्
- - क्षा. - मूलोघवत्
- - वे. - मूलोघवत्
३७२ उपशमकोंमें सम्यक्त्व उप. स्तोक मूलोघवत्
- - क्षा. सं.गुणे मूलोघवत्
३७३ चारित्र उप. स्तोक कुल जीव ५४
३७४ - क्षप. दुगुणे कुल जीव १०८
३. अनाहारककी ओघ व आदेश प्ररूपणा
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ५/१,८/सू.३७५-३८२)
३७५ सयोगी १३ स्तोक समुद्घात गत केवली (६० जीव)
३७६ अयोगी १४ सं.गुणे संचय (५९८ जीव)
३७७ विग्रह गतिवाले २ प./असं/गुणे तिर्यंचोंकी अपेक्षा
३७८ - ४ आ./असं.गुणे विग्रह गति प्राप्त
३७९ - १ अनन्तगुणे विग्रह गति प्राप्त
३८० असंयतोमें सम्यक्त्व उप. स्तोक द्वितीयोपशम वाले ही अनाहारक होते हैं
३८१ - क्षा. सं.गुणे गुणकार=सं.सयम
३८२ - वे. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
१. सिद्धोंकी अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा
( राजवार्तिक अध्याय संख्या १०/९/१४/६४७/२७)
क्रम मार्गणा अल्पबहुत्व
१. असंहरण सिद्ध व जन्मसिद्धकी अपेक्षा
- संहरण सिद्ध स्तोक
- जन्म सिद्ध सं.गुणे
२. क्षेत्रकी अपेक्षा- (केवल संहरण सिद्धोंमें)
- ऊर्ध्व लोक सिद्ध स्तोक
- अधोलीक सिद्ध सं.गुणे
- तिर्यग्लोक सा. सं.गुणे
- तिर्यग्लोक विशेष:- -
- समुद्र सा. सिद्ध स्तोक
- द्वीप सा. सिद्ध सं.गुणे
- लवण समुद्र सिद्ध स्तोक
- कालोक समुद्र सिद्ध स्तोक
- जम्बूद्वीप सिद्ध सं.गुणे
- धातकी सिद्ध सं.गुणे
- पुष्करार्ध सं.गुणे
३. कालकी अपेक्षा
- उत्सर्पिणी सिद्ध स्तोक
- अवसर्पिणी विशेषाधिक
- अनुत्सर्पिण्यनवसर्पिणी (विदेहक्षेत्र) सं. गुणे
- प्रत्युत्पन्ननयापेक्षया एक समय में सिद्धि होती है। अतः अल्पबहुत्वका अभाव है।
४. अन्तरकी अपेक्षा
निरन्तर होनेवालोंकी अपेक्षा-
- आठ शमय अन्तर से स्तोक
- सात शमय अन्तर से सं.गुणे
- छः शमय अन्तर से सं.गुणे
- पांच शमय अन्तर से सं.गुणे
- चार शमय अन्तर से सं.गुणे
- तीन शमय अन्तर से सं.गुणे
- दो शमय अन्तर से सं.गुणे
सान्तर होनेवालोंकी अपेक्षा-
- छः मास अन्तर से स्तोक
- एक मास अन्तर से सं. गुणे
- यव मध्य अन्तर से सं.गुणे
- अधस्तन यव मध्य अन्तर से सं. गुणे
- उपरिम यव मध्य अन्तर से विशेषाधिक
५. गतिकी अपेक्षा
- प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा सिद्ध गतिमें ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं है
- अनन्तर गति अपेक्षा केवल मनुष्य गतिसे ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं हैं
एकान्तर गति अपेक्षा-
- तिर्यग्गति से स्तोक
- मनुष्य गति से सं.गुणा
- नरक गति से सं.गुणा
- देव गति से सं.गुणा
६. वेदानुयोगकी अपेक्षा
- प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा अवेद भावमें ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं है
भूत नयापेक्षया-
- नपुंसक वेद से स्तोक
- स्त्री वेद से सं.गुणे
- पुरुष वेद से सं.गुणे
७. तीर्थंकर व सामान्य केवलीकी अपेक्षा
- तीर्थंकर सिद्ध स्तोक
- सामान्य सिद्ध सं.गुणे
८. चारित्रकी अपेक्षा
- प्रत्युत्पन्न नयापेक्षया निर्विकल्प चारित्र से सिद्धि होने से अल्पबहुत्व नहीं है
- अनन्तर चारित्रापेक्षा यथाख्यातसे ही होनेसे अल्पबहुत्व नहीं है
एकान्तर चारित्रापेक्षा-
- पंच चारित्र सिद्ध स्तोक
- चार चारित्र सिद्ध (परिहार विशुद्धि रहित) सं.गुणे
९. प्रत्येक बुद्ध व बोधित बुद्धकी अपेक्षा
- प्रत्येक बुद्ध स्तोक
- बोधित बुद्ध सं.गुणे
१०. ज्ञानकी अपेक्षा
- प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा केवल ज्ञानसे ही होनेसे अल्पबहुत्व नहीं
अनन्तर ज्ञानापेक्षा-
- दो ज्ञान सिद्ध स्तोक
- चतुःज्ञान सिद्ध सं.गुणे
- त्रिज्ञान सिद्ध सं.गुणे
विशेषापेक्षया-
- मति श्रुत मनःपर्यय स्तोक
- मति श्रुत से सं.गुणे
- मति श्रुत अवधि मनःपर्याय ज्ञानसे सं.गुणे
- मति श्रुत अवधिसे सं.गुणे
११. अवगाहनाकी अपेक्षा
- जघन्य अवगाहनासे स्तोक
- उत्कृष्ट अवगाहनासे सं.गुणे
- यवमध्य अवगाहनासे सं.गुणे
- अधस्तन यवमध्य सं.गुणे
- उपरि यवमध्य विशेषाधिक
१२. युगपत् प्राप्त सिद्धोंकी संख्याकी अपेक्षा
- १०८ सिद्ध स्तोक
- १०८-५० तक के अनन्त गुणे
- ४९-२५ तक के असं. गुणे
- २४-१ तक के सं.गुणे
मनुष्य पर्याय से-
(धवला पुस्तक संख्या ९/पृ.३१८)
- १-१ की संख्यासे होनेवाले स्तोक
- २-२ की संख्यासे होनेवाले विशेषाधिक
- २ से अधिक संख्यासे होनेवाले सं.गुणे
मनुष्यणी पर्यायसे-
(धवला पुस्तक संख्या ९/पृ.३१८)
- २ से अधिक संख्यासे होनेवाले स्तोक
- २-२ की संख्यासे सं.गुणे
- १-१ की संख्यासे सं.गुणे
२. १-१,२-२ आदि करके संचय होने वाले जीवोंकी अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
(धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,६६/३१८-३२१)
संकेत - नो.कृ. (नोकृति संचित) = १-१ करके संचित होनेवाले,
अव. (अवक्तव्य संचित) = २-२ करके संचित होनेवाले,
कृ. (कृति संचित) = ३ आदि करके संचित होनेवाले,
पृष्ठ मार्गणा संकेत अल्पबहुत्व
१. गति मार्गणा-
(१) स्वस्थान की अपेक्षा-
३१८ नरक गति सामान्य नो.कृ. स्तोक
- नरक गति समान्य अव. विशेषाधिक
- - कृ. ज.प्र./असं.गुणे
३१८ १-७ पृथिवी - नरक सामान्यवत्
३१८ देवगति सामान्य व विशेष - नरक गतिवत्
३१८ तिर्यञ्च गति सा. विशेष - नरक गतिवत्
३१९ मनुष्य गति सा. विशेष - नरक गतिवत्
सिद्धोमें विशेषता-
३१८ सिद्ध सामान्य कृ. स्तोक
- - अव. सं.गुणे
- - नो.कृ. सं.गुणे
३१८ मनुष्य प.से प्राप्त सिद्ध नो.कृ. स्तोक
- - अव. विशेषाधिक
- - कृ. सं.गुणे
- मनुष्यणी प.से प्राप्त सिद्ध कृ. स्तोक
- - अव. सं.गुणे
- - नो.कृ सं.गुणे
(२) परस्थान की अपेक्षा-
३१९ ७वीं पृथिवी नो.कृ. स्तोक
- - अव. विशेषाधिक
३१९ ६-१ली पृथिवी तक सबमें पृथक् पृथक् अपने उपरकी अपेक्षा नो.कृ. सं.गुणे
- - अव. विशेषाधिक
३१९ ७वीं पृथिवी कृ. असं.गुणे
३१९ ६ठी पृथिवी कृ. असं.गुणे
३१९ ५वीं पृथिवी कृ. असं.गुणे
३१९ ४थी पृथिवी कृ. असं.गुणे
३२० ३री पृथिवी कृ. असं.गुणे
३२० २री पृथिवी कृ. असं.गुणे
३२० १ली पृथिवी कृ. असं.गुणे
(३) स्व परस्थान की अपेक्षा-
३२० मनुष्यणी कृ. स्तोक
- - अव. सं.गुणी
- - नो.कृ. सं.गुणी
३२० मनुष्य नो.कृ. असं.गुणी
- - अव. विशेषाधिक
३२० तिर्यंच योनिमति नो.कृ. असं.गुणी
- - अव. विशेषाधिक
३२० नारकी नो.कृ. असं.गुणी
- - अव. विशेषाधिक
३२० देव नो.कृ. असं.गुणी
- - अव. विशेषाधिक
३२० देवियाँ नो.कृ. असं.गुणी
- - अव. विशेषाधिक
३२० मनुष्य कृ. असं.गुणी
३२० नारकी कृ. असं.गुणी
३२० तिर्यंच योनिमति कृ. असं.गुणी
३२० देव कृ. असं.गुणी
३२० देवियाँ कृ. असं.गुणी
३२० तिर्यंच सामान्य नो.कृ. अनन्तगुणी
३२० - अव. विशेषाधिक
- - कृ. असं.गुणी
३२० सिद्ध कृ. अनन्तगुणी
- - अव. सं.गुणी
- - नो.कृ. सं.गुणी
२. इन्द्रिय मार्गणा-
स्व व परस्थानकी अपेक्षा-
३२१ चतुरिन्द्रिय नो.कृ. स्तोक
- - अव. विशेषाधिक
३२१ त्रीन्द्रिय नो.कृ. विशेषाधिक
- - अव. विशेषाधिक
३२१ द्वीन्द्रिय नो.कृ. विशेषाधिक
- - अव. विशेषाधिक
३२१ पंचेन्द्रिय नो.कृ. असं.गुणे
- - अव. विशेषाधिक
- - कृ. असं.गुणे
३२१ चतुरिन्द्रिय कृ. विशेषाधिक
३२१ त्रीन्द्रिय कृ. विशेषाधिक
३२१ द्वीन्द्रिय कृ. विशेषाधिक
३२१ एकेन्द्रिय नो.कृ. अनन्त गुणे
- - अव. विशेषाधिक
- - कृ. असं.गुणे
नोट - इससे आगेके सर्व स्थान यथायोग्य एकेन्द्रिवत् जानना।
३. अन्य मार्गणाएँ-
स्व व परस्थानोंकी अपेक्षा-
३१९ मनःपर्यय ज्ञान - नरक गतिवत्
३१९ क्षायिक सम्यग्दृष्टि - नरक गतिवत्
३१९ संयत सामान्य विशेष - नरक गतिवत्
३१९ अनुत्तरादि विमानोंसे मनुष्य होनेवाले देव - नरक गतिवत्
३१९ तथा अन्य संख्यात राशियाँ - नरक गतिवत्
३. तेईस वर्गणाओं सम्बन्धी प्ररूपणाएँ-
२३ वर्गणाओंके नाम-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५,५६/सू.७६-९७/५४-११८)
१. एक प्रदेशप्रमाणु वर्गणा; २. संख्याताणु वर्गणा; ३. असंख्याताणु वर्गणा; ४. अनन्ताणु वर्गणा; ५. आहारक वर्गणा; ६. अग्राह्य वर्गणा; ७. तैजस शरीर वर्गणा; ८. अग्राह्य वर्गणा; ९.भाषा वर्गणा; १०. अग्राह्य वर्गणा; ११. मनो वर्गणा; १२. अग्राह्य वर्गणा; १३. कार्मण वर्गणा; १४. ध्रुव स्कन्ध मार्गणा; १५. सान्तरनिरन्तर वर्गणा; १६. ध्रुव शून्य वर्गणा; १७. प्रत्येक शरीर वर्गणा; १८. ध्रुव शून्य वर्गणा; १९. बादर निगोद वर्गणा; २०. ध्रुव शूऩ्य वर्गणा; २१. सूक्ष्म निगोद वर्गणा; २२. ध्रुव शून्य वर्गणा; २३. महा स्कन्ध वर्गणा।
वर्ग.सं. अल्पबहुत्व गुणकार
१. एक श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाणकी अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १४/पृ.१६३-१६९)
१ स्तोक एक संख्या प्रमाण
२ सं.गुणी एक कम उत्कृष्ट संख्या
३ असं.गुणी स्व राशि/असं.
५ अनन्तगुणी स्व राशि/असं.
७ अनन्तगुणी स्व राशि/अनन्त
९ अनन्तगुणी उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि
११ अनन्तगुणी उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि
१३ अनन्तगुणी उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि
४ अनन्तगुणी अभव्य X अनन्त
६ अनन्तगुणी अभव्य X अनन्त
८ अनन्तगुणी अभव्य X अनन्त
१० अनन्तगुणी अभव्य X अनन्त
१२ अनन्तगुणी अभव्य X अनन्त
१४ अनन्तगुणी सर्व जीव राशि X अनन्त
१५ अनन्तगुणी सर्व जीव राशि X अनन्त
१६ अनन्तगुणी सर्व जीव राशि X अनन्त
१७ असं.गुणी पल्य/असं.
१८ अनन्तगुणी अनन्तलोक
१९ असं.गुणी ज.श्रे./अस.
२० अस.गुणी अंगु/असं.
२१ असं.गुणी पल्य/असं.
२३ असं.गुणी ज.प्र./असं.
२२ असं.गुणी पल्य/असं.
२. नाना श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाणकी अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १४/पृ.१६९-१७९ तथा २०८-२१२)
२३ स्तोक एक संख्या प्रमाण
१९ असं.गुणे आ./असं.=असं.लोक
२१ असं.गुणे आ./असं.=असं.लोक
१७ असं.गुणे आ./असं.=असं.लोक
१५ अनन्त गुणे सर्व जीव राशि X अनन्त
१४ अनन्त गुणे सर्व जीव राशि X अनन्त
१३ अनन्त गुणे अभव्य X अनन्त
१२ अनन्त गुणे अभव्य X अनन्त
११ अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
१० अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
९ अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
८ अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
७ अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
६ अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
५ अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
४ अनन्त गुणे स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
१ अनन्त गुणे जघन्य परीतानन्त
२ सं.गुणे २ कम उत्कृष्ट संख्यात
३ असं.गुणी -
१६ - ध्रुव शून्य वर्गणाओंका कथन नहीं किया क्योंकि वह पुद्गल रूप नहीं है आकाश रूप है
१८ - -
२० - -
२२ - -
३. नाना श्रेणी प्रदेश प्रमाणकी अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १४/पृ.२१३-२१५)
१७ स्तोक -
२३ अनन्त गुणे अनन्त लोक
१९ असं.गुणे असं.लोक
२१ असं.गुणे असं.लोक
१५ अनन्त गुणे सर्व जीव X अनन्त
१४ अनन्त गुणे सर्व जीव X अनन्त
१३ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
१२ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
११ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
१० अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
९ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
८ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
७ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
६ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
५ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
४ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
१ अनन्त गुणे स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
२ असं.गुणे -
३ असं.गुणे -
१६ - ध्रुव शून्य वर्गणाका कथन नहीं किया क्योंकि वह पुद्गल रूप नहीं है आक्राश रूप है।
१८ - -
२० - -
२२ - -
४. एक श्रेणी द्रव्य, नाना श्रेणी द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा-
(धवला पुस्तक संख्या १४/पृ.२१५-२२३)
वर्ग.सं. एकश्रेणी या नाना श्रेणी अल्पबहुत्व गुणकार
१ एक श्रेणी द्रव्य स्तोक एक संख्या ही है
२३ नाना श्रेणी द्रव्य स्तोक एक संख्या ही है
२ एक श्रेणी द्रव्य सं.गुणी एक कम उत्कृष्ट संख्या
१९ नाना श्रेणी द्रव्य असं.गुणी असं.लोक
२१ नाना श्रेणी द्रव्य असं.गुणी असं.लोक
१७ नाना श्रेणी द्रव्य असं.गुणी असं.लोक
३ एक श्रेणी द्रव्य असं.गुणी असं.लोक
५ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
४ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
७ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
६ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
९ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
८ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
११ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
१० एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
१३ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
१२ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त अभव्य X अनन्त
१४ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त सर्व जीव X अनन्त
१५ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त सर्व जीव X अनन्त
१६ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त सर्व जीव X अनन्त
१७ एक श्रेणी द्रव्य असं.गुणी पल्य/असं.
१७ नाना श्रेणी द्रव्य असं.गुणी असं.लोक
१८ एक श्रेणी द्रव्य अनन्त गुणी अनन्त लोक
१९ एक श्रेणी द्रव्य असं.गुणे पल्य/असं.
२० एक श्रेणी द्रव्य असं.गुणे अंगु/असं.
२१ एक श्रेणी द्रव्य असं.गुणे आ./असं.
२३ एक श्रेणी द्रव्य असं.गुणे ज.प्र./असं.
२२ एक श्रेणी द्रव्य असं.गुणे पल्य/असं.
नाना श्रेणियों में
- कुल द्रव्य कुल प्रदेश - -
२३ X कुल प्रदेश विशेषाधिक -
१९ X कुल प्रदेश असं.गुणे -
२१ X कुल प्रदेश असं.गुणे -
१५ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे सर्व जीव X अनन्त
१५ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे सर्व जीव X अनन्त
१४ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे सर्व जीव X अनन्त
१४ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे अभव्य X अनन्त
१३ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे निचला स्थान\स्व अन्योन्याभ्यस्त राशि
१३ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे अभव्य X अनन्त
१२ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे.नं. १३ वत्
१२ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे एक अधिक अधस्तन अध्वार
११ कुल प्रदेश X अनन्त गणे पीछें नं. १३ वत्
११ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे. नं. १२ वत्
१० कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछें नं. १३ वत्
१० X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे नं. १२ वत् ९ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे नं. १३ वत्
९ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे नं. १२ वत्
८ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे नं. १३ वत्
८ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे नं. १२ वत्
७ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे नं. १३ वत्
७ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे नं. १२ वत्
६ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे नं. १३ वत्
६ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे नं. १२ वत्
५ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे नं. १३ वत्
५ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे नं. १२ वत्
४ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे नं. १३ वत्
४ X कुल प्रदेश अनन्त गुणे पीछे नं. १२ वत्
१ कुल प्रदेश X अनन्त गुणे पीछे नं.१३ वत्
१ X कुल प्रदेश ऊपर समान -
२ कुल प्रदेश X सं.गुणा एक कम उत्कृष्ट संख्या
२ X कुल प्रदेश सं.गुणा संख्यात
३ कुल प्रदेश X असं.गुणे असं.लोक
३ X कुल प्रदेश असं.गुणे असं.लोक
१६ - - नाना श्रेणीमें इनका कथन नहीं होता क्योंकि ये आकाश रूप हैं, पुद्गल रूप नहीं।
१८ - - -
२० - - -
२१ - - -
४. पंच शरीर बद्ध वर्गणाओंकी प्ररूपणा-
१. पंच वर्गणाओं के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,२/३७)
वर्गणा का नाम अल्पबहुत्व गुणकार
आहारक वर्गणा स्तोक -
तैजस वर्गणा अनन्त गुणे -
भाषा वर्गणा अनन्त गुणे -
मनो वर्गणा अनन्त गुणे -
कार्माण वर्गणा अनन्त गणे -
२. पंच वर्गणाओं की अवगाहना की अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५,६/सू.७९०-७९६/५६२)
औ. योग्य आहारक वर्गणा स्तोक X
वै. योग्य आहारक वर्गणा असं.गुणे ज.श्रे/अस.
आ. योग्य आहारक वर्गणा असं.गुणे ज.श्रे/असं.
तै. योग्य तैजस वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
भाषा योग्य भाषा वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
मन योग्य मनो वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
कर्म योग्य कार्मण वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
३. पंच शरीर बद्ध विस्रसोपचयोंकी अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १४/५,६/३२४)
औ. योग्य आहारकका ज. विस्र स्तोक -
औ. योग्य आहारकका उ. विस्र असं.गुणे पल्य/असं.
वै. योग्य आहारकका ज. विस्र अनन्त गुणे सर्व जीवXअनन्त
वै. योग्य आहारकका उ. विस्र असं.गुणे पल्य/असं.
आ. योग्य आहारकका ज. विस्र अनन्त गुणे सर्व जीवXअनन्त
आ. योग्य आहारकका उ. विस्र असं. गुणे पल्य/असं.
तै. योग्य तैजस ज. विस्र अनन्त गुणे सर्व जीवXअनन्त
तै. योग्य तैजस उ. विस्र असं. गुणे पल्य/असं.
का. योग्य तैजस ज. विस्र अनन्त गुणे सर्व जीवXअनन्त
का. योग्य तैजस ज. विस्र असं.गुणे पल्य/असं.
४. प्रत्येक वर्गणा में समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५,६/७८५-७८९/५६०)
औ. योग्य आहारक वर्गणा स्तोक X
वै. योग्य आहारक वर्गणा असं.गुणे ज.श्रे./असं.
आ.योग्य आहारक वर्गणा असं.गुणे ज.श्रे/असं.
तै. योग्य तैजस वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
भाष योग्य भाषा वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
मन योग्य मनो वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
कर्म योग्य कार्मण वर्गणा अनन्त गुणे सिद्ध/अनन्त
५. शरीर बद्ध विस्रसोपचयों की स्व व परस्थान अपेक्षा-
स्वस्थान अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५,६/सू.५४४-५४८/४५३)
ज.औ.का ज. पदमें ज. विस्र. स्तोक -
ज. औ.का उ. पदमें उ. विस्र. अनन्त गुणे जीवXअनन्त
उ. औ.का ज. पदमें ज. विस्र. अनन्त गुणे जीवXअनन्त
उ. औ.का उ. पदमें उ. विस्र. अनन्त गुणे जीवXअनन्त
वैक्रियिक के चारों स्थान उपरोक्तवत् -
आहारक के चारों स्थान उपरोक्तवत् -
तैजस के चारों स्थान उपरोक्तवत् -
कार्मण के चारों स्थान उपरोक्तवत् -
परस्थान अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५,६/सू.५४४-५५२/४५५)
ज. औ.का ज. पदमें ज. विस्र. स्तोक -
ज. औ.का उ. पदमें उ. विस्र. अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. औ.का ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. औ.का उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. वै. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. वै. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. वै. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. वै. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. आ. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. आ. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. आ. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. आ. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. तै. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. तै. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. तै. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. तै. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. का. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
ज. का. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. का. ज. पदमें ज. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
उ. का. उ. पदमें उ. विस्र अनन्तगुणे जीवXअनन्त
६. पंच शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५-६/सू.४९७-५०१/४२९)
औदारिक शरीर प्रदेश स्तोक -
वैक्रियक शरीर प्रदेश असं. ज.श्रे./असं.
आहार शरीर प्रदेश असं. ज.श्रे./असं.
तैजस शरीर प्रदेश अनन्त सिद्ध/अनन्त
कार्मण शरीर प्रदेश अनन्त सिद्ध/अनन्त
(सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या २/३८-३९/१०२-१०३) ( राजवार्तिक अध्याय संख्या २/३८-३९/४/१४८) (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या २४६/५१०/२)
७. औदारिक शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५,६/सू.५७५-५८०/४६६)
त्रस कायिक के प्रदेश स्तोक -
अग्नि कायिक के प्रदेश असं. गुणे -
पृथिवी कायिक के प्रदेश विशेषाधिक -
अप कायिक के प्रदेश विशेषाधिक -
वायु कायिक के प्रदेश विशेषाधिक -
वनस्पति कायिक के प्रदेश अनन्त गुणे -
८. इन्द्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
( राजवार्तिक अध्याय संख्या १/१९/६/२३१)
चक्षु सर्वतःस्तोक -
श्रोत्र सं.गुणे -
घ्राण विशेषाधिक -
जिह्वा असं.गुणे -
स्पर्शन अनन्त गुणे -
५. पंच शरीरोंकी अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ-
१. सूक्ष्मता व स्थूलता की अपेक्षा-
(सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या २/३७/१००)
सूत्र नाम शरीर या मार्गणा अल्पबहुत्व गुणकार
- औदारिक शरीर सर्वतःस्थूल -
- वैक्रियक शरीर ततःसूक्ष्म -
- आहारक शरीर ततःसूक्ष्म -
- तैजस शरीर ततःसूक्ष्म -
- कार्मण शरीर ततःसूक्ष्म -
२. औदारिक शरीर विशेष की अवगाहनाकी अपेक्षा-
(ष.स्र.११/४,२,५/सू.३१-९९/५६-७०) (धवला पुस्तक संख्या १/१,३,४/२५१/७) (धवला पुस्तक संख्या ४/१,३,२३/९४/७) (धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,२/१७/४)
लब्ध्य पर्याप्तके स्थान
३१ निगोद या बन. साधारण सू.अप.की ज. अवगाहना स्तोक अंगु./पल्य\असं.
३२ वायु सू. अप.की ज. असं.गुणी आ./असं.
३३ तेज सू. अप.की ज. असं.गुणी आ./असं.
३४ अप् सू. अप.की ज. असं.गुणी आ./असं.
३५ पृथिवी सू. अप.की ज. असं.गुणी आ./असं.
३६ वायु वा. अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
३७ तेज वा. अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
३८ जल वा. अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
३९ पृथिवी वा. अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
४० निगोद या बन. साधारण बा.अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
४१ निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येक अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
४२ अप्रतिष्ठित प्रत्येक बन.अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
४३ द्वीन्द्रिय अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
४४ त्रीन्द्रिय अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
४५ चतुरिन्द्रिय अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
४६ पंचेन्द्रिय अप.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
निवृत्ति पर्याप्तक व निवृत्त्यपर्याप्तक के स्थान
४७ बन. साधारण या निगोद सू.प.की.ज. ऊपर से असं.गुणी आ./असं.
४८ उपरोक्त अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
४९ उपरोक्त प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
५० वायु सू. प.की.ज. असं.गुणी आ./असं.
५१ वायु सू. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
५२ वायु सू. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
५३ तेज सू. प.की ज. असं.गुणी आ./असं.
५४ तेज सू. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
५५ तेज सू. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
५६ अप सू. प.की ज. असं.गुणी आ./असं.
५७ जल सू. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
५८ जल सू. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
५९ पृथ्वी सू. प.की ज. असं.गुणी आ./असं.
६० पृथ्वी सू. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
६१ पृथ्वी सू. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
६२ वायु बा. प.की ज. असं.गुणी आ./असं.
६३ वायु बा. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
६४ वायु बा. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
६५ तेज बा. प.की ज. असं.गुणी आ./असं.
६६ तेज बा. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
६७ तेज बा. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
६८ अप् बा. प.की ज. असं.गुणी आ./असं.
६९ अप् बा. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
७० अप् बा. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
७१ पृथ्वी बा. प.की ज. असं. गुणी आ./असं.
७२ पृथ्वी बा. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
७३ पृथ्वी बा. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
७४ बन, साधारण या निगोद बा.प.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
७५ उपरोक्त बा. अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
७६ उपरोक्त बा. प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
७७ बन. प्रतिष्ठित प्रत्येक या निगोद प.की. ज. असं.गुणी पल्य/असं.
७८ उपरोक्त अप.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
७९ उपरोक्त प.की उ. विशेषाधिक अंगु./असं.
८० वन. अप्रतिष्ठित प्रत्येक प.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
८१ द्वीन्द्रिय प.की ज. असं.गुणी पल्य/असं.
८२ त्रीन्द्रिय प.की ज. सं.गुणी सं.समय
८३ चतुरिन्द्रिय प.की ज. सं.गुणी सं.समय
८४ पंचेन्द्रिय प.की ज. सं.गुणी सं.समय
८५ त्रीन्द्रिय अप.की उ. सं.गुणी सं.समय
८६ चतुरिन्द्रिय अप.की उ. सं.गुणी सं.समय
८७ द्वीन्द्रिय अप.की उ. सं.गुणी सं.समय
८८ बन.अप्रतिष्ठित प्रत्येक अप.की उ. सं.गुणी सं.समय
८९ पंचेन्द्रिय अप.की उ. सं.गुणी सं.समय
९० त्रीन्द्रिय प.की उ. सं.गुणी सं.समय
९१ चतुरिन्द्रिय प.की उ. सं.गुणी सं.समय
९२ द्वीन्द्रिय प.की उ. सं.गुणी सं.समय
९३ वन. अप्रतिष्ठित प्रत्येक प.की उ. सं.गुणी सं.समय
९४ पंचेन्द्रिय प.की उ. सं.गुणी सं.समय
९५ एक सूक्ष्म से अन्य सूक्ष्म = आ./असं.गुणी -
९६ सूक्ष्म से बादर = असं.गुणी -
९७ बादर से क्ष्म = आ./असं.गुणी -
९८ बादर से बादर = पल्य/असं.गुणी -
९९ बादर से दूसरा बादर = सं.समय गुणी -
३. पंचेन्द्रियों की अवगाहनाकी अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १/१,१,५/२३५/४)
- चक्षु इन्द्रिय अवगाहना स्तोक -
- श्रोत्र सं.घुणी -
- घ्राण विशेषाधिक -
- जिह्वा असं.गुणी -
- स्पर्शन सं.गुणी -
६. पाँचों शरीरोंके स्वामियोंकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १४/५,६/सू.१६९-२३४/३०१-३१८)
सूत्र मार्गणा शरीर स्वामित्व अल्पबहुत्व गुणकार
१. ओघ प्ररूपणा-
१६९ जीवसामान्य ४ स्तोक -
१७० अशरीरी (सिद्ध) - अनन्त गुणे सिद्ध/असं.
१७१ जीव सामान्य २ अनन्त गुणे सर्वजीव/अनंत
१७२ जीव सामान्य ३ असं.गुणे अन्तर्मुहूर्त
२. आदेश प्ररूपणा-
१. गति मार्गणा-
नरक गति-
१७३ नारकी सा. २ स्तोक नार./आ.\असं.
१७४ - ३ असं.गुणे आ./असं.
१७५ १-७ पृथिवी २ स्तोक -
तिर्यंच गति-
१७६ तिर्यंच सामान्य ४ स्तोक -
- २ अनन्त गुणे -
- ३ असं.गुणे सं.आव.
१७७ पंचेन्द्रिय सा., प., ४ स्तोक -
१७८ व योनिमति २ असं.गुणे ज.श्रे./असं.
१७९ - ३ असं.गुणे आ./असं.
१८० पंचेन्द्रित ति. अप. २,३ नारकी सा.वत् -
मनुष्य गति-
१८१ मनुष्य सामान्य ४ स्तोक संख्य. मात्र
टी - २ असं.गुणे -
- - ३ असं.गुणे आ./असं.
१८२ मनुष्यप.व मनुष्यणी ४ स्तोक -
१८३ - २ सं.गुणे -
१८४ - ३ सं.गुणे -
१८५ मनुष्य अप. - नारकी सा.वत् -
देव गति-
१८६ देव सामान्य २ स्तोक -
१८७ - ३ असं.गुणे आ./असं.
१८८ भवनवासीसे अपराजित तक २,३ देव सा. वत् पर गुणाकार पल्य/असं.
१८९ सर्वार्थसिद्धि २ स्तोक -
१९० - ३ सं.गुणे सं.समय
२. इन्द्रिय मार्गणा-
१९१ एके.सा.,बा.एके. ४ तिर्यंच सा.वत् -
- सा.,बा.एके.प. २,३ या ओघवत्
१९२ बा.एके.अप.सू.एके.सा.,प.,अप.विकलत्रय सा.व.प.अप.पंचेन्द्रिय अप. २ स्तोक
१९३ - ३ असं.गुणे सं.आ.
१९४ पंचेन्द्रिय सा.व प. - मनुष्य सा. वत्
३. काय मार्गणा-
१९५ पृ., जल व वन. के बा.सू.प.अप.सर्व विकल्प अग्नि व वायु के बा.अप.तथा सू के प. अप.सर्व विकल्प त्रस के केलव अप. २ स्तोक -
१९६ - ३ असं.गुणे आ./असं.
१९७ तेज व वायु के सा.व बा. केवल प. त्रस सा.व.प. पंचेन्द्रिय प. वत् -
४. योग मार्गणा-
१९८ पाँच मन व पाँच वचन योगी ४ स्तोक -
१९९ - ३ असं.गुणे ज.श्रे./असं.
२०० काय योग सामान्य - ति.या ओघवत् -
२०१ औदारिक काययोगी ४ स्तोक -
२०२ - ३ असं.गुणे सर्वजीव राशि के अनंत प्रथम वर्गमूल प्रमाण अल्पबहुत्व नहीं है
२०३ औदारिक मिश्र, वैक्रियक व मिश्र, आहारक व मिश्र - X एक ही पद है
२०४ कार्मण काय योग ३ स्तोक -
२०५ - २ अनन्त गुणे जीवोंके अनंत प्रथम वर्गमूल
५. वेद मार्गणा-
२०६ स्त्री व पुरुष वेदी - पंचेन्द्रियसा. वत् -
२०७ नपुंसक वेदी - ति.या ओघवत् -
२०८ अपगत वेदी X X एक ही पद है
७. ज्ञान मार्गणा-
२०९ मतिश्रुत अज्ञानी - ति.या ओघवत् -
२१० विभंग ज्ञानी स्तोक -
२११ - ३ असं.गुणे ज.श्रे./असं.
२१२ मतिश्रुत अवधि ज्ञानी - पंचे.पर्याप्तवत् -
२१३ मनःपर्ययज्ञानी ४ स्तोक -
२१४ - ३ सं.गुणे सं.समय
२१५ केवलज्ञानी X X एक ही पद है
८. संयम मार्गणा-
२१६ संयत सा. ४ स्तोक -
- सामायिक व छेदो. ३ सं.गुणे सं.समय
२१७ परिहार विशुद्धि सूक्ष्म साम्पराय व यथाख्यात X X एक ही पद है
२१८ संयतासंयत ४ स्तोक -
- असंयत ३ असं.गुणे आ./असं.
९. दर्शन मार्गणा-
२२१ चक्षु व अवधि द. - पंचेन्द्रिय प. वत् -
२१९ अचक्षु दर्शनी - ति.या ओघवत् -
१०. लेश्या मार्गणा-
२२० कृष्ण नील, कापोत - ति.या ओघवत् -
२२१ पीत पद्म लेश्या - पंचेन्द्रिय प.वत् -
२२३ शुक्ल लेश्या २ स्तोक -
२२४ - ४ असं.गुणे पल्य/असं.
२२५ - ३ असं.गुणे आ./असं.
११. भव्यत्व मार्गणा-
२२० भव्य व अभव्य - ति.या ओघवत् -
१२. सम्यक्त्व मार्गणा-
२२६ सम्यग्दृष्टि सा.वेदक व सासादन २ पंचेन्द्रिय प. वत् -
२२७ क्षायिक व उशम ४ स्तोक सं. मात्र
२२८ - ३ असं.गुणे पल्य/असं.
२२९ - - असं.गुणे आ./असं.
२३० सम्यग्मिथ्यादृष्टि ४ स्तोक -
- - ३ असं.गुणे आ./असं.
२३१ मिथ्यादृष्टि - ति.याओघवत् -
१३. संज्ञी मार्गणा-
२३२ संज्ञी - पंचन्द्रिय प.वत् -
२३३ असंज्ञी - ति.या ओघवत् -
१४. आहारक मार्गणा-
२३४ आहारक ४ स्तोक औदारिक काय योगवत्
- - ३ अनन्त गुणे -
२३५ अनाहारक ३ स्तोक कार्मण काय योगवत्
- - २ अनन्तगुणे -
७. जीवभावोंके अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा-
१. संयम विशुद्धि या लब्धि स्थानोंकी अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ७/२,११/सू.१६८-१७४/५६४-५६७) (धवला पुस्तक संख्या ६/१,९-८,१४/२८६)
सूत्र विषय अल्पबहुत्व विशेष या गुणकार
१६८ सामायिक व छेदो. की जघन्य चारित्र लब्धि सर्वतःस्तोक मिथ्यात्वके अभिमुख
१६९ परिहार विशुद्धि की जघन्य चारित्र लब्धि अनन्तगुणी सामायिकके अभिमुख
१७० परिहार विशुद्धि की उत्कृष्ट चारित्र लब्धि अनंतगुणी -
१७१ सामायिक छेदो. की उत्कृष्ट चारित्र लब्धि अनंत गुणी अनिवृत्तिकरण का अन्त समय
१७२ सूक्ष्म साम्पराय की जघन्य चारित्र लब्धि अनंत गुणी श्रेणी से उतरते हुए
१७३ सूक्ष्म साम्परायकी उत्कृष्ट चारित्र लब्धि अनंतगुणी स्वस्थानका अन्त समय
१७४ यथाख्यात की अजघन्य अनुत्कृष्ट चारित्र लब्धि अनंतगुणी जघन्य व उत्कृष्टपनेका अभाव है।
२. १४ जीव समासोंसे संक्लेश व विशुद्धि स्थानोंकी अपेक्षा
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ११/४,२,६/सू.५१-६४/२०५-२२४) (म.व.२/२,३/३)
५१ एकेन्द्रिय सू. अप. स्तोक -
५२ एकेन्द्रिय वा. अप. असं.गुणे पल्य/असं.
५३ एकेन्द्रिय सू. प. असं.गुणे पल्य/असं.
५४ एकेन्द्रिय बा. प. असं.गुणे पल्य/असं.
५५ द्वीन्द्रिय अप. असं.गुणे पल्य/असं.
५६ द्वीन्द्रिय प. असं.गुणे पल्य/असं.
५७ त्रीन्द्रिय अप. असं.गुणे पल्य/असं.
५८ त्रीन्द्रिय प. असं.गुणे पल्य/असं.
५९ चतुरिन्द्रिय अप. असं.गुणे पल्य/असं.
६० चतुरिन्द्रिय प. असं.गुणे पल्य/असं.
६१ पंचेन्द्रिय असंज्ञी अप. असं.गुणे पल्य/असं.
६२ पंचेन्द्रिय असंज्ञी प. असं.गुणे पल्य/असं.
६३ पंचेन्द्रिय संज्ञी अप. असं.गुणे पल्य/असं.
६४ पंचेन्द्रिय संज्ञी प. असं.गुणे पल्य/असं.
३. दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्य के अवस्थानोंकी अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा-
(कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या १/१,१५-२०/पृ.३३०-३६२)
गाथापृ. विषय काल अल्पबहुत्व विशेष
१५/३३० दर्शनोपयोग सा. ज. स्तोक असं.आ.मात्र
- चक्षुइन्द्रियावग्रह ज. विशेषाधिक -
- श्रोत्र इन्द्रियावग्रह ज. विशेषाधिक -
- घ्राण इन्द्रियावग्रह ज. विशेषाधिक -
- जिह्वा इन्द्रियावग्रह ज. विशेषाधिक -
- मनोयोग सा. ज. विशेषाधिक -
- वचन योग सा. ज. विशेषाधिक -
- काय योग सा. ज. विशेषाधिक -
- स्पर्शन इन्द्रियावग्रह ज. विशेषाधिक -
- अन्यतम अवाय ज. विशेषाधिक -
- अन्यतम ईहा ज. विशेषाधिक -
- श्रुत ज्ञान ज. विशेषाधिक -
- श्वासोच्छ्वास ज. विशेषाधिक -
१/३४२ सशरीरकेवलीका केवल ज्ञान ज. विशेषाधिक -
- उपरोक्तका दर्शन ज. ऊपर तुल्य -
- शुक्ल लेश्या सा. ज. ऊपर तुल्य -
- एकत्व वितर्क-अविचार ध्यान ज. विशेषाधिक -
- पृथक्त्व वितर्क विचार ज. विशेषाधिक -
- श्रेणीसे पतित सूक्ष्म साम्पराय ज. विशेषाधिक -
- श्रेणी पर अवरोहक सूक्ष्म साम्पराय ज. विशेषाधिक -
- क्षपक श्रेणी गत सूक्ष्म साम्पराय ज. विशेषाधिक -
१७/३४५ मान कषाय सा. ज. विशेषाधिक -
- क्रोध कषाय सा. ज. विशेषाधिक -
- माया कषाय सा. ज. विशेषाधिक -
- लोभ कषाय सा. ज. विशेषाधिक -
- क्षुद्र भव ग्रहण ज. विशेषाधिक -
- कृष्टिकरण ज. विशेषाधिक -
१८/३४७ संक्रामण ज. विशेषाधिक -
- अपवर्तन ज. विशेषाधिक -
- उपशान्त कषाय ज. विशेषाधिक -
- क्षीण मोह ज. विशेषाधिक -
- क्षपक ज. विशेषाधिक -
२०/३४८ चक्षुदर्शन उ. विशेषाधिक ऊपरवाले की अपेक्षा
- चक्षु इन्द्रियावग्रह उ. दुगुना -
- श्रोत्र इन्द्रियावग्रह उ. विशेषाधिक -
- घ्राण इन्द्रियावग्रह उ. विशेषाधिक -
- जिह्वा उ. विशेषाधिक -
- मनोयोग सा. उ. विशेषाधिक -
- वचन योग सा. उ. विशेषाधिक -
- काय योग सा. उ. विशेषाधिक -
- स्पर्शन इन्द्रियावग्रह उ. विशेषाधिक -
- अन्यतम अवाय उ. दुगुना -
नोट-यदि व्याघात या मरण न हो तब ही वह अल्पबहुत्व लागू होता है। मरण हो जाने पर तो किसि भीस्थानका जघन्य काल एक समय तक बन जाता है।
(कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या १/१,१९/३४८)
विषय काल अल्पबहुत्व विशेष
अन्यदम.ईहा उ. विशेषाधिक -
श्रुत ज्ञान उ. दुना -
श्वासोच्छ्वास उ. विशेषाधिक -
सशरीर केवली का केवल ज्ञान उ. विशेषाधिक सोपसर्ग केवली की अपेक्षा
उपरोक्त का दर्शन उ. ऊपर तुल्य -
शुक्ल लेश्या या. उ. ऊपर तुल्य -
एकत्व वितर्क अविचारि ध्यान उ. विशेषाधिक -
पृथक्त्व वितर्क विचार ध्यान उ. दुगुना -
अवरोहक सू. सम्पराय उ. विशेषाधिक -
आरोहक सू. सम्यपराय उ. विशेषाधिक -
क्षपक सू. सम्पराय उ. विशेषाधिक -
मान कषाय सा. उ. दुगुना -
क्रोध कषाय सा. उ. विशेषाधिक -
माया कषाय सा. उ. विशेषाधिक -
लोभ कषाय सा. उ. विशेषाधिक -
क्षुद्र भव उ. विशेषाधिक -
कृष्टि करण उ. विशेषाधिक -
संक्रामक उ. विशेषाधिक -
अपवर्तना उ. विशेषाधिक -
उपशान्त कषाय उ. दूना -
क्षीण मोह उ. विशेषाधिक -
उपशमक उ. दुगुना -
क्षपक उ. विशेषाधिक -
४. उपशम व क्षपण काल की अपेक्षा-
(कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या ४/३,२२/$६१६-६२६/३२६-३२८)
चारित्र मोह-
क्षपक अनिवृत्ति करण सा. स्तोक -
क्षपक अपूर्व करण सा. सं.गुणा -
उपशामक अनिवृत्ति करण सा. सं.गुणा -
उपशामक अपूर्व करण सा. सं.गुणा -
दर्शन मोह-
क्षपक अनिवृत्ति करण सा. सं.गुणा -
क्षपक अपूर्व करण सा. सं.गुणा -
अनन्तानुबन्धी विसंयोजकका अनिवृत्ति करण सा. सं.गुणा -
उपरोक्त अपूर्व करण सा. सं.गुणा -
उपशामक अनिवृत्ति करण सा. सं.गुणा -
उपशामक अपूर्व करण सा. सं.गुणा -
५. कषाय काल की अपेक्षा-
(गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या २९६/६४०)
नरक गति-
लोभ सा. स्तोक अन्तर्मु. -
माया सा. सं.गुणा -
मान सा. सं.गुणा -
क्रोध सा. सं.गुणा -
देवगति-
क्रोध सा. स्तोक अन्तर्मु. -
मान सा. सं.गुणा -
माया सा. सं.गुणा -
लोभ सा. सं.गुणा -
६. नोकपाय व ध काल की अपेक्षा-
(कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या ३/३,२२/$३८६-३८७/पृ.२१३)
उच्चारणाचार्य की अपेक्षा चारों गतियोमें अन्य आचार्यों की अपेक्षा मनुष्य व तिर्यंच में
पुरुष वेद सा. स्तोक २ (संदृष्टि)
स्त्री वेद सा. सं.गुणा ४ (संदृष्टि)
हास्यरति सा. सं.गुणा १६ (संदृष्टि)
अरति शोक सा. सं.गुणा ३२ (संदृष्टि)
नपुंसक वेद सा. विशेषाधिक ४२ (संदृष्टि)
अन्य आचार्यों की अपेक्षा नरक व देव में
पुरुष वेद सा. स्तोक ३ (संदृष्टि)
स्त्री वेद सा. सं.गुणा ९ (संदृष्टि)
हास्य रति सा. विशेषाधिक ११ (संदृष्टि)
नपुंसक वेद सा. सं.गुणा २२ (संदृष्टि)
अरति शोक सा. विशेषाधिक २३ (संदृष्टि)
७. मिथ्यात्व काल विशेष की अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १०/४,२,४,६२/२८४)
देवगति में जन्म धारनेवालेके - स्तोक -
मनुष्य गतिमें उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
तिर्यंच संज्ञी पंचेन्द्रियमें उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
तिर्यंच असंज्ञी पंचेन्द्रियमें उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
चतुरिन्द्रियमें उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
त्रीन्द्रियमें उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
द्वीन्द्रियमें उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
एकेन्द्रिय बा.में उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
एकेन्द्रिय सू.में उत्पत्ति योग्य - सं.गुणा -
८. जीवोंके योग स्थानोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
लक्षण - उपपाद योग = जो उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें एक समय मात्र के लिए हो।
एकान्तानुवृद्धि योग = जो उत्पन्न होने के द्वीतीय समयसे लेकर शरीर पर्याप्तिसे अपर्याप्त रहनेके अन्तिम समय तक निवृत्त्य पर्याप्तकोंमें रहता है। लब्ध्यपर्याप्तकोंके आयु बन्धके योग्य कालमें अपने जीवितके त्रिभागमें परिणाम योग्य होता है। उससे नीचे एकान्तानुवृद्धि योग होता है। इसका जघन्य व उत्कृष्ट काल एक समय है।
परिणाम योग = पर्याप्त होनेके प्रथम समयसे लेकर आगे जीवनपर्यन्त सब जगह परिणाम योग ही होता है। निवृत्त्यपर्याप्तके परिणामयोग नहीं होता।
(धवला पुस्तक संख्या १०/४,२,१७३/४२०-४२१) (दे. अल्पबहुत्व/३/११/७/३)
नोट - गुणकार सर्वत्र पल्य/असं. जानना
(धवला पुस्तक संख्या १०/पृ.४२०)
सूत्र स्वामी योग अल्पबहुत्व
१. योग सामान्यके यव मध्य कालकी अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १०/४,२,४/सू.२०६-२१२/५०३-५०४)
२०६ मध्य स्थान ८ समय योग्य - सर्वतःस्तोक
२०७ दोनों पार्श्व भागों में - परस्पर तुल्य
- ७ समय योग्य - असं.गुणे
२०८ ६ समय योग्य - असं.गुणे
२०९ ५ समय योग्य - असं.गुणे
२१० ४ समय योग्य ३ व २ समय योग्य स्थान ऊपर ही होते हैं नीचे नही असं.गणे
उपरिम भाग-
२११ ३ समय योग्य - असं.गुणे
२१२ २ समय योग्य - असं.गुणे
२. योग स्थानोंके स्वामित्व सामान्यकी अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १०/४,२,४,१७३/४०३)
- सात ल.अप. ३ स्थान स्तोक
- एकेन्द्रिय सू.बा. ऊप. परस्पर तुल्य
- तीन विकलत्रय एकां. स्तोक
- पंचेन्द्रिय संज्ञी असंज्ञी परि. परस्पर तुल्य
- यही सात नि. अप. २ स्थान परस्पर तुल्य
- - ऊप.एका. असं.गुणे
यही सात नि.प. १ स्थान परि. असं.गुणे
३. योग स्थान सामान्य में परस्पर अल्पहुत्व-
(धवला पुस्तक संख्या १०/४,२,४,१७३/४०४)
- सातों ल.अप.(दे.ऊपर) उप. स्तोक
- - एकां. असं.गुणे
- - परि. असं.गुणे
- सातों नि.अप. उप. स्तोक
- - एका. असं.गुणे
- सातों नि.प. परि. एक ही पदमें अल्पबहुत्व नहीं
नोट - यह स्व-स्थान प्ररूपणा जानना।
४. १४ जीव समासोंमें जघन्योंत्कृष्ट योग स्थानोंकी अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या १०/४,२,४/सू.१४५-१७२/३९६-४०३)
१४५ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.उप. स्तोक
१४६ एकेन्द्रिय बा. ल. अप. ज.उप. असं.गुणे
१४७ द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.उप. असं.गुणे
१४८ त्रीन्द्रिय ल. अप. अप ज.उप. असं.गुणे
१४९ चतुरिन्द्रिय ल. अप. ज.उप. असं.गुणे
१५० पंचेन्द्रिय असंज्ञी ल. अप. ज.उप. असं.गुणे
१५१ पंचेन्द्रिय संज्ञी ल. अप. ज.उप. असं.गुणे
१५२ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. उ.परि. असं.गुणे
१५३ एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उ.परि. असं.गुणे
१५४ एकेन्द्रिय सू. नि. अप. ज.परि. असं.गुणे
१५५ एकेन्द्रिय बा. नि. अप. ज.परि. असं.गुणे
१५६ एकेन्द्रिय सू. नि. प. उ.परि असं.गुणे
१५७ एकेन्द्रिय बा. नि. प. उ.परि. असं.गुणे
१५८ द्वीन्द्रिय नि. अप. उ.एकां. असं.गुणे
१५९ त्रीन्द्रिय नि. अप. उ.एकां. असं.गुणे
१६० चतुरिन्द्रिय नि. अप. उ.एकां. असं.गुणे
१६१ पंचेन्द्रिय असंज्ञी नि. अप. उ.एकां. असं.गुणे
१६२ पंचेन्द्रिय संज्ञी नि. अप. उ.एकां. असं.गुणे
१६३ द्वीन्द्रिय नि. प. ज.परि. असं.गुणे
१६४ त्रीन्द्रिय नि. प. ज.परि. असं.गुणे
१६५ चतुरिन्द्रिय नि. प. ज.परि. असं.गुणे
१६६ पंचेन्द्रिय असंज्ञी नि. प. ज.परि. असं.गुणे
१६७ पंचेन्द्रिय संज्ञी नि. प. ज.परि. असं.गुणे
१६८ द्वीन्द्रिय नि. प. उ.परि. असं.गुणे
१६९ त्रीन्द्रिय नि. प. उ.परि. असं.गुणे
१७० चतुरिन्द्रिय नि. प. उ.परि. असं.गुणे
१७१ पंचेन्द्रिय असंज्ञी नि. प. उ.परि. असं.गुणे
१७२ पंचेन्द्रिय संज्ञी नि. प. उ.परि. असं.गुणे
५. प्रत्येक योगके अविभाग प्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या १०/४,२,४,१७३/४०४-४२०)
नोट - गुणकार सर्वत्र पल्य/असं. जानना
स्वस्थान अल्पबहुत्व-
४०४ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.उप. स्तोक
- - उ. उप. असं.गुणे
- - ज.एकां. असं.गुणे
- - उ.एकां. असं.गुणे
- - ज.परि. असं.गुणे
- - उ.परि असं.गुणे
४०५ एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उपरोक्त छहों उपरोक्तवत्
- तीनों विकलत्रय ल. अप. स्थान उपरोक्तवत्
- पंचे. संज्ञी असंज्ञी ल.अप. - उपरोक्तवत्
- एकेन्द्रिय सू. नि. अप. ज.उप. स्तोक
- - उ.उप. असं.गुणे
- - ज.एकां. असं.गुणे
- - उ.एकां. असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. उपरोक्त चारों उपरोक्तवत्
- विकलत्रय नि. अप. स्थान उपरोक्तवत्
- पंचे. संज्ञी असंज्ञी अप. - उपरोक्तवत्
- इति षट् निवृत्ति अपर्याप्त - उपरोक्तवत्
४०५ एकेन्द्रिय सू. नि. प. ज.परि. स्तोक
- - उ.परि. असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. नि. प. उपरोक्त दोनों स्थान उपरोक्तवत्
- विकलत्रय नि. प. - उपरोक्तवत्
- पंचे. संज्ञी असंज्ञी नि. प. - उपरोक्तवत्
- इति षट् निवृत्ति पर्याप्त - उपरोक्तवत्
परस्थान अल्पबहुत्व-
४०६ बन. साधारण या निगोद-
- एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.उप. स्तोक
- उपरोक्त नि. अप. ज.उप. असं.गुणे
- उपरोक्त ल. अप. उ.उप. असं.गुणे
- उपरोक्त नि. अप. उ.उप असं.गुणे
- उपरोक्त ल. अप. ज.एकां. असं.गुणे
- उपरोक्त नि. अप. ज.एकां. असं.गुणे
- उपरोक्त ल. अप. उ.एकां. असं.गुणे
- उपरोक्त नि. अप. उ.एकां. असं.गुणे
- उपरोक्त ल. अप. ज.परि असं.गुणे
- उपरोक्त नि. अप. उ.परि असं.गुणे
- उपरोक्त ल. प. ज.परि असं.गुणे
- उपरोक्त नि. प. उ.परि असं.गुणे
४०७ एकेन्द्रिय बा. के - उपरोक्तवत्
- उपरोक्त सर्व विकल्प - -
४०७ द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.उप. स्तोक
- द्वीन्द्रिय नि. अप. ज.उप असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. उ. उप. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. अप. उ.उप. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.एकां. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. उ.एकां. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.परि. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल अप. उ.परि असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. अप. ज.एकां. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. अप. उ.एकां. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. प. ज.परि. असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. प. उ.परि. असं.गुणे
- त्रीन्द्रियसे संज्ञी पंचे. तकके उपरोक्त सर्व विकल्प - उपरोक्तवत्
सर्व परस्थान अल्पबहुत्व-
(१) जघन्य स्थानोंको अपेक्षा सर्व परस्थानालाप
४०८ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.उप. स्तोक
- एकेन्द्रिय सू. नि. अप. ज.उप. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. ज.उप. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. ज.उप. असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.उप. असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय नि. अप. ज.उप. असं.गुणा
- त्रीन्द्रिय ल. अप. ज.उप. असं.गुणा
- त्रीन्द्रिय नि. अप. ज.उप. असं.गुणा
- चतुरिन्द्रिय ल. अप. ज.उप. असं.गुणा
- चतुरिन्द्रिय नि. अप. ज.उप. असं.गुणा
- पंचें. असंज्ञी ल. अप. ज.उप. असं.गुणा
- पंचे. असंज्ञी नि. अप. ज.उप. असं.गुणा
- पंचे. संज्ञी ल. अप. ज.उप. असं.गुणा
- पंचे. संज्ञी नि. अप. ज.उप. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय सू. नि. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- त्रीन्द्रिय ल. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- चतुरिन्द्रिय ल. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- पंचें असंज्ञी ल. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- पंचें संज्ञी ल. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.परि असं.गुणा
- त्रीन्द्रिय ल. अप. ज.परि असं.गुणा
- चतुरिन्द्रिय ल. अप. ज.परि असं.गुणा
- पंचें असंज्ञी ल. अप. ज.परि असं.गुणा
- पंचें संज्ञी ल. अप. ज.परि असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय नि. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- त्रीन्द्रिय नि. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- चतुरिन्द्रिय नि. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- पंचें असंज्ञी नि. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- पंचें संज्ञी नि. अप. ज.एकां. असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय नि. प. ज.परि. असं.गुणा
४१० त्रीन्द्रिय नि. प. ज.परि. असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय नि. प. ज.परि असं.गुणे
४११ पंचें असंज्ञी नि. प. ज.परि. असं.गुणे
- पंचें संज्ञी नि. प. ज.परि असं.गुणे
(२) उत्कृष्ट स्थानोंकी अपेक्षा सर्व परस्थानालाप
४११ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. उ.उप. स्तोक
- एकेन्द्रिय सू. नि. अप. उ.उप. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उ.उप. असं.गुणा
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. उ.उप. असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय ल अप. उ.उप. असं.गुणा
- द्वीन्द्रिय नि. अप. उ.उप. असं.गुणा
- त्रिन्द्रिय ल. अप. उ.उप. असं.गुणा
- त्रीन्द्रिय नि. अप. उ.उप. असं.गुणा
- चतुरिन्द्रिय ल. अप. उ.उप. असं.गुणा
- चतुरिन्द्रिय नि. अप. उ.उप. असं.गुणा
- पंचें. असंज्ञी ल. अप. उ.उप. असं.गुणा
४१२ पंचें. असंज्ञी नि. अप. उ.उप. असं.गुणा
- पंचें. संज्ञी ल. अप. उ.उप. असं.गुणा
- पंचें. संज्ञी नि. अप. उ.उप. असं.गुणा
४१२ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. उ.एकां. पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय सू. नि. अप. उ.एकां. पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उ.एकां. पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. उ.एकां. पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उ.परि पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. उ.परि पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय सू. ल. प. उ.परि पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय बा. नि. प. उ.परि पल्य/गुणा
- द्वीन्द्रिय ल. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- त्रीन्द्रिय ल. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- चतुरिन्द्रिय ल. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- पंचें. असंज्ञी ल. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- पंचें. संज्ञी ल. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
४१३ द्वीन्द्रिय ल. अप उ.परि पल्य/गुणा
- त्रीन्द्रिय ल. अप उ.परि पल्य/गुणा
- चतुरिन्द्रिय ल. अप उ.परि पल्य/गुणा
- पंचें. असंज्ञी ल. अप उ.परि पल्य/गुणा
- पंचें. संज्ञी ल. अप उ.परि पल्य/गुणा
- द्वीन्द्रिय नि. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- त्रीन्द्रिय नि. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- चतुरिन्द्रिय नि. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- पंचें. असंज्ञी नि. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- पंचें. संज्ञी नि. अप उ.एकां. पल्य/गुणा
- द्वीन्द्रिय नि. प. उ.परि. पल्य/गुणा
- त्रीन्द्रिय नि. प. उ.परि. पल्य/गुणा
- चतुरिन्द्रिय नि. प. उ.परि. पल्य/गुणा
- पंचें. असंज्ञी नि. प. उ.परि. पल्य/गुणा
४१४ पंचें. संज्ञी नि. प. उ.परि. पल्य/गुणा
(३) जघन्योत्कृष्टकी अपेक्षा ८४ स्थानीय सर्व परस्थानालाप-
४१४ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.उप. पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय सू नि. अप. ज.उप. पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय सू. ल. अप. उ.उप. पल्य/गुणा
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. ज.उप. पल्य/गुणा
४१४ एकेन्द्रिय सू. नि. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. उ.प. पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय ल. अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
४१५ द्वीन्द्रिय नि. अप. उ.उप पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय नि. अप. ज.उप पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय ल. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय ल.अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय नि. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय नि. अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय ल.अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी ल. अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय नि. अप. उ.उप पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी नि. अप. ज.उप पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी ल. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी ल. अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी नि. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी ल. अप. ज.उप. पल्य/असं.गुणे
४१६ एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी नि. अप. उ.उप. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय सू. नि. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. ज. एकां. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय सू. ल. अप. उ. एकां. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय सू. नि. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. नि. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
(४) श्रेणी/असं. मात्र योग स्थानों अन्तर
- एकेन्द्रिय सू. ल. अप. ज.परि पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. ज.परि पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय सू. ल. अप. उ.परि पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. ल. अप. उ.परि पल्य/असं.गुणे
४१७ एकेन्द्रिय सू. नि. प. ज.परि पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. नि. प. उ.परि पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय सू. नि. प. उ.परि पल्य/असं.गुणे
- एकेन्द्रिय बा. नि. प. उ.परि पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.एकां पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय ल. अप. ज.एकां पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय ल. अप. ज.एकां परि पल्य/असं.गुणे
- पंचे. असंज्ञी ल. अप. ज.एकां पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी ल. अप. ज.एकां पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. उ.एकां पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय ल. अप. उ.एकां पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय ल. अप. उ.एकां पल्य/असं.गुणे
- पंचें.असंज्ञी ल. अप. उ.एकां पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी ल. अप. उ.एकां पल्य/असं.गुणे
४१८ द्वीन्द्रिय ल. अप. ज.परि पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय ल. अप. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
४१८ चतुरिन्द्रिय ल. अप. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी ल. अप. जपरि. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी ल. अप. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय ल. अप. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय ल. अप. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
४१८ चतुरिन्द्रिय ल. अप. उपरि. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी ल. अप. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी ल. अप. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
- द्रीन्द्रिय नि. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय नि. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय नि. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी नि. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
४१९ पंचें. संज्ञी नि. अप. ज.एकां. पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय नि. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय नि. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी नि. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी नि. अप. उ.एकां. पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. प. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय नि. प. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय नि. प. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी नि. प. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. संज्ञी नि. प. ज.परि. पल्य/असं.गुणे
- द्वीन्द्रिय नि. प. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
- त्रीन्द्रिय नि. प. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
- चतुरिन्द्रिय नि. प. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
- पंचें. असंज्ञी नि. प. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
४२० पंचें. संज्ञी नि. प. उ.परि. पल्य/असं.गुणे
९. कर्मोंके सत्त्व व बन्ध स्थानोंकी अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
नोट - इस प्ररूपणाके विस्तारके लिए दे. अल्पबहुत्व ३/११/७
सूत्र मार्गणा व समास अल्पबहुत्व
१. जीवोंके स्थिति बन्ध स्थानोंकी अपेक्षा--
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ११/४,२,६/सू.३७-५०/१४२-१४७)
३७ एकेन्द्रिय सू. अप. स्तोक (पल्य/असं.)
३८ एकेन्द्रिय बा. अप. सं.गुणे
३९ एकेन्द्रिय सू. प. सं.गुणे
४० एकेन्द्रिय बा. प. सं.गुणे
४१ द्वीन्द्रिय अप. सं.गुणे
४२ द्वीन्द्रिय प. सं.गुणे
४३ त्रीन्द्रिय अप. सं.गुणे
४४ त्रीन्द्रिय प. सं.गुणे
४५ चतुरिन्द्रिय अप. सं.गुणे
४६ चतुरिन्द्रिय प. सं.गुणे
४७ पंचेन्द्रिय असंज्ञी अप. सं.गुणे
४८ पंचेन्द्रिय असंज्ञी प. सं.गुणे
४९ पंचेन्द्रिय संज्ञी अप. सं.गुणे
५० पंचेन्द्रिय संज्ञी प. सं.गुणे
नोट - इसीके स्व स्थान, पर स्थान व सर्व परस्थान सम्बन्धी विस्तृत प्ररूपणाएँ दे.
(धवला पुस्तक संख्या ११/४,२,६,५०/१४७-२०५)
सूत्र मार्गणा व समास स्थान अल्पबहुत्व
२. स्थिति बन्धमें जघन्योत्कृष्ट स्थानोंकी अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ११/४,२,६/सू.६५-१००/२२५-२३७)
६५ सूक्ष्म साम्पराय संयतके अन्तिम समयवर्ती ज. सर्वतःस्तोक
६६ एकेन्द्रिय बा. प. ज. असं.गुणा
- - - गुणकार=पल्य/असं.
६७ एकेन्द्रिय सू. प. ज. विशेषाधिक
- - - विशेष=पल्य/असं.
६८ एकेन्द्रिय बा. अप. ज. विशेष=पल्य/असं.
६९ एकेन्द्रिय सू. अप. ज. विशेष=पल्य/असं.
७० एकेन्द्रिय सू. अप. उ. विशेष=पल्य/असं.
७१ एकेन्द्रिय बा. अप. उ. विशेष=पल्य/असं.
७२ एकेन्द्रिय सू. प. उ. विशेष=पल्य/असं.
७३ एकेन्द्रिय बा. प. उ. विशेष=पल्य/असं.
७४ द्वीन्द्रिय प. ज. २५गुणा
७५ द्वीन्द्रिय अप. ज. विशेषाधिक
७६ द्वीन्द्रिय अप. उ. विशेष=पल्य/असं.
७७ द्वीन्द्रिय प. उ. विशेष=पल्य/असं.
७८ त्रीन्द्रिय प. ज. विशेष=पल्य/असं.
७९ त्रीन्द्रिय अप. ज. विशेष=पल्य/असं.
८० त्रीन्द्रिय अप. उ. विशेष=पल्य/असं.
८१ त्रीन्द्रिय प. उ. विशेष=पल्य/असं.
८२ चतुरिन्द्रिय प. ज. विशेष=पल्य/असं.
८३ चतुरिन्द्रिय अप. ज. विशेष=पल्य/असं.
८४ चतुरिन्द्रिय अप. उ. विशेष=पल्य/असं.
८५ चतुरिन्द्रिय प. उ. विशेष=पल्य/असं.
- - - विशेषाधिक
८६ पंञ्चेन्द्रिय असंज्ञी प. ज. विशेष=पल्य/असं.
८७ पंञ्चेन्द्रिय असंज्ञी अप. ज. विशेष=पल्य/असं.
८८ पंञ्चेन्द्रिय असंज्ञी अप. उ. विशेष=पल्य/असं.
८९ पंञ्चेन्द्रिय असंज्ञी प. उ. विशेष=पल्य/असं.
९० संयत सामान्य उ. सं.गुणा
- - - गुणकार=सं.समय
९१ संयतासंयत ज. गुणकार=सं.समय
९२ संयतासंयत उ. गुणकार=सं.समय
९३ असंयत सम्यग्दृष्टि प. ज. गुणकार=सं.समय
९४ असंयत सम्यग्दृष्टि अप. ज. गुणकार=सं.समय
९५ असंयत सम्यग्दृष्टि अप. उ. गुणकार=सं.समय
९६ असंयत सम्यग्दृष्टि प. उ. गुणकार=सं.समय
९७ पञ्चेंन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि प. ज. गुणकार=सं.समय
९८ उपरोक्त अप. ज. गुणकार=सं.समय
९९ - अप. उ. गुणकार=सं.समय
१०० उपरोक्त प. उ. गुणकार=सं.समय
सूत्र मार्गणा व समास अल्पबहुत्व
३. स्थिति बन्धके निषेकोंकी अपेक्षा-
(षट्खण्डागम पुस्तक संख्या ११/४,२,६/सू.१०२-१११/२३८-२५३)
१०२से१११ सर्व जीव समास मिथ्यादृष्टि-
आठों कर्मोंकी अपेक्षा प्रथम समयमें निक्षिप्त अधिक
- द्वितीय समयमें निक्षिप्त विशेष हीन
- तृतीय समयमें निक्षिप्त विशेष हीन
१०४ पंचे. संज्ञी प. सम्यग्दृष्टि आयु की अपेक्षा उपरोक्तवत्
नोट - विशेष देखो (नं.१४/८/१०,१२)?
४. मोहनीय कर्मके स्थिति सत्त्व स्थानोंकी अपेक्षा-
(कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या ४/३,२२/$६२८-६३९/३२९)
६२८ प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभके सत्कर्म स्थान सर्वतः स्तोक
६२९ स्त्री वेद के सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
- नपुं.वेद के सत्कर्म स्थान ऊपर तुल्य
६३० हास्यादि ६ नोकषायों के स्थिति सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३१ पुरुष वेद के सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३२ संज्वलन क्रोध के सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३३ संज्वलन मान के सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३४ संज्वलन माया के सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३५ संज्वलन लोभ के सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३६ अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ रूप चतुष्क के स्थिति सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३७ मिथ्यात्व के सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३८ सम्यक्त्व प्रकृतिके सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
६३९ सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिके सत्कर्म स्थान विशेषाधिक
५. बन्ध समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानोंकी अपेक्षा
अर्थ - बन्ध समुत्पत्तिक स्थान = कर्मका जितना अनुभाग बाँधा गया
(कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या ५/४,२२/$५७२/३३८)
स्वामी अल्पबहुत्व
संयमाभिमुख चरम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि स्तोक
सर्व विशुद्ध पंचे. संज्ञी प. का ज. अनु. स्थान -
सर्व विशुद्धि पंचे. असंज्ञी अ.ज. अनु. स्थान अनन्तगुणा
सर्व विशुद्धि चौइन्द्रिय असंज्ञी अ.ज. अनु स्थान अनन्तगणा
सर्व विशुद्धि तेइन्द्रिय असंज्ञी ज. अनु. स्थान अनन्तगुणा
सर्व विशुद्धि द्वीन्द्रिय असंज्ञी ज. अनु. स्थान अनन्तुगुणा
सर्व विशुद्धि एकेन्द्रिय बा. असंज्ञी ज. अनु. स्थान अनन्तगुणा
सर्व विशुद्धि एकेन्द्रिय असंज्ञी ज. अनु. स्थान अनन्तगुणा
कौन कर्मका अनुभाग अल्पबहुत्व
६. हत्समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्वके जघन्य स्थानोंकी अपेक्षा
अर्थ - हत समुत्पत्तिक स्थान=अपवर्तन द्वारा अनुभाग का घात करके जितना अनुभाग शेष रखा गया
(कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या ५/४,२२/$५७२/३३८-३३९)
सर्व विशुद्धि एकेन्द्रिय सू. अप. द्वारा उपरीक्त बन्ध स्थानसे
सर्व अनुमान घातके उत्पन्न किया ज. स्थान अनन्तगुणा
सर्व एकेन्द्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न अनन्तगुणा
सर्व द्वीन्द्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न अनन्तगुणा
सर्व तेइन्द्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न अनन्तगुणा
सर्व चतुरेन्द्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न अनन्तगुणा
सर्व पंचे. असंज्ञी बा.के द्वारा घात से उत्पन्न अनन्तगुणा
संयमाभिमुख पंचें. संज्ञी बा.के द्वारा घात से उत्पन्न अनन्तगुणा
७. अष्टकर्म प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागकी ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा
(म.ब/५/$४१७-४२५/२२०-२२४)
१. ज्ञानावरण-ओघ प्ररूपणा
केवल ज्ञानावरणी का सर्वतःतीव्र
आभिनिबोधिक ज्ञानावरण का अनन्तगुणा हीन
श्रुत ज्ञानावरण का अनन्तगुणा हीन
अवधि ज्ञानावरण का अनन्तगुणा हीन
मनःपर्यय ज्ञानावरण का अनन्तगुणा हीन
२. दर्शनावरण-
केवल दर्शनावरण का सर्वतःतीव्र
चक्षु दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
अचक्षु दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
अवधि दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
निद्रा निद्रा दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
प्रचला प्रचला दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
निद्रा दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
प्रचला दर्शनावरण का अनन्तगुणा हीन
३. वेदनीय-
साता वेदनीय का सर्वतःतीव्र
असाता वेदनीय का अनन्तगुणा हीन
४. मोहनीय-
मिथ्यात्व सर्वतःतीव्र
अनन्तानुबन्धी लोभ का अनन्तगुणा हीन
अनन्तानुबन्धी माया का विशेष हीन
अनन्तानुबन्धी क्रोध का विशेष हीन
अनन्तानुबन्धी मान का विशेष हीन
संज्वलन लोभ का अनन्तगुणा हीन
संज्वलन माया का विशेष हीन
संज्वलन क्रोध का विशेष हीन
संज्वलन मान का विशेष हीन
प्रत्याख्यान लोभ का अनन्तगुणा हीन
प्रत्याख्यान माया का विशेष हीन
प्रत्याख्यान क्रोध का विशेष हीन
प्रत्याख्यान मान का विशेष हीन
अप्रत्याख्यान लोभ का अनन्तगुणा हीन
अप्रत्याख्यान माया का विशेष हीन
अप्रत्याख्यान क्रोध का विशेष हीन
अप्रत्याख्यान मान का विशेष हीन
नपुंसक वेद का अनन्तगुणा हीन
अरति का अनन्तगुणा हीन
शोक का अनन्तगुणा हीन
भय का अनन्तगुणा हीन
जुगुप्सा का अनन्तगुणा हीन
स्त्रीवेद का अनन्तगुणा हीन
पुरुष वेद का अनन्तगुणा हीन
रति का अनन्तगुणा हीन
हास्य का अनन्तगुणा हीन
५. आयु-
देवायु का सर्वतःतीव्र
नरकायु का अनन्तगुणा हीन
मनुष्यायु का अनन्तगुणा हीन
तिर्यंचायु का अनन्तगुणा हीन
६. नामकर्म-
(गति) :-
देवगति का सर्वतःतीव्र
मनुष्यगति का अनन्तगुणा हीन
नरकगति का अनन्तगुणा हीन
तिर्चंयगति का अनन्तगुणा हीन
(जाति) :-
पंचेंन्द्रिय जाति का सर्वतःतीव्र
एकेन्द्रिय जाति का अनन्तगुणा हीन
द्वीन्द्रिय जाति का अनन्तगुणा हीन
त्रीन्द्रिय जाति का अनन्तगुणा हीन
चतुरिन्द्रिय जाति का अनन्तगुणा हीन
(शरीर) :-
कार्माण शरीर का सर्वतःतीव्र
तैजस शरीर का अनन्तगुणा हीन
आहारक शरीर का अनन्तगुणा हीन
वैक्रियक शरीर का अनन्तगुणा हीन
औदारिक शरीर का अनन्तगुणा हीन
(संस्थान) :-
समचतुरस्र संस्थान का सर्वतःतीव्र
हुण्डक संस्थान का अनन्तगुणा हीन
न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान का अनन्तगुणा हीन
स्वाति संस्थान का अनन्तगुणा हीन
कुब्जक संस्थान का अनन्तगुणा हीन
वामन संस्थान का अनन्तगुणा हीन
(अंगोपांग) :-
आहारक अंगोपांग का सर्वतःतीव्र
वैक्रियक अंगोपांग का अनन्तगुणा हीन
औदारिक अंगोपांग का अनन्तगुणा हीन
(संहनन) :-
वज्र ऋषभ नाराच संहनन का सर्वतःतीव्र
असम्प्राप्त सृपाटिका संहनन का अनन्तगुणा हीन
वज्रनाराच संहनन का अनन्तगुणा हीन
नाराच संहनन का अनन्तगुणा हीन
अर्ध नाराच संहनन का अनन्तगुणा हीन
कीलित संहनन का अनन्तगुणा हीन
(वर्ण) :-
प्रशस्त वर्ण चतुष्क सर्वतःतीव्र
अप्रशस्त चतुष्क वर्ण का अनन्तगुणा हीन
(आनूपूर्वी) :-
देवगति आनुपूर्वी का सर्वतःतीव्र
मनुष्य गति आनुपूर्वी का अनन्तगुणा हीन
नरक गति आनुपूर्वी का अनन्तगुणा हीन
तिर्यंच गति आनुपूर्वी का अनन्तगुणा हीन
(अगुरुलघु आदि) :-
अगुरुलघु का सर्वतःतीव्र
उच्छ्वास का अन्तागुणा हीन
परघात का अनन्तगुणा हीन
उपघात का अनन्तगुणा हीन
(प्रशस्ताप्रशस्त युगल) :-
सर्व प्रशस्त प्रकृत का सर्वतःतीव्र
सर्व अप्रशस्त का अनन्तगुणा हीन
७. गोत्रकर्म :-
उच्च गोत्र का सर्वतःतीव्र
नीच गोत्र का अनन्तगुणा हीन
८. अन्तराय कर्म :-
वीर्यान्तराय का सर्वतःतीव्र
उपभोग अन्तराय का अनन्तगुणा हीन
भोग अन्तराय का अनन्तगुणा हीन
लाभ अन्तराय का अनन्तगुणा हीन
दान अन्तराय का अनन्तगुणा हीन
आदेश प्ररूपणा :-
१. गति मार्गणा :-
नरक गतिमें :-
नरक गति सामान्यमें ओघवत्
१-७ पृथिवी में ओघवत्
तिर्यंच गति में :-
नरकायु का तीव्र
देवायु का अनन्तगुणा हीन
मनुष्यायु का अनन्तगुणा हीन
तिर्यंचायु का अनन्तगुणा हीन
देव गति का तीव्र
नरक गति का अनन्तगुणा हीन
तिर्यंच गति का अनन्तगुणा हीन
मनुष्य गति का अनन्तगुणा हीन
शेष कर्म का ओघवत्
तिर्यंचोके अन्य विकल्पोंमें उपरोक्तवत्
पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त नरक वत्
मनुष्य गति में :-
मनुष्य प.व मनुष्यणीमें चारों गतियों का तिर्यंच वत्
शेष कर्मों का ओघवत्
देवगति में :-
सर्व विकल्पी में ओघवत्
२. इन्द्रिय मार्गणा :-
सब एकेन्द्रिय तथा सब विकलेन्द्रियमें पंचे. तिर्यंच अप.वत्
पंचेन्द्रिय प. व अप. में ओघवत्
३. काय मार्गणा :-
पाँचों स्थावर कायमें पंचे.तिर्यंच अप. वत्
त्रस प. अप. में ओघवत्
४. योग मार्गणा :-
पाँचों मनोयोगीमें ओघवत्
पाँचों वचन योगी में ओघवत्
काय योगी सा.में ओघवत्
औदारिक काय योगी में मनुष्यणीवत्
औदारिक मिश्र योगी तिर्यंच सा.वत्
वैक्रियक व वैक्रियक मिश्रमें देवगति वत्
आहारक आहारक मिश्रमें सर्वार्थसिद्धवत्
कार्मण योगमें औदारिक मिश्रवत्
५. वेद मार्गणा :-
तीनों वेद व अपगत वेद में मूलोघवत्
६. कषाय मार्गणा :-
चारोंय कषाय में ओघवत्
७. ज्ञान मार्गणा :-
मति श्रुत अवधि व मनःपर्ययमें ओघवत्
केवलज्ञानमें X
मति श्रुत अज्ञान व विभंग में तिर्यंच वत्
८. संयम मार्गणा :-
संयम सा. सामायिक व छेदा. में ओघवत्
परिहार विशुद्धिमें सर्वार्थ सिद्धि वत्
सूक्ष्म साम्परायमें ओघवत्
यथाख्यात में X
संयतासंयत में सर्वार्थसिद्धिवत्
असंयत में ओघवत्
९. दर्शन मार्गणा :-
चक्षु अचक्षु दर्शनों में ओघवत्
अवधि दर्शनोमें ओघवत्
१०. लेश्या मार्गणा :-
कृष्ण में तिर्यंचोंवत्
नीलकापोतमें :-
देवगतिका अनुभाग तीव्र
मनुष्य का अनुभाग अनन्तगुणा हीन
तिर्यंच का अनुभाग अनन्तगुणा हीन
नरक का अनुभाग अनन्तगुणा हीन
चारों आनुपूर्वीका उपरोक्तवत्
शेष प्रकृतियोंका कृष्ण लेश्यावत्
पीत लेश्या व पद्म लेश्यामें देवगतिवत्
शुक्ल लेश्यामें ओघवत्
११. सम्यक्त्व मार्गणा :-
सम्यग्दर्शन सा.में ओघवत्
उपशम व क्षायिक सम्य में ओघवत्
वेदक सम्यग्दृष्टि में सर्वार्थसिद्धिवत्
मिथ्यादृष्टिमें तिर्यंच वत्
सासादन में नरकवत्
सम्यग्मिथ्यादृष्टिमें वेदक सम्य. वत्
१२. भव्यत्व मार्गणा :-
भव्यमें ओघवत्
अभव्यमें ओघवत्
१३. संज्ञित्व मार्गणा :-
संज्ञि में ओघवत्
असंज्ञि में तिर्यंच वत्
१४. आहारक मार्गणा :-
आहारक में ओघवत्
अनाहारकमें X
(८) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके जघन्य अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(महाबंध पुस्तक संख्या ५/$४२६-४३२/२२४-२२६)
१. ज्ञानावरण-
मनःपर्यय ज्ञानावरणका अनुभाग सर्वतःस्तोक
अवधि ज्ञानावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
श्रुत ज्ञानावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
केवल ज्ञानावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
२. दर्शनावरण-
अवधि दर्शनावरणका अनुभाग स्तोक
अचक्षु दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
चक्षु दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
केवल दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
प्रचला दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
निद्रा दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
प्रचला प्रचला दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
निद्रा निद्रा दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
स्त्यानगृद्धि दर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा
३. वेदनीय-
असाता का स्तोक
साता का अनन्तगुणा
४. मोहनीय-
संज्वलन लोभ का स्तोक
संज्वलन माया का अनन्तगुणा
संज्वलन मान का अनन्तगुणा
संज्वलन क्रोध का अनन्तगुणा
पुरुष वेद का अनन्तगुणा
हास्य का अनन्तगुणा
रति का अनन्तगुणा
जुगुप्सा का अनन्तगुणा
भय का अनन्तगुणा
शोक का अनन्तगुणा
अरति का अनन्तगुणा
स्त्रीवेद का अनन्तगुणा
नपुंसक वेद का अनन्तगुणा
प्रत्याख्यान मान का अनन्तगुणा
प्रत्याख्यान क्रोध का विशेषाधिक
प्रत्याख्यान माया का विशेषाधिक
प्रत्याख्यान लोभ का विशेषाधिक
अप्रत्याख्यान मान का अनन्तगुणा
अप्रत्याख्यान क्रोध का विशेषाधिक
अप्रत्याख्यान माया का विशेषाधिक
अप्रत्याख्यान लोभ का विशेषाधिक
अनन्तानुबन्धी मान का अनन्तगुणा
अनन्तानुबन्धी क्रोध का विशेषाधिक
अनन्तानुबन्धी माया का विशेषाधिक
अनन्तानुबन्धी लोभ का विशेषाधिक
५. आयु-
तिर्यंचायु का स्तोक
मनुष्यायु का अनन्तगुणा
नरकायु का अनन्तगुणा
देव आयु का अनन्तगुणा
६. नामकर्म-
(गति)-
तिर्यंच गति का स्तोक
नरक गति का अनन्तगुणा
मनुष्य गति का अनन्तगुणा
देव गति का अनन्तगुणा
(जाति) :-
चतुरिन्द्रिय का स्तोक
त्रीन्द्रिय का अनन्तगुणा
द्वीन्द्रिय का अनन्तगुणा
एकेन्द्रिय का अनन्तगुणा
पंचेन्द्रिय का अनन्तगुणा
(शरीर) :-
औदारिक का स्तोक
वैक्रियक का अनन्तगुणा
तैजस का अनन्तगुणा
कार्मण का अनन्तगुणा
आहारक का अनन्तगुणा
(संस्थान) :-
न्यग्रोध परिणण्डल का स्तोक
स्वाति का अनन्तगुणा
कुब्ज का अनन्तगुणा
वामन का अनन्तगुणा
हुण्डक का अनन्तगुणा
समचतुरस्र का अनन्तगुणा
(अंगोपांग) :-
औदारिक का स्तोक
वैक्रियक का अनन्तगुणा
आहारक का अनन्तगुणा
(संहनन) :-
वज्र नाराच का स्तोक
नाराच का अनन्तगुणा
अर्ध नाराच का अनन्तगुणा
कोलित का अनन्तगुणा
असम्प्राप्त सृपाटिका का अनन्तगुणा
वज्र ऋषभ नाराच का अनन्तगुणा
(वर्ण) :-
अप्रशस्त वर्ण चतुष्क का स्तोक
प्रशस्त वर्ण चतुष्क का अनन्तगुणा
(अंगोपांग) :-
तिर्यंच गत्यानपूर्वी का स्तोक
नरक पूर्वी का अनन्तगुणा
मनुष्य पूर्वी का अनन्तगुणा
देव पूर्वी का अनन्तगुणा
(उपघातादि) :-
उपघात का स्तोक
परघात का अनन्तगुणा
उच्छ्वास का अनन्तगुणा
अगुरुलघु का अनन्तगुणा
७. गोत्र कर्म-
नीच गोत्र का स्तोक
ऊँच गोत्र का अनन्तगुणा
८. अन्तराय-
दान अन्तराये का स्तोक
लाभ अन्तराये का अनन्तगुणा
भोग अन्तराये का अनन्तगुणा
उपभोग अन्तराये का अनन्तगुणा
वीर्य अन्तराये का अनन्तगुणा
(९) अष्टकर्म प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागकी ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
(महाबंध पुस्तक संख्या ५/$४३६-४३९/२२८-२२९)
साता वेदनीय का सबसे तीव्र
यशःकीर्ति का अनन्तगुणा हीन
उच्च गोत्र का ऊपर तुल्य
देव गति का अनन्तगुणा हीन
कार्मण शरीर का अनन्तगुणा हीन
तैजस शरीर का अनन्तगुणा हीन
आहारक शरीर का अनन्तगुणा हीन
वैक्रियक शरीर का अनन्तगुणा हीन
मनुष्य गति का अनन्तगुणा हीन
औदारिक शरीर का अनन्तगुणा हीन
मिथ्यात्व का अनन्तगुणा हीन
केवल ज्ञानावरण का अनन्तगुणा हीन
केवल दर्शनावरण का ऊपर तुल्य
असाता वेदनीय का अनन्तगुणा हीन
वीर्यान्तराय का अनन्तगुणा हीन
अनन्तानुबन्धी लोभ का अनन्तगुणा हीन
अनन्तानुबन्धी माया का विशेष हीन
अनन्तानुबन्धी क्रोध का विशेष हीन
अनन्तानुबन्धी मान का विशेष हीन
संज्वलन लोभ का अनन्तगुणा हीन
संज्वलन माया का विशेष हीन
संज्वलन क्रोध का विशेष हीन
संज्वलन मान का विशेष हीन
प्रत्याख्यान लोभ का अनन्तगुणा हीन
प्रत्याख्यान माया का विशेष हीन
प्रत्याख्यान क्रोध का विशेष हीन
प्रत्याख्यान मान का विशेष हीन
अप्रत्याख्यान लोभ का अनन्तगुणा हीन
अप्रत्याख्यान माया का विशेष हीन
अप्रत्याख्यान क्रोध का विशेष हीन
अप्रत्याख्यान मान का विशेष हीन
मति ज्ञानावरण का अनन्तगुणा हीन
उपभोगान्तराय का ऊपरतुल्य
चक्षुर्दर्शनावरण का अनन्तगुण हीन
अचक्षुर्दर्शनावरण का अनन्तगुण हीन
श्रुत ज्ञानावरण का ऊपर तुल्य
भोगान्तराय का ऊपर तुल्य
अवधि ज्ञानावरण का अनन्तगुण हीन
अवधि दर्शनावरण का ऊपर तुल्य
लाभान्तराय का ऊपर तुल्य
मनःपर्यय ज्ञानावरण का अनन्तगुण हीन
स्त्यानगृद्धि का ऊपर तुल्य
दानान्तराय का ऊपर तुल्य
नपुंसक वेद का अनन्तगुण हीन
अरति का अनन्तगुण हीन
शोक का अनन्तगुण हीन
भय का अनन्तगुण हीन
जुगुप्सा का अनन्तगुण हीन
निद्रा निद्रा का अनन्तगुण हीन
प्रचला प्रचला का अनन्तगुण हीन
निद्रा का अनन्तगुण हीन
प्रचला का अनन्तगुण हीन
अयशःकीर्ति का अनन्तगुण हीन
नीच गोत्र का ऊपर तुल्य
नरक गति का अनन्तगुण हीन
तिर्यंच गति का अनन्तगुण हीन
स्त्री वेद का अनन्तगुण हीन
पुरुषवेद का अनन्तगुण हीन
रति का अनन्तगुण हीन
हास्य का अनन्तगुण हीन
देवायु का अनन्तगुण हीन
नरकायु का अनन्तगुण हीन
मनुष्यायु का अनन्तगुण हीन
तिर्यंचायु का अनन्तगुण हीन
नोट - इसकी आदेश प्ररूपणाके लिए देखो
(महाबंध पुस्तक संख्या ५/$४३९-४४२/पृ.२३१-२३३)
(१०) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागकी ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
(म.ब/पु.५/$४४३/पृ.२३३-२३४)
संज्वलन लोभ का सर्वतःस्तोक
संज्वलन माया का अनन्तगुणा
संज्वलन मान का अनन्तगुणा
संज्वलन क्रोध का अनन्तगुणा
मनःपर्यय ज्ञानावरण का अनन्तगुणा
दानान्तराय का ऊपर तुल्य
अवधि ज्ञानावरण का अनन्तगुणा
अवधि दर्शनावरण का ऊपर तुल्य
लाभान्तराय का ऊपर तुल्य
श्रुत ज्ञानावरण का अनन्तगुणा
अचक्षु दर्शनावरण का ऊपर तुल्य
भोगान्तराय का ऊपर तुल्य
चक्षु दर्शनावरण का अनन्तगुणा
मतिज्ञानावरण का अनन्तगुणा
उपभोगान्तराय का ऊपर तुल्य
वीर्यान्तराय का अनन्तगुणा
पुरुष वेद का अनन्तगुणा
हास्य का अनन्तगुणा
रति का अनन्तगुणा
जुगुप्सा का अनन्तगुणा
भय का अनन्तगुणा
शोक का अनन्तगुणा
अरति का अनन्तगुणा
स्त्री वेद का अनन्तगुणा
नपुंसक वेद का अनन्तगुणा
केवलज्ञानावरण का अनन्तगुणा
केवलदर्शनावरण का ऊपर तुल्य
प्रचला का अनन्तगुणा
निद्रा का अनन्तगुणा
प्रत्याख्यानावरण मान का अनन्तगुणा
प्रत्याख्यानावरण क्रोध का विशेषाधिक
प्रत्याख्यानावरण माया का विशेषाधिक
प्रत्याख्यानावरण मान का विशेषाधिक
अप्रत्याख्यानावरण मान का अनन्तगुणा
अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का विशेषाधिक
अप्रत्याख्यानावरण माया का विशेषाधिक
अप्रत्याख्यानावरण मान का विशेषाधिक
प्रचला प्रचला का अनन्तगुणा
निद्रा निद्रा का अनन्तगुणा
स्त्यानगृद्धि का अनन्तगुणा
अनन्तानुबन्धी मान का अनन्तगुणा
अनन्तानुबन्धी क्रोध का विशेषाधिक
अनन्तानुबन्धी माया का विशेषाधिक
अनन्तानुबन्धी लोभ का विशेषाधिक
मिथ्यात्व का अनन्तगुणा
औदारिक शरीर का अनन्तगुणा
वैक्रिय शरीर का अनन्तगुणा
तिर्यञ्चायु का अनन्तगुणा
मनुष्यायु का अनन्तगुणा
तैजस शरीर का अनन्तगुणा
कार्मण शरीर का अनन्तगुणा
तिर्यञ्च गति का अनन्तगुणा
नरक गति का अनन्तगुणा
मनुष्य गति का अनन्तगुणा
देव गति का अनन्तगुणा
नीच गोत्र का अनन्तगुणा
अयशः कीर्ति का अनन्तगुणा
असाता वेदनीय का अनन्तगुणा
यशःकीर्ति का अनन्तगुणा
उच्च गोत्र का ऊपर तुल्य
साता वेदनीय का अनन्तगुणा
नरकायु का अनन्तगुणा
देवायु का अनन्तगुणा
आहारक शरीर का अनन्तगुणा
नोट - इस सम्बन्धी आदेश प्ररूपणा के लिए देखो
(महाबंध पुस्तक संख्या ५/$४४५-४५०/पृ.२३५-२३९)
११. एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्र में सर्व व देशघाती अनुभागके विभाग की अपेक्षा-
(गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा संख्या १९७/पृ.२५६)
सर्व घाती भाग सर्व द्रव्य/अनन्त
देश घाती भाग शेष बहु भाग
१२. एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्र में निषेक सामान्य के विभाग की अपेक्षा-
(धवला पुस्तक संख्या /पु.१२/४,२,७,६३/३९-४०)
चरम स्थिति में स्तोक
प्रथम स्थिति में असं.गुणे
अप्रथम व अचरम स्थितियोंमें असं.गुणे
अप्रथम में विशेषाधिक
अचरम में विशेषाधिक
सब स्थितियोंमें विशेषाधिक
१३. एक समय प्रबद्ध में अष्ट कर्म प्रकृतियों के प्रदेशाग्र विभाग की अपेक्षा-
१. स्वस्थानप्ररूपणा-
मूल प्रकृति विभाग-
( पंचसंग्रह / प्राकृत अधिकार संख्या ४/४९६-४९७) (धवला पुस्तक संख्या १५/३५) (गो.क/मू.१९२,१९६/२२५)
आयु कर्म का भाग स्तोक
नाम कर्म का भाग विशेषाधिक
गोत्र कर्म का भाग ऊपर तुल्य
ज्ञानावरण कर्म का भाग विशेषाधिक
दर्शनावरण कर्म का भाग ऊपर तुल्य
अन्तराय कर्म का भाग ऊपर तुल्य
मोहनीय कर्म का भाग विशेषाधिक
वेदनीय कर्म का भाग विशेषाधिक
उत्तर प्रकृति विभाग स्वस्थान अपेक्षा-
१. ज्ञानावरण के द्रव्य में-
मति ज्ञानावरण का भाग अधिक
श्रुत ज्ञानावरण का भाग विशेष हीन
अवधि ज्ञानावरण का भाग विशेष हीन
मनःपर्यय का भाग विशेष हीन
केवल ज्ञानावरण का भाग विशेष हीन
२. दर्शनावरण के प्रव्य में-
चक्षु दर्शनावरण का भाग अधिक
अचक्षु दर्शनावरण का भाग विशेष हीन
अवधि दर्शनावरण का भाग विशेष हीन
केवल दर्शनावरण का भाग विशेष हीन
निद्रा दर्शनावरण का भाग विशेष हीन
निद्रा निद्रा दर्शनावरण का भाग विशेष हीन
प्रचला दर्शनावरण का भाग विशेष हीन
प्रचला प्रचला दर्शनावरण का भाग विशेष हीन
स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण का भाग विशेष हीन