अनुयोगसमास
From जैनकोष
श्रुतज्ञानका एक भेद - दे. श्रुतज्ञान II।
अनुयोगी –
(यह शब्द नैयायिक व वैशेषिक दर्शनकार आधार व आश्रयके अर्थमें प्रयुक्त करते हैं। द्रव्य अपने गुणोंका अनुयोगी है, परन्तु गुण अपने द्रव्यका नहीं, क्योंकि द्रव्य ही गुणका आश्रय है, गुण द्रव्यका नहीं)।
अनुराग –
दे राग।
अनुराधा –
एक नक्षत्र-दे. नक्षत्र।
अनुलोम –
(पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक संख्या २८८/भाषाकार) सामान्यकी मुख्यता तथा विशेषकी गौणता करनेसे जो अस्तिनास्तिरूप वस्तु प्रतिपादित होती है, उसको अनुलोमक्रम कहते हैं।
अनुवाद –
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,२४/२०१/४ गतिरुक्तलक्षणा, तस्याः वदनं वादः। प्रसिद्धस्याचार्यपरम्परागतस्यार्थस्य अनु पश्चात् वादोऽनुवादः।
= गतिका लक्षण पहिले कह आये हैं। उसके कथन करनेको वाद कहते हैं। आचार्य परम्परासे आये हुए प्रसिद्ध अर्थका तदनुसार कथन करना अनुवाद है।
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,१११/३४९/३ तथोपदिष्टमेवानुवदनमनुवादः।....प्रसिद्धस्य कथनमनुवादः।
= जिस प्रकार उपदेश दिया है, उसी प्रकार कथन करनेको अनुवाद कहते हैं। अथवा प्रसिद्ध अर्थके अनुकूल कथन करनेको अनुवाद कहते हैं।
अनुवीचिभाषण –
राजवार्तिक अध्याय संख्या ७/५,१/५३६/१२ अनुवीचिभाषणं अनुलोमभाषणमित्यर्थः।
= अनुवीचिभाषण अर्थात् विचारपूर्वक बोलना
(चा.स. /९३/३)।
चा.प./टी./४९/११ वीची वाग्लहरी तामनुकृत्य या भाषा वर्तते सोऽनुवीचिभाषा, जिनसूत्रानुसारिणी भाषा अनुवीचिभाषा पूर्वाचार्यसूत्रपरिपाटीमनुल्लंध्य भाषणीयमित्यर्थः।
= वीची वाग्लहरी को कहते हैं उसका अनुसरण करके जो भाषा बोली जाती है सो अनुवीचिभाषण है। जिनसूत्रकी अनुसारिणीभाषा अमुवीची भाषा है। पूर्वाचार्यकृत सूत्रकी परिपाटीको उल्लंघन न करके बोलना, ऐसा अर्थ है।
अनुवृत्ति-
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या १/३३१४०/९ द्रव्यं सामान्यमुत्सर्गः अनुवृत्तिरित्यर्थः।
= द्रव्यका अर्थ सामान्य उत्सर्ग और अनुवृत्ति है।
स्याद्वादमंजरी श्लोक संख्या ४/१६/२ एकाकारप्रतीतिरेकशब्दवाच्यता चानुवृत्तिः।
= एक नामसे जाननेवाली प्रतीतिको अनुवृत्ति अथवा सामान्य कहते हैं। किसी धर्मकी विधिरूपसे वृत्ति या अनुस्यूतिको अनुवृत्ति कहते हैं। जैसे घटमें घटत्वकी अनुवृत्ति है।
(न्यायदीपिका अधिकार ३/$७६)।