पंचाध्यायी
From जैनकोष
पं. राजमलजी (वि १६५० ई. १५९३) द्वारा संस्कृत श्लोकों में रचित एक दर्शनशास्त्र। इस के दो ही अध्याय पूरे करके पण्डितजी स्वर्ग सिधार गये। अतः यह ग्रन्थ अधूरा है। पहले अध्याय में ७६८ तथा दूसरे में ११४४ श्लोक हैं। (ती./४/८१)
पं. राजमलजी (वि १६५० ई. १५९३) द्वारा संस्कृत श्लोकों में रचित एक दर्शनशास्त्र। इस के दो ही अध्याय पूरे करके पण्डितजी स्वर्ग सिधार गये। अतः यह ग्रन्थ अधूरा है। पहले अध्याय में ७६८ तथा दूसरे में ११४४ श्लोक हैं। (ती./४/८१)