आतम अनुभव आवै जब निज
From जैनकोष
(राग गौरी)
आतम अनुभव आवै जब निज, आतम अनुभव आवै ।
और कछू न सुहावै, जब निज आतम आतम अनुभव आवै ।।टेक ।।
रस नीरस हो जात ततच्छिन, अक्ष विषय नहीं भावै ।।१ ।।
गोष्ठी कथा कुतुहल विघटै, पुद्गलप्रीति नसावै ।।२ ।।
राग-दोष जुग चपल पक्षजुत, मन पक्षी मर जावै ।।३ ।।
ज्ञानानन्द सुधारस, उधमै, घट अंतर न समावे ।।४ ।।
`भागचन्द' ऐसे अनुभव के, हाथ जोरि सिर नावै ।।५ ।।