ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 42
From जैनकोष
342. त एते तैजसकार्मणे किं कस्यचिदेव भवत उताविशेषेणेत्यत आह –
342. ये तैजस और कार्मण शरीर क्या किसी जीवके ही होते हैं या सामान्यरूपसे सबके होते हैं। इसी बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
सर्वस्य।।42।।
तथा सब संसारी जीवोंके होते हैं।।42।।
343. ‘सर्व’ शब्दो निरवशेषवाची। निरवशेषस्य संसारिणो जीवस्य ते द्वे अपि शरीरे भवत इत्यर्थ:।
343. यहाँ ‘सर्व’ शब्द निरवशेषवाची है । वे दोनों ही शरीर सब संसारी जीवोंके होते हैं यह इस सूत्र का तात्पर्य है।