पंडित
From जैनकोष
प. प्र./मू./२/१४ देहविभिण्णउ णाणमउ जो परमप्पु णिएइ। परमसमाहि-परिट्ठियउ पंडिउ सो जि हवेइ। १४। = जो पुरुष परमात्मा को शरीर से जुदा केवलज्ञानकर पूर्ण जानता है वही परम-समाधि में तिष्ठता हुआ पंडित अर्थात् अन्तरात्मा है।
प. प्र./मू./२/१४ देहविभिण्णउ णाणमउ जो परमप्पु णिएइ। परमसमाहि-परिट्ठियउ पंडिउ सो जि हवेइ। १४। = जो पुरुष परमात्मा को शरीर से जुदा केवलज्ञानकर पूर्ण जानता है वही परम-समाधि में तिष्ठता हुआ पंडित अर्थात् अन्तरात्मा है।