प्राभृत
From जैनकोष
- आहार का एक दोष - देखें - आहार / II / ४ / ४ ।
- समय प्राभृत या षट्प्राभृत आदि नाम के गन्थ - देखें - पाहुड़ ।
- पाहुड़ या प्राभृत सामान्य का लक्षण
क.पा./पु. १,१२-१३/२९९/३२६ चूर्णसूत्र- पाहडे त्ति का णिरुत्ती । जम्हा पदेहि पुदं (फुडं) तम्हा पाहुडं ।
क.पा. १/१,१२-१३/२९७/३२५/१० प्रकृष्टेन तीर्थकरेण आभृतं प्रस्थापितं इति प्राभृतम् । प्रकृष्टैराचार्यैर्विद्यावित्तवद्भिराभृतं धारितं व्याख्यातमानीतमिति वा प्राभृतम् । = पाहुड़ इस शब्द की क्या निरुक्ति है ? चूँकि जो पदों से स्फुट अर्थात् व्यक्त है, इसलिए वह पाहुड़ कहलाता है । जो प्रकृष्ट अर्थात् तीर्थंकर के द्वारा आभृत अर्थात् प्रस्थापित किया गया है वह प्राभृत है । अथवा जिनके विद्या ही धन है, ऐसे प्रकृष्ट आचार्यों के द्वारा जो धारण किया गया है, अथवा व्याख्यान किया गया है, अथवा परम्परा से लाया गया है, वह प्राभृत है ।
सा.सा./ता.वृ./परिशिष्ट/पृ. ५२३ यथा कोऽपि देवदत्तो राजदर्शनार्थं किंचित्सारभूतं वस्तु राज्ञे ददाति तत्प्राभृतं भण्यते । तथा परमात्मा - राधकपुरुषस्य निर्दोषिपरमात्मराजदर्शनार्थमिदमपि शास्त्र प्राभृतं । कस्मात् । सारभूतत्वात् इति प्राभृतशब्दस्यार्थः । = जिस प्रकार कोई देवदत्त नाम का पुरुष राजा के दर्शनार्थ कोई सारभूत वस्तु भेंट देता है, उसे प्राभृत कहते हैं । उसी प्रकार परमात्मा के आधारक पुरुष के लिए निर्दोष परमात्म राजा के दर्शनार्थ यह शास्त्र प्राभृत है, क्योंकि यह सारभूत है । ऐसा प्राभृत शब्द का अर्थ है ।
- निक्षेप रूप भेदों के लक्षण
नोट— नाम स्थापनादि के लक्षण — देखें - निक्षेप ।
क.पा. १/१, १३-१४/२९२-२९६/३२३-३२४ तत्त्थ सचित्तपाहुडं णाम जहा कोसल्लियभावेण पट्ठविज्जमाणा हयगयविलयायिया । अचित्तपाहुडं जहा मणि-कणयरयणाईणि उवायणाणि । मिस्सयपाहुडं जहा ससुवण्णकरितुरयाणं कोसल्लियपेसणं ।२९२। आणंतहेउदव्वपट्ठवणंपसत्त्थभावपाहुडं । वइरकलहादिहेउदव्वपट्ठवणमप्पसत्थभावपाहुडं । ... मुहियभावपाहुडस्स ... पेसणोवायाभावादो ।२९४। जिण- वइणा... उज्झियरायदोसेण भव्वाणमणवज्जबुहाइरियपणालेण पट्ठ-विददुवालसंगवयणकलावो तदेगदेसो वा । अवरं आणंदमेत्ति पाहुडं ।२९५। कलहणिमित्तगद्दह-जर-खेटयादिदव्वमुवयारेण कलहो, तस्स विसज्जणं कलहपाहुडं । = उपहार रूप से भेजे गये हाथी घोड़ा और स्त्री आदि सचित्त पाहुड है। भेंट स्वरूप दिये गये मणि, सोना और रत्नादि सचित्त पाहुड़ हैं । स्वर्ण के साथ हाथी और घोड़े का उपहार रूप से भेजना मिश्र पाहुड़ है ।२९२। आनन्द के कारणभूत द्रव्यका उपहार रूप से भेजना प्रशस्त नोआगम भाव पाहुड़ है तथा बैर और कलह आदि के कारणभूत द्रव्य का उपहार रूप से भेजना अप्रशस्त नोआगम भाव पाहुड़ है ।... मुख्य नोआगम भाव पाहुड़ (ज्ञाता का शरीर) भेजा नहीं जा सकता है, इसलिए यहाँ औपचारिक (बाह्य) औपचारिक नोआगमभाव पाहुड़ का उदाहरण दिया गया है ।२९४। जो राग और द्वेष से रहित हैं ऐसे जिन भगवान् के द्वारा निर्दोष श्रेष्ठ विद्वान् आचार्यों की परम्परा से भव्य जनों के लिए भेजे गये बारह अंगों के वचनों का समुदाय अथवा उनका एकदेश परमानन्द दोग्रन्थिक पाहुड़ कहलाता है । इससे अतिरिक्त शेष जिनागम आनन्दमात्र पाहुड़ है ।२९५। गधा, जीर्ण वस्तु और विष आदि द्रव्य कलह के निमित्त हैं, इसलिए उपचार से इन्हें भी कलह कहते हैं । इस कलह के निमित्तभूत द्रव्य का भेजना कलह पाहुड़ कहलाता है ।२९६।
नोट- नाम स्थापना के लक्षण - देखें - निक्षेप / १ / २