भद्र
From जैनकोष
- सा.ध./१/९ कुधर्मस्थोऽपि सद्धर्म, लघुकर्मतयाऽद्विषन्। भद्र: स... अभ्रदस्तद्विपर्ययात्।९। = मिथ्यामत में स्थित होता हुआ भी मिथ्यात्व की मन्दता से समीचीन जैनधर्म से द्वेष नहीं करने वाला व्यक्ति भद्र कहलाता है। उससे विपरीत अभद्र कहलाता है।
- आपके अपरनाम यशोभद्र व अभय थे–देखें - यशोभद्र ;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट– देखें - लोक / ५ / १३ ;
- नन्दीश्वर समुद्र का रक्षक व्यन्तर देव– देखें - व्यंतर / ४ / ७ ।