भर्तृहरि
From जैनकोष
- राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। तदनुसार इनका समय ई.पू. ५७ आता है। (ज्ञा/प्र.४/पन्नालाल)।
- चीनी यात्री इत्सिंगने भी एक भर्तृहरि का उल्लेख किया है। जिसकी मृत्यु ई. ६५० में हुई बतायी है। समय–ई ६२५-६५० (ज्ञा.प्र.४/पं. पन्नालाल)।
- राजा सिंहल के पुत्र व राजा मुंज के छोटे भाई थे। राजा मुंज ने इन्हें पराक्रमी जानकर राज्य के लोभ से देश से निकलवा दिया था। पीछे ये एक तापस के शिष्य हो गये और १२ वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् स्वर्ण रस की सिद्धि की। ज्ञानार्णव के रचयिता आचार्य शुभचन्द्र के लघु भ्राता थे। उनसे सम्बोधित होकर इन्होंने दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली थी। तब इन्होंने शतकत्रय लिखे। विद्यावाचस्पति ने तत्त्वबिन्दु नामक ग्रन्थ में इनको धर्मबाह्य बताया है, जिससे सिद्ध होता है कि अवश्य पीछे जाकर जैन साधु हो गये थे। राजा मुंज के अनुसार आपका समय–वि. १०६०-११२५ (ई. १००३-१०३८)–विशेष देखें - इतिहास / ३ / १ (ज्ञा./प्र./पं.पन्नालाल)।
- आप ई.सं. ४५० में एक अजैन बड़े वैय्याकरणी थे। आपके गुरु वसुरात थे। (सि.वि./२२/पं. महेन्द्र); (देखें - शुभचन्द्र )