सुन्दर दशलक्षन वृष
From जैनकोष
सुन्दर दशलक्षन वृष, सेय सदा भाई ।
जासतैं ततक्षन जन, होय विश्वराई ।।टेक ।।
क्रोध को निरोध शांत, सुधाको नितांत शोध ।
मानको तजौ भजौ स्वभाव कोमलाई ।।१ ।।
छल बल तजि सदा विमलभाव सरलताई भजि ।
सर्व जीव चैन दैन, वैन कह सुहाई ।।२ ।।
ज्ञान तीर्थ स्नान दान, ध्यान भान हृदय आन ।
दया-चरन धारि करन-विषय सब बिहाई ।।३ ।।
आलस हरि द्वादश तप, धारि शुद्ध मानस करि ।
खेहगेह देह जानि, तजौ नेहताई ।।४ ।।
अंतरंग बाह्य संग, त्यागि आत्मरंग पागि ।
शीलमाल अति विशाल, पहिर शोभनाई ।।५ ।।
यह वृष-सोपान-राज, मोक्षधाम चढ़न काज ।
शिवसुख निजगुनसमाज, केवली बताई ।।६ ।।