षोडशकारन सुहृदय
From जैनकोष
( प्रभाती )
षोडशकारन सुहृदय, धारन कर भाई!
जिनतें जगतारन जिन, होय विश्वराई ।।टेक ।।
निर्मल श्रद्धान ठान, शंकादिक मल जघान ।
देवादिक विनय सरल-भावतैं कराई ।।१ ।।
शील निरतिचार धार, मारको सदैव मार ।
अंतरंग पूर्ण ज्ञान, रागको विंधाई ।।२ ।।
यथाशक्ति द्वादश तप, तपो शुद्ध मानस कर ।
आर्त रौद्र ध्यान त्यागि, धर्म शुक्ल ध्याई ।।३ ।।
जथाशक्ति वैयावृत्त, धार अष्टमान टार ।
भक्ति श्रीजिनेन्द्र की, सदैव चित्त लाई ।।४ ।।
आरज आचारज के, वंदि पाद-वारिजकों ।
भक्ति उपाध्याय की, निधाय सौख्यदाई ।।५ ।।
प्रवचन की भक्ति जतनसेति बुद्धि धरो नित्य ।
आवश्यक क्रिया में न, हानि कर कदाई ।।६ ।।
धर्म की प्रभावना सु, शर्मकर बढ़ावना सु ।
जिनप्रणीत सूत्रमाहिं, प्रीति कर अघाई ।।७ ।।
ऐसे जो भावत चित, कलुषता बहावत तसु ।
चरनकमल ध्यावत बुध, `भागचन्द' गाई ।।८ ।।