व्यंतर इंद्र निर्देश
From जैनकोष
- व्यंतर इन्द्र निर्देश
- व्यन्तरों के इन्द्रों के नाम व संख्या
ति.प./६/११. ताणं किंपुरुसा किंणरा दवे इंदा।३५। इय किपुरिसाणिंदा सप्पुरुसो ताण सह महापुरिसो।३७। महोरगया महाकाओ अतिकाओ इंदा।३९। गंधव्वा। ४०। गीदरदी गीदरसा इंदा।४१। ताणं वे माणिपुण्णभद्दिंदा।४३। रक्खसइंदा भीमो महाभीमो।४५। भूदिंदा सरूवो पडिरूवो।४७। पिसाचइंदा य कालमहाकाला।४९। सोलस मोम्हिंदाणं किंणरपहुदीण होंति।५०। पढमुच्चारिदणासा दक्खिणइंदा हवंति एदेसुं। चरिद उच्चारिदणामा उत्तरइंदा पभावजुदा।५९। (त्रि.सा. २७३-२७४)।
- व्यन्तरों के इन्द्रों के नाम व संख्या
देव का नाम |
दक्षिणेंद्र |
उत्तरेन्द्र |
किन्नर |
किंपुरुष |
किन्नर |
किंपुरुष |
सत्पुरुष |
महापुरुष |
महोरग |
महाकाय |
अतिकाय |
गंधर्व |
गीतरति |
गीतरस |
यक्ष |
मणिभद्र |
पूर्णभद्र |
राक्षस |
भीम |
महाभीम |
भूत |
स्वरूप |
प्रतिरूप |
पिशाच |
काल |
महाकाल |
इस प्रकार किन्नर आदि सोलह व्यन्तर इन्द्र हैं।५०।
- व्यंतरेन्द्रों का परिवार
ति.प./६/६८ पडिइंदा सामणिय तणुरक्खा होंति तिण्णि परिसाओ। सत्ताणीय-पइणा अभियोगं ताण पत्तेयं।६८। = उन उपरोक्त इन्द्रों में से प्रत्येक के प्रतीन्द्र, सामानिक, तनुरक्ष, तीनों पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक और अभियोग्य इस प्रकार ये ८ परिवार देव होते हैं (और भी देखें - ज्योतिष / १ / ५ )।
देखें - व्यंतर / ३ / १ (प्रत्येक इन्द्र के चार-चार देवियाँ और दो-दो महत्तरिकाएँ होती हैं। )
प्रत्येक इन्द्र के अन्य परिवार देवों का प्रमाण–
(ति.प./६/६९-७६); (त्रि.सा./२७९-२८२)।
नं. |
परिवार देव का नाम |
गणना |
१ |
प्रतीन्द्र |
१ |
२ |
सामानिक |
४००० |
३ |
आत्मरक्ष |
१६००० |
४ |
अभ्यंतर पारि. |
८००० |
५ |
मध्य पारि. |
१०,००० |
६ |
बाह्य पारि. |
१२,००० |
७ |
अनीक |
७ |
८ |
प्रत्येक अनीक की प्रथम कक्षा |
२८००० |
९ |
द्वि आदि कक्षा |
दूनी दूनी |
१० |
हाथी (कुल) |
३५५६००० |
११ |
सातों अनीक |
२४८९२००० |
१२ |
प्रकीर्णक |
असंख्य |
|
आभियोग्य व किल्पिष |
असंख्य (त्रि.सा.) |