संख्या
From जैनकोष
लोक में जीव किस-किस गुणस्थान व मार्गणा स्थान आदि में कितने-कितने हैं इस बात का निरूपण इस अधिकार में किया गया है। तहाँ अल्प संख्याओं का प्रतिपादन तो सरल है पर असंख्यात व अनन्त का प्रतिपादन क्षेत्र के प्रदेशों व काल के समयों के आश्रय पर किया जाता है।
- संख्या सामान्य निर्देश
- अक्षसंचार के निमित्त शब्दों का परिचय - देखें - गणित / II / ३ ।
- संख्यात असंख्यात व अनन्त में अन्तर। - देखें - अनन्त / २ ।
- संख्यात, असंख्यात व अनन्त - दे.वह वह नाम।
- संख्या प्ररूपणा विषयक कुछ नियम
- काल की अपेक्षा गणना करने का तात्पर्य।
- क्षेत्र की अपेक्षा गणना करने का तात्पर्य।
- संयम मार्गणा में संख्या सम्बन्धी नियम।
- उपशम व क्षपक श्रेणी का संख्या सम्बन्धी नियम।
- सिद्धों का संख्या सम्बन्धी नियम।
- संयतासंयत जीव असंख्यात कैसे हो सकते हैं।
- सम्यग्दृष्टि दो तीन ही हैं ऐसे कहने का तात्पय।
- लोभ कषाय क्षपकों से सूक्ष्म साम्पराय की संख्या अधिक क्यों।
- वर्गणाओं का संख्या सम्बन्धी दृष्टि भेद।
- जीवों के प्रमाण सम्बन्धी दृष्टिभेद।
- सभी मार्गणा व गुणस्थानों में आय के अनुसार व्यय होने का नियम। - देखें - मार्गणा।
- संख्या विषयक प्ररूपणाएँ
- सारणी में प्रयुक्त संकेत सूची।
- जीवों की संख्या विषयक ओघ प्ररूपणा
- जीवों की संख्या विषयक सामान्य विशेष प्ररूपणा।
- जीवों की स्वस्थान भागाभाग रूप आदेश प्ररूपणा।
- चारों गतियों की अपेक्षा स्व पर स्थान भागाभाग।
- एक समय में विवक्षित स्थान में प्रवेश व निर्गमन करने वाले जीवों का प्रमाण।
- इन्द्रों की संख्या। - देखें - इन्द्र।
- द्वीप समुद्रों की संख्या। - देखें - लोक / २ / ११ ।
- ज्योतिष मण्डल की संख्या। - देखें - ज्योतिष / २ ।
- तीर्थंकरों के तीर्थ में केवलियों आदि की संख्या। - देखें - तीर्थंकर / ५ ।
- द्रव्यों की संख्या। - देखें - द्रव्य / २ ।
- द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या। - देखें - वह वह द्रव्य।
- जीवों आदि की संख्या में परस्पर अल्पबहुत्व। - देखें - अल्पबहुत्व।