स्पर्श भेद व लक्षण
From जैनकोष
भेद व लक्षण
१. स्पर्श गुण का लक्षण
स.सि./५/२३/२९३/११ स्पृश्यते स्पर्शनमात्रं वा स्पर्श:।
स.सि./२/२०/१७८/९ स्पृश्यत इति स्पर्श:। ...पर्यायप्राधान्यविवक्षायां भावनिर्देश:। स्पर्शनं स्पर्श:। =१. जो स्पर्शन किया जाता है उसे या स्पर्शनमात्र को स्पर्श कहते हैं। २. द्रव्य की अपेक्षा होने पर कर्म निर्देश होता है। जैसे-जो स्पर्श किया जाता है सो स्पर्श है। ...तथा जहाँ पर्याय की विवक्षा प्रधान रहती है तब भाव निर्देश होता है जैसे स्पर्शन स्पर्श है। (रा.वा./२/२०/१/१३२/३१)।
ध.१/१,१,३३/२३७/८ यदा वस्तुप्राधान्येन विवक्षितं तदा इन्द्रियेण वस्त्वेव विषयीकृतं भवेद् वस्तुव्यतिरिक्तस्पर्शाद्यभावात् । एतस्यां विवक्षायां स्पृश्यत इति स्पर्शो वस्तु। यदा तु पर्याय: प्राधान्येन विवक्षितस्तदा तस्य ततो भेदोपपत्तेरौदासीन्यावस्थितभावकथनाद्भावसाधनत्वमप्यविरुद्धम् । यथा स्पर्श इति। =जिस समय द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा प्रधानता से वस्तु ही विवक्षित होती है, उस समय इन्द्रिय के द्वारा वस्तु का ही ग्रहण होता है, क्योंकि वस्तु को छोड़कर स्पर्शादि धर्म पाये नहीं जाते हैं इसलिए इस विवक्षा में जो स्पर्श किया जाता है उसे स्पर्श कहते हैं, और वह स्पर्श वस्तु रूप ही पड़ता है। तथा जिस समय पर्यायार्थिक नय की प्रधानता से पर्याय विवक्षित होती है, उस समय पर्याय का द्रव्य से भेद होने के कारण उदासीन रूप से अवस्थित भाव का कथन किया जाता है। इसलिए स्पर्श में भाव साधन भी बन जाता है। जैसे स्पर्शन ही स्पर्श है।
२. स्पर्श नामकर्म का लक्षण
स.सि./८/११/३९०/८ यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम। =जिसके उदय से स्पर्श की उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म है। (रा.वा./८११/१०/५७७/१४); (ध.१/५,५,१०१/३६४/८); (गो.क./जी.प्र./३३/२९/१५)।
ध.६/१,९-१,२८/५५/९ जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जाइपडिणियदो पासो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स पाससण्णा कारणे कज्जुवयारादो। =जिस कर्मस्कन्ध के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत स्पर्श उत्पन्न होता है, उस कर्म स्कन्ध की कारण में कार्य के उपचार से स्पर्श यह संज्ञा है।
३. स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण
स.सि./१/८/२९/७ तदेव स्पर्शनं त्रिकालगोचरम् । =त्रिकाल विषयक निवास को स्पर्श कहते हैं। (रा.वा./१/८/५/४१/३०)
ध.१/१,१,७/गा./१०२/१५८ अत्थित्तं पुण संतं अत्थित्तस्स य तहेव परिमाणं। पच्चुप्पण्णं खेत्तं अदीद-पदुप्पण्णणं फुसणं।१०२।
ध.१/१,१,७/१५८/५ तेहिंदो वलद्ध-संत-पमाण खेत्ताणं अदीद-काल-विसिट्ठफासं परूवेदि फोसणाणुगमो। =१. अस्तित्व का प्रतिपादन करने वाली प्ररूपणा को सत्प्ररूपणा कहते हैं। जिन पदार्थों के अस्तित्व का ज्ञान हो गया है ऐसे पदार्थों के परिमाण का कथन करने वाली संख्या प्ररूपणा है, वर्तमान क्षेत्र का वर्णन करने वाली क्षेत्र प्ररूपणा है। अतीत स्पर्श और वर्तमान स्पर्श का वर्णन करने वाली स्पर्शन प्ररूपणा है।१०२। २. उक्त तीनों अनुयोगों के द्वारा जाने हुए सत् संख्या और क्षेत्ररूप द्रव्यों के अतीतकाल विशिष्ट वर्तमान स्पर्श का स्पर्शनानुयोग वर्णन करता है।
ध.४/१,४,१/१४४/८ अस्पर्शि स्पृश्यत इति स्पर्शनम् । =जो भूतकाल में स्पर्श किया है और वर्तमान में स्पर्श किया जा रहा है वह स्पर्शन कहलाता है।
४. स्पर्श के भेद
१. स्पर्शगुण व स्पर्श नामकर्म के भेद
ष.खं.६/१,९,१/सू.४०/७५ जं तं पासणामकम्मं तं अट्ठविहं, कक्खडणामं मउवणामं गुरुअणामं लहुअणामं णिद्धणामं लुक्खणामं सीदणाम उसुणणामं चेदि।४०। =जो स्पर्श नामकर्म है वह आठ प्रकार का है-कर्कशनामकर्म, मृदुकनामकर्म, गुरुकनामकर्म, लघुकनामकर्म, स्निग्धनामकर्म, रूक्षनामकर्म, शीतनामकर्म और उष्णनामकर्म। (ष.खं.१३/५,५/सू.११३/३७०); (स.सि./८/११/३९०/८); (पं.सं./प्रा./२/४/टी./४८/२); (रा.वा./८/११/१०/५७७/१४); (गो.क./जी.प्र./३३/२९/१५)।
स.सि./५/२३/२९३/११ सोऽष्टविध:; मृदुकठिनगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षभेदात् ।=कोमल, कठोर, भारी, हलका, गरम, स्निग्ध और रूक्ष के भेद से वह स्पर्श आठ प्रकार का है। (रा.वा.५/२३/७/४८४); (गो.जी./जी.प्र./८८५/१); (द्र.सं./टी./७/१९); (प.प्र./टी./१/१९)।
२. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.१
नोट-(नाम, स्थापना आदि भेद=देखें - निक्षेप )।
ध.४/१,४,१/१४३/२ मिस्सयदव्वफोसणं छण्हं दव्वाणं संजोएण एगूणसट्ठिभेयभिण्णं। =मिश्रद्रव्यस्पर्शन चेतन अचेतन स्वरूप छहों द्रव्यों के संयोग से उनसठ भेदवाला होता है।
विशेषार्थ-मिश्र तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य स्पर्श के सचित्त व अचित्त रूप छह द्रव्यों के ६५ संयोगी भंग निम्न प्रकार हैं।
एक संयोगी भंग = छह द्रव्यों का पृथक्-पृथक् ग्रहण करने से | = ६। |
द्विसंयोगी भंग = (६x५) ÷ (१x२)=३०/२ | = १५। |
त्रिसंयोगी भंग = (६x५x४) ÷ (१x२x३)=१२०/६ | = २०। |
चतुसंयोगी भंग = (६x५x४x३) ÷ (१x२x३x४)= ३६०/२४ | = १५। |
पंचसंयोगी भंग = (६x५x४x३x२) ÷ (१x२x३x४x५)= ७२०/१२० | = ६। |
छह संयोगी भंग = (६x५x४x३x२x१) ÷ (१x२x३x४x५x६)= ७२०/७२० | = १। |
जीव के साथ जीव के स्पर्श रूप बन्ध का भंग | =१। |
पुद्गल के साथ पुद्गल के स्पर्श रूप बन्ध का भंग | =१ |
(गो.क./मू./८००)। कुल भंग | =६५ |
३. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.२
ष.खं.१३/५,३/सू.४-३३/पृ.३-३६
चार्ट
ध.१३/५,३,२४/२५/२ एत्थ केवि आइरिया कक्खडादिफासाणं पहाणीकयाणं एगादिसंजोगेहि फासभंगे उप्पायंति, तण्ण घडदे; गुणाणं णिस्सहावणं गुणेहि फासाभावादो। ...अधवा सुत्तस्स देसामासियत्ते... सगंतोक्खित्तासेसविसेसंतराणमट्ठण्णं फासाणं संजोएण दुसद-पंच-वंचासभंगा उप्पाएयव्वा। =यहाँ कितने ही आचार्य प्रधानता को प्राप्त हुए ककर्श आदि स्पर्शों के एक आदि संयोगों द्वारा स्पर्श भंग उत्पन्न कराते हैं; परन्तु वे बनते नहीं; क्योंकि गुण निस्वभाव होते हैं, इसलिए उनका अन्य गुणों के साथ स्पर्श नहीं बन सकता।...अथवा सूत्रदेशामर्शक होता है।...अतएव अपने भीतर जितने विशेष प्राप्त होते हैं, उन सबके साथ आठ स्पर्शों के संयोग से दो सौ पचपन भंग उत्पन्न कराने चाहिए।
५. निक्षेप रूप भेदों के लक्षण
ष.खं. व धवला टी./१३/५,३/सूत्र नं./पृ.नं.'जं दव्वं दव्वेण पुसदि सो सव्वो दव्वफासो णाम। (१२/११)' 'जं दव्वमेयक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो एयक्खेत्तफासो णाम (१४/१६)' एक्कम्हि आगासपदेसे ट्ठिद अणंताणं तपोग्गलक्खंधाणसमवाएण संजोएण वा जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। बहुआणं दव्वाणं अक्कमेण एयक्खेत्तपुसणदुवारेण वा एयक्खेत्तफासो वत्तव्वो। -'जं दव्वमणंतरक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो अणंतरक्खेत्तफासो णाम (१६/१७)' दुपदेसट्ठिददव्वाणमण्णेहि दोआगासपदेसट्ठि दव्वेहि जो फासो सो अणंतरक्खेत्तफासो णाम।...एवं संते समाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। असमाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो अणंतरखेत्तफासो णाम। कधमणंतरत्तं। समाणासमाणक्खेत्ताणमंतरे खेत्तंतराभावादो। एवमणंतरखेत्तफासपरूवणा गदा।-'जं दव्वदेसं देसेण पुसदि सो सव्वो देसफासो णाम (१८/१८)' एगस्स दव्वरस देसं अवयवं जदि [देसेण] अण्णदव्वदेसेण अप्पणो अवयवेण पुसदि तो देसफासो त्ति दट्ठव्वो। -जं दव्वं तयं वा णोतयं वा पुसदि सो सव्वो तयफासो णाम (२०/१९)' एसो तयफासो दव्वफासे अंतब्भावं किण्ण गच्छदे। ण, तय-णोतयाणं खंधम्हि समवेदाणं पुध दव्वत्ताभावादो। खंध-तय-णोतयाणं समूहो दव्वं। ण च एक्कम्हि दव्वे दव्वफासो अत्थि, विरोहादो। ...तयफासो देसफासे किण्ण पविसदि। ण, णाणदव्वविसए देसफासे एगदव्वविसयस्स तयफासस्स पवेसविरोहादो। -जं दव्वं सव्वं सव्वेण फुसदि, तहा परमाणुदव्वमिदि, सो सव्वो सव्वफासो णाम। (२२/२१)' 'सो अट्ठविहो-कक्खडफासो मउवफासो-गरुवफासो लहुवफासो णिद्धफासो लुक्खफासो सीदफासो उण्हफासो। सो सव्वो फासफासो णाम (२४/२४)' स्पृश्यत इति स्पर्श: कर्कशादि:। स्पृश्यत्यनेनेति स्पर्शस्त्वगिन्द्रियं। तयोर्द्वयो: स्पर्शयो: स्पर्श: स्पर्शस्पर्श:। -'सो अट्ठविहो-णाणावरणीय-दंसणावरणीय-वेयणीय-मोहणीय-आउअ-णामा-गोद-अंतराइय-कम्मफासो। सो सव्वो कम्मफासो णाम (२६/२६)' अट्ठकम्माणं जीवेण विस्सासोवचएहि य णोकम्मेहि य जो फासो सो दव्वफासे पददि त्ति एत्थ ण वुच्चदे, कम्माणं कम्मेहि जो फासो सो कम्मफासो एत्थं घेत्तव्वो।-'सो पंचविहो-ओरालियसरीरबंधफासो एवं वेउव्वियआहार-तेया कम्मइयसरीरबंधफासो। सो सव्वो बंधफासो णाम। (२८/३०)' बध्नातीति बन्ध:। औदारिकशरीरमेव बन्ध: औदारिकशरीरबन्ध:। तस्स बंधस्स फासो ओरालियसरीरबंधफासो णाम। एवं सव्वसरीरबंधफासणं पि वत्तव्वं। -'जहा विस कूड-जंत-पंजर-कंदय-वग्गुरादीणि कत्तारो समोद्दियारो य भवियो फुसणदाए णो य पुण ताव तं फुसदि सो सव्वो भवियफासो णाम (३०/३४)' 'उवजुत्तो पाहुडजाणओ सो सव्वो भावफासो णाम (३२/३५)
- एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से स्पर्श को प्राप्त होता है वह सब द्रव्यस्पर्श है।१२।
- जो द्रव्य एक क्षेत्र के साथ स्पर्श करता है वह सब एक क्षेत्रस्पर्श है।१४। एक आकाश प्रदेश में स्थित अनन्तानन्त पुद्गल स्कन्धों का समवाय सम्बन्ध या संयोग सम्बन्ध द्वारा जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्रस्पर्श कहलाता है। अथवा बहुत द्रव्यों का युगपत् एक क्षेत्र के स्पर्शन द्वारा एक क्षेत्र स्पर्श कहना चाहिए।
- जो द्रव्य अनन्तर द्रव्य के साथ स्पर्श करता है वह सब अनन्तरक्षेत्र स्पर्श है।१६। दो प्रदेशों में स्थित द्रव्यों का दो आकाश के प्रदेशों में स्थित अन्य द्रव्यों के साथ जो स्पर्श होता है वह अनन्तर क्षेत्रस्पर्श है।...इस स्थिति में (एक शब्द संख्यावाची नहीं समानवाची है) समान अवगाहना वाले स्कन्धों का जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्रस्पर्श है और असमान अवगाहना वाले स्कन्धों का जो स्पर्श होता है वह अनन्तरक्षेत्र है। क्योंकि समान और असमान क्षेत्रों के मध्य में अन्य क्षेत्र नहीं उपलब्ध होता, इसलिए इसे अनन्तरपना प्राप्त है।
- जो द्रव्य एकदेश एकदेश के साथ स्पर्श करता है वह सब देशस्पर्श है।१८। एक द्रव्य का देश अर्थात् अवयव यदि अन्य द्रव्य के देश अर्थात् उसके अवयव के साथ स्पर्श करता है तो वह देशस्पर्श जानना चाहिए। (दो परमाणुओं का दो प्रदेशावगाही स्कन्ध बनने में जो स्पर्श होता है वही देशस्पर्श है।)
- जो द्रव्य त्वचा या नोत्वचा को स्पर्श करता है वह सब त्वक्स्पर्श है।२०। प्रश्न-यह त्वक् स्पर्श द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं अन्तर्भाव को प्राप्त होता ? उत्तर-नहीं, क्योंकि त्वचा और नोत्वचा स्कन्ध में समवेत है, अत: उन्हें पृथक् द्रव्य नहीं माना जा सकता। स्कन्ध, त्वचा और नोत्वचा का समुदाय द्रव्य है। पर एक द्रव्य में द्रव्यस्पर्श नहीं बनता, क्योंकि ऐसा मानने में विरोध आता है। प्रश्न-त्वक् स्पर्श देशस्पर्श में क्यों नहीं अन्तर्भूत होता है ? उत्तर-नहीं, क्योंकि नाना द्रव्यों को विषय करने वाले देश स्पर्श में एक द्रव्य को विषय करने वाले त्वक् स्पर्श का अन्तर्भाव मानने में विरोध आता है।
- जो द्रव्य सबका सब सर्वात्मना स्पर्श करता है, यथा परमाणु द्रव्य, वह सब सर्वस्पर्श है।२२।
- स्पर्शस्पर्श आठ प्रकार का है-कर्कशस्पर्श, मृदुस्पर्श, गुरुस्पर्श, लघुस्पर्श, स्निग्धस्पर्श, रूक्षस्पर्श, शीतस्पर्श और उष्णस्पर्श है वह सब स्पर्शस्पर्श है।२४। जो स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है, यथा कर्कश आदि। जिसके द्वारा स्पर्श किया जाय वह स्पर्श है, यथा त्वचा इन्द्रिय। इन दोनों स्पर्शों का स्पर्श स्पर्शस्पर्श कहलाता है।
- वह आठ प्रकार का है-ज्ञानावरणीय कर्मस्पर्श, दर्शनावरणीय कर्मस्पर्श, वेदनीय कर्मस्पर्श, मोहनीय कर्मस्पर्श, आयुकर्मस्पर्श, गोत्र कर्मस्पर्श और अन्तराय कर्मस्पर्श। वह सब कर्मस्पर्श है।२६। आठ कर्मों का जीव के साथ, विस्रसोपचयों के साथ और नोकर्मों के साथ जो स्पर्श होता है वह सब द्रव्य स्पर्श में अन्तर्भूत होता है; इसलिए वह यहाँ नहीं कहा गया है। किन्तु कर्मों का कर्मों के साथ जो स्पर्श होता है वह कर्मस्पर्श है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
- वह पाँच प्रकार का है-औदारिक शरीर बन्धस्पर्श। इसी प्रकार वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर बन्धस्पर्श। वह सब बन्धस्पर्श है।२८। जो बाँधता है वह बन्ध है, उस बन्ध का स्पर्श औदारिकशरीरबन्धस्पर्श है। इसी प्रकार सर्व शरीरबन्ध स्पर्शों का भी कथन करना चाहिए।
- विष, कूट, यन्त्र, पिंजरा, कन्दक और पशु को बाँधने का जाल आदि तथा इनके करने वाले और इन्हें इच्छित स्थानों में रखने वाले स्पर्शन के योग्य होंगे परन्तु अभी उन्हें स्पर्श नहीं करते; वह सब भव्य स्पर्श है।३०।
- जो स्पर्श प्राभृत का ज्ञाता उसमें उपयुक्त है वह सब भाव स्पर्श है।३२।
ध.४/१,४,१/१४३-१४४/३,२ सेसदव्वाणमागासेण सह संजोओ खेत्तफोसणं/१४३/३/कालदव्वस्स अण्णदव्वेहि जो संजोओ सो कालफोसणं णाम।
- शेष द्रव्यों का आकाश द्रव्य के साथ जो संयोग है, वह क्षेत्र स्पर्शन कहलाता है।
- कालद्रव्य का जो अन्य द्रव्यों के साथ संयोग है उसका नाम कालस्पर्शन है।