ज्ञानावरणकर्म
From जैनकोष
आत्मा के ज्ञानगुण का आवरक एक कर्म । यह सम्यग्ज्ञान को ढक लेता है और आत्महितकारक ज्ञान में बाधाएँ उपस्थित करता है । इसकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर, जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और मध्यम स्थिति विविध प्रकार की होती हैं । पद्मपुराण 14.21, हरिवंशपुराण 3.95, 58.215, 16.156-160