वृषभपर्वत
From जैनकोष
जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी एक-एक तथा विदेहक्षेत्र के बत्तीस कुल चौंतीस पर्वत । भरतेश ने इसी पर्वत पर काकणी-रत्न से अपनी प्रशस्ति लिखी थी । यह पर्वत सौ योजन ऊँचा है । मूल में भी यह सौ योजन और शिखर पर पचास योजन विस्तृत है । यह आकल्पान्त अविनश्वर, आकाश के समान निर्मल, नाना चक्रवर्तियों के नामों से उत्कीर्ण तथा देव और विद्याधरों द्वारा सेवित है । महापुराण 32.130-160, हरिवंशपुराण 5.280, 11.47-48