योगसार - जीव-अधिकार गाथा 20
From जैनकोष
आत्मा से ज्ञान को अधिक मानने पर आपत्ति -
यद्यात्मनोsधिकं ज्ञानं ज्ञेयं वापि प्रजायते।
लक्ष्य-लक्षणभावोsस्ति तदानीं कथमेतयो: ।।२० ।।
अन्वय :- यदि आत्मन: ज्ञानं वा ज्ञेयं अपि अधिकं प्रजायते तदानीं एतयो: लक्ष्य- लक्षण-भाव: कथं अस्ति? (अर्थात् न भवति) ।
सरलार्थ :- यदि आत्मा से ज्ञान अथवा ज्ञेय भी अधिक होता है तो आत्मा और ज्ञान में लक्ष्य-लक्षणभाव कैसे बन सकता है ?