योगसार - जीव-अधिकार गाथा 23
From जैनकोष
ज्ञान, दूरवर्ती पदार्थ को भी स्वभाव से जानता है -
दवीयांसमपि ज्ञानमर्थं वेत्ति निसर्गत: ।
अयस्कान्त: स्थितं दूरे नाकर्षति किमायसम् ।।२३ ।।
अन्वय :- ज्ञानं दवीयांसं अर्थं अपि निसर्गत: वेत्ति (यथा) अयस्कान्त: दूरे स्थितं आयसं किं न आकर्षति ? (अपितु आकर्षति एव) ।
सरलार्थ :- ज्ञान, क्षेत्र-कालादि की अपेक्षा से दूरवर्ती पदार्थ समूह को भी स्वभाव से जानता है । क्या चुम्बकपाषाण दूरी पर स्थित लोहे को अपनी ओर नहीं खींचता ? खींचता ही है ।