योगसार - जीव-अधिकार गाथा 24
From जैनकोष
ज्ञान, स्वभाव से ही स्व-पर प्रकाशक है -
ज्ञानमात्मानमर्थं च परिच्छित्ते स्वभावत: ।
दीप उद्योतयत्यर्थं स्वस्मिन्नान्यमपेक्षते।।२४ ।।
अन्वय :- ज्ञानं स्वभावत: आत्मानं अर्थं च परिच्छित्ते (यथा) दीप: अर्थं उद्योतयति स्वस्मिन् अन्यं न अपेक्षते ।
सरलार्थ :- ज्ञान अपने को और पदार्थ को स्वभाव से जानता है । जैसे - दीपक पदार्थ को प्रकाशित करता है, उसे अपने को प्रकाशित करने में भी किसी अन्य की अपेक्षा नहीं होती है ।