योगसार - जीव-अधिकार गाथा 36
From जैनकोष
कषाय से स्वभावच्युत आत्मा के व्रत नहीं -
अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्म सङ्गविवर्जनम् ।
कषाय-विकले ज्ञाने समस्तं नैव तिष्ठति ।।३६ ।।
अन्वय :- ज्ञाने कषाय-विकले (सति) अहिंसा सत्यं अस्तेयं ब्रह्म सङ्गविवर्जनं (च एतत्) समस्तं (व्रतं) नैव तिष्ठति ।
सरलार्थ :- ज्ञान अर्थात् आत्मा जब क्रोधादि कषाय परिणामों से विकल अर्थात् व्याकुलित होने पर आत्मस्थिरतारूप स्वभाव से च्युत होता है; तब अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रहभाव समस्त ही महाव्रतरूप भाव स्थिर नहीं रहते, नष्ट हो जाते हैं ।