योगसार - जीव-अधिकार गाथा 35
From जैनकोष
सम्यक्चारित्र की उत्पत्ति का काल -
रागद्वेषापराधीनं यदा ज्ञानं प्रवर्तते ।
तदाभ्यधायि चारित्रमात्मनो मलसूदनम् ।।३५ । ।
अन्वय :- यदा ज्ञानं राग-द्वेष-अपराधीनं प्रवर्तते तदा आत्मन: मलसूदनं चारित्रं अभ्यधायि ।
सरलार्थ :- जब ज्ञान अर्थात् आत्मा राग-द्वेष की पराधीनता से रहित प्रवर्तता है, तब आत्मा के कर्मरूपी मल का नाशक चारित्र होता है, ऐसा कहा है ।