योगसार - संवर-अधिकार गाथा 200
From जैनकोष
राग-द्वेष न करने की सहेतुक प्रेरणा -
निग्रहानुग्रहौ कर्तंु कोsपि शक्तोsस्ति नात्मन: ।
रोष-तोषौ न कुत्रापि कर्तव्याविति तात्त्विकै: ।।२००।।
अन्वय :- आत्मन: निग्रह-अनुग्रहौ कर्तुं क: अपि शक्त: न अस्ति इति तात्त्विकै: कुत्रापि रोष-तोषौ न कर्तव्यौ ।
सरलार्थ :- विश्व में जीवादि अनन्तानन्त द्रव्य हैं, उनमें से कोई भी द्रव्य किसी भी जीव का अच्छा अथवा बुरा करने में समर्थ नहीं है; इसलिए इस वास्तविक तत्त्व के जाननेवाले को जीवादि किसी भी परद्रव्य में राग अथवा द्वेष नहीं करना चाहिए ।