योगसार - संवर-अधिकार गाथा 201
From जैनकोष
राग-द्वेष किस पर करें?
परस्याचेतनं गात्रं दृश्यते न तु चेतन: ।
उपकारेsपकारे क्व रज्यते क्व विरज्यते ।।२०१।।
अन्वय :- परस्य अचेतनं गात्रं (तु) दृश्यते; चेतन: तु न (दृश्यते) । (तत:) उपकारे- अपकारे (सति) प् रज्यते (च) प् विरज्यते ?
सरलार्थ :- (उपकार-अपकार न करनेवाला) दूसरे का जड-शरीर तो दिखाई देता है और (उपकार अथवा अपकार करनेवाला) चेतन आत्मा तो दिखाई नहीं देता । इसलिए किसी से भी उपकार अथवा अपकार होने पर किस पर राग किया जाय और किस पर द्वेष? अर्थात् समताभाव स्वीकार करना ही योग्य है ।