उत्कृष्ट शातकुंभ
From जैनकोष
एक व्रत । इसमें एक से लेकर सोलह तक के अंको को सोलह, पन्द्रह आदि के क्रम से एक तक लिखकर प्रथम अंक को छोड़ अवशिष्ट अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएँ की जाती है । यह पाँच सौ सत्तावन दिनों में पूर्ण होता है । हरिवंशपुराण 34.87-85