योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 373
From जैनकोष
ज्ञान होने पर भी चारित्र मिथ्या -
ज्ञानवत्यपि चारित्रं मलिनं पर-पीडके ।
कज्जलं मलिनं दीपे सप्रकाशेsपि तापके ।।३७३।।
अन्वय :- (यथा) तापके दीपे सप्रकाशे (सति) अपि कज्जलं मलिनं (भवति)। परपीड के ज्ञानवति अपि चारित्रं मलिनं (भवति ) ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार उष्णता प्रदायक दीपक में सुखदाता प्रकाश होने पर भी काजल मलिन होता है, उसीप्रकार सुखदाता सर्वज्ञ जिनेन्द्र-कथित शास्त्र का ज्ञान होने पर भी जिसके आचार- विचार-उच्चार से समाज या व्यक्तिेवशेष को पीड़ा/ अर्थात् दु:ख ही होता रहता है तो उसका चारित्र मलिन - अर्थात् मिथ्या होने से संसार-वर्धक सिद्ध होता है ।