योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 380
From जैनकोष
सम्यक्त्व का माहात्म्य -
नास्ति येषामयं तत्र भवबीज-वियोगत: ।
तेsपि धन्या महात्मान: कल्याण-फल-भागिन: ।।३८०।।
अन्वय :- येषां भवबीज-वियोगत: तत्र (मुक्त्यां) अयं (विेद्वेष:) न अस्ति, ते महात्मान: अपि धन्या: च कल्याण-फल-भागिन: (सन्ति) ।
सरलार्थ :- जिनके जीवन में अनंत दु:ख का कारणरूप भवबीज अर्थात् मिथ्यादर्शन का वियोग/अभाव होने से मुक्तिसंबंधी का द्वेषभाव नहीं रहा, वे महात्मा भी धन्य हैं, प्रशंसनीय हैं और वे कल्याणरूप फल के भागी हैं ।