योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 401
From जैनकोष
स्त्रियों की प्रमाद-बहुलता-दूसरा कारण -
प्रमाद-मय-मूर्तीनां प्रमादोsतो यत: सदा ।
प्रमदास्तास्तत: प्रोक्ता: प्रमाद-बहुलत्वत: ।।४०१।।
अन्वय :- यत: प्रमाद-मय-मूर्तीनां (स्त्रीणां) सदा प्रमाद: (वर्तते), तत: प्रमाद- बहुलत्वत: ता: प्रमदा: प्रोक्ता: ।
सरलार्थ :- क्योंकि प्रमादमय/प्रमादमूर्तिरूप स्त्रियों के सदा प्रमाद बना रहता है; अत: प्रमाद की बहुलता के कारण स्त्रियों को प्रमदा कहा गया है; इसलिए उन्हें मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती ।