योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 400
From जैनकोष
स्त्रीरूप पर्याय से मुक्ति न होने का प्रथम कारण -
नामुना जन्मना स्त्रीणां सिद्धिर्निश्चयतो यत: ।
अनुरूपं ततस्तासां लिङ्गं लिङ्गविदो विदु: ।।४००।।
अन्वय :- यत: स्त्रीणां अमुना जन्मना सिद्धि: निश्चयत: न (भवति) । तत: लिङ्गविद: तासां अनुरूपं लिङ्गं विदु: ।
सरलार्थ :- क्योंकि स्त्रियों के अपने इस जन्म से अर्थात् स्त्री-पर्याय से सिद्धि/मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती; इसलिए लिंग के जानकार जिनेन्द्र देवों ने उनके अनुरूप लिंग का उपदेश दिया है ।