योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 442
From जैनकोष
असंमोहपूर्वक कार्य का फल -
सन्त्यसंमोहहेतूनि कर्माण्यत्यन्तशुद्धित: ।
निर्वाणशर्मदायीनि भवातीताध्वगामिनाम् ।।४४२।।
अन्वय :- (यानि) कर्माणि असंमोहहेतूनि सन्ति (तानि) अत्यन्त-शुद्धित: भवातीताध्व- गामिनां निर्वाणशर्मदायीनि (भवन्ति )।
सरलार्थ :- जो कार्य असंोहपूर्वक अर्थात् वीतरागमय होते हैं, वे कार्य अत्यंत शुद्धि के कारण एवं स्वत: शुद्ध होते हैं; इसलिए भवातीतमार्ग अर्थात् मोक्षमार्ग पर चलनेवालों को निर्वाण/ मोक्ष सुख के प्रदाता होते हैं ।