योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 441
From जैनकोष
ज्ञानपूर्वक कार्य का फल -
तान्येव ज्ञान-पूर्वाणि जायन्ते मुक्तिहेतवे ।
अनुबन्ध: फलत्वेन श्रुतशक्तिेनवेशित: ।।४४१।।
अन्वय :- तानि (बुद्धिपूर्वाणि कर्माणि) एव (यदा) ज्ञान-पूर्वाणि जायन्ते (तदा ते) मुक्तिहेतवे (जायन्ते; यत:) श्रुतशक्तिेनवेशित: अनुबन्ध: फलत्वेन ।
सरलार्थ :- बुद्धिपूर्वक होनेवाले कार्य ही जब आगम-ज्ञानपूर्वक होने लगते हैं तो वे ही कार्य मोक्ष के लिये कारणरूप अर्थात् मोक्षमार्गरूप बन जाते हैं; क्योंकि श्रुतशक्ति को लिये हुए जो अनुराग है वह क्रम से/परंपरा से मोक्षरूप फल का दाता हो जाता है ।