योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 451
From जैनकोष
मुक्ति का कारण -
कारणं निर्वृतेरेतच्चारित्रं व्यवहारत: ।
विविक्तचेतनध्यानं जायते परमार्थत: ।।४५१।।
अन्वय :- एतत् (पूर्वोक्तं) चारित्रं व्यवहारत: निर्वृते: कारणं (अस्ति) । परमार्थत: (तु) विविक्त-चेतन-ध्यानं (निर्वृते: कारणं) जायते ।
सरलार्थ :- इस चारित्र अधिकार में २८ मूलगुणों की मुख्यता से कहा हुआ चारित्र व्यवहारनय से निर्वाण/मुक्ति का कारण है । निश्चयनय से कर्मरूपी कलंक से रहित निज शुद्धात्मा का ध्यान ही निर्वाण का कारण है ।