योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 450
From जैनकोष
देशना के विभिन्नता का कारण -
विचित्रा देशनास्ततत्र भव्यचित्तानुरोधत: ।
कुर्वन्ति सूरयो वैद्या यथाव्याध्यनुरोधत: ।।४५०।।
अन्वय :- यथा व्याधि-अनुरोधत: वैद्या: विचित्रा: देशना: कुर्वन्ति (तथैव) सूरय: भव्यचित्तानुरोधत: तत्र (मोक्षमार्गे) सूरय: विचित्रा: देशना: (कुर्वन्ति) ।
सरलार्थ :- जिस समय जिस रोगी की जिसप्रकार की व्याधि/बीमारी होती है; उस समय चतुर वैद्य उस व्याधि तथा रोगी की प्रकृति आदि के अनुरूप योग्य भिन्न-भिन्न औषधि की योजना करते हैं; उसीप्रकार मुक्तिमार्ग के संबंध में भी आचार्य महोदय भव्य जीवों के चित्तानुरोध से नाना प्रकार की देशनाएँ देते हैं ।