योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 265
From जैनकोष
लोकाचार अपनाने से संयम हीन होता है -
हित्वा लोकोत्तराचारं लोकाचारमुपैति य: ।
संयमो हीयते तस्य निर्जरायां निबन्धनम्।।२६५।।
अन्वय :- य: (योगी) लोकोत्तरं आचारं हित्वा लोकाचारं उपैति; तस्य निर्जरायां निबन्धनं संयम: हीयते ।
सरलार्थ :- जो मुनिराज लोकोत्तर आचार अर्थात् अलौकिक वृत्ति को छोड़कर लोकाचार/ लोकरंजक लौकिक आचरण को अपनाते हैं, उनका निर्जरा का कारणरूप संयम हीन हो जाता है ।