गृहांग
From जैनकोष
एक प्रकार के कल्पवृक्ष । ये भोगभूमि में आवश्यकतानुसार राजमहल, मण्डप, सभागृह, चित्रमाला, नृत्यशीला आदि अनेक प्रकार के भवनों का निर्माण करते हैं । महापुराण 3. 39-40, 9.35-36,44, हरिवंशपुराण 7.80, वीरवर्द्धमान चरित्र 18,91-92
एक प्रकार के कल्पवृक्ष । ये भोगभूमि में आवश्यकतानुसार राजमहल, मण्डप, सभागृह, चित्रमाला, नृत्यशीला आदि अनेक प्रकार के भवनों का निर्माण करते हैं । महापुराण 3. 39-40, 9.35-36,44, हरिवंशपुराण 7.80, वीरवर्द्धमान चरित्र 18,91-92